ऐतिहासिक सिद्धिपीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के 16th पीठाधीश्वर श्री महंत नारायण गिरी जी (Mahant NarayanGiri ji) है . दिव्य स्वभाव से सरल, सहज, मृदुभाषी और हमेशा मुस्कुराते रहते है। और मानवता के अनन्त मार्गदर्शन के लिए इस पवित्र मार्ग को चुना है आये जानते है उनके अद्भुत जीवन के बारे में।
गौरवशाली समृद्ध श्रीमहंत परम्परा:-
ऐतिहासिक सिद्ध पीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर की श्रीमहंत परम्परा अति प्राचीन एवं समृद्धशाली है | इस परम्परा में ऐसे-ऐसे सिद्ध संत-महात्मा हुए हैं ,जिन्होंने न केवल मंदिर के उत्थान के लिये कार्य किया बल्कि आध्यात्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र में ऐसे अभूतपूर्व कार्य किये जो आम आदमी को अचंभित कर देने वाले हैं |
श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर प्रारम्भ से ही अनेक सिद्ध –संतों की तपस्थली रहा है | लगभग 560 वर्ष पूर्व ज्ञात प्रथम श्रीमहंत वेणी गिरी जी महाराज से लेकर वर्तमान श्रीमहंत नारायण गिरी जी महाराज तक समस्त सोलह श्रीमहंत विद्वान,सहज और मठ के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव रखने वाले हुए हैं | कहते हैं कि प्रथम श्रीमहंत वेणी गिरी जी से लेकर तेरहवें श्रीमहंत शिव गिरी जी महाराज तक सभी सोना बनाने की कला में सिद्धहस्त थे |
श्री महंत नारायण गिरी जी के पिता और माता को श्री महंत नारायण गिरी जी शिव जी के दिव्य आशीर्वाद के रूप में मिले। इनका जन्म राजस्थान में हुआ। इनका बचपन भी अद्भुत रहा जिस उम्र बचपन में लोग खेलने में निकाल देते है, उस उम्र में इन्होने सन्यास लेकर कश्मीर से कन्याकुमारी तक पद यात्रा की। और श्री महंत जी ने जन जीवन को बहुत नज़दीक से देखा, समझा और जाना है। उन्होंने अपने पिता जी से मूल शिक्षा प्राप्त की। ज्ञान और भक्ति के सागर में गोते लगाकर समाज के निजी संस्कृति ज्ञान पर शोध किया। जिसे जन कल्याण हो सके हमारी भावी पीढ़ी सही राह पे चल सके।
महाराज श्री ने जीवन को निकट से देखा है जाना है आपका जीवन वर्तमान व भावी पीढ़ी को सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करता है। राजस्थान के छोटे से गांव से निकलकर सिद्धपीठ श्री दूधेश्वरनाथ मठ मंदिर के पीठाधीश्वर पद पर आसीन होने तक की श्री महंत नारायण गिरी जी की जीवन यात्रा अनुकरणीय है।
महंत जी का बचपन का नाम हंस था। कहते हैं हंस के जन्म से पूर्व उनकी माता को मां दुर्गा ने सपने में दर्शन देकर कहा था तेरा पुत्र भक्ति और शक्ति का प्रतीक होगा हंस बाकी बच्चों से बिल्कुल अलग स्वभाव के थे। जब वो चलने लगा तो घर से निकल जाता और घर के पास बनी महादेव जी के शिवालय में जाकर बैठ जाता। वंहा बनी शिव अन्य देवताओं की प्रतिमाओं की देखकर मुस्कुराता रहते। शिवालय के गृहस्थी पुजारी जी हंस पर विशेष स्नेह रखते थे क्योंकि गांव का एकलौता एक ऐसा बालक था जो न केवल प्रतिदिन मंदिर आता था बल्कि कई घंटे भगवान की प्रतिमाओं के समक्ष बैठकर उन्हें निहारता रहता था। खेमपुरी जी को बालक में दिव्य आत्मा के दर्शन होते थे।
जब हंस 15 वर्ष के थे तभी इनके पिता श्री का निधन हो गया। और वो पल ऐसा जिसमे कुछ ऐसा घटित हुआ। गाँव की कुरीतियाँ वो अर्थ हीन रीती रिवाज़ और माँ के कहे कुछ शब्द ने हंस के हृदय में एक अजीब सा विचार की उत्पति कर दी। और वो पिता श्री के तेरहवीं के तीन दिन बाद ही घर छोड़ कर निकल गए।घर छोड़ते समय हंस के मन में साधु बनने की प्रबल इच्छा थी वह संन्यास लेना चाहते थे।
विचारों के जंजाल के साथ हंस जालौर के प्रख्यात जालंधर नाथ जी के अखाड़े में पहुंचे। जालंधर नाथ जी के नाम पर ही जौलौर का नामकरण हुआ बताते हैं। यहाँ पर इस तरह से महंत शांति नाथ जी कि हंस पर विशेष कृपा रही क्योंकि हंस में एक विचित्र ही बात थी उनके विचार को सुनकर शांतिनाथ बहुत प्रभावित हुए उन्होंने एक बार विनम्र शब्दों में कहा” महाराज यहां तो मेरी कोई पहचान का है ही नहीं और जो पहचान वाले थे उन्हें पीछे छोड़ आया हूं अब तो भगवान से पहचान करनी है इस दुनिया में क्या रखा है? पहचान तो वो हो जो भगवान की भक्ति से मिले।
उनकी सक्रिय भूमिका में संचालित विभिन्न संस्थाएं हैं जो इस प्रकार है :-संरक्षक:-
भारतीय साधु समाज नई दिल्ली
इन्होने श्री दूधेश्वर वेद विद्यापीठ की स्थापना कर स्नातक वैदिक संस्कृति के मूल चारों वेदों के अध्ययन अध्यापन के लिए दक्षिण के आचार्य नियुक्त किए हैं यह बहुत बड़ी पहल है जिससे युवा पीढ़ी और आने वाले भावी युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति का प्रचार प्रसार कर सकेंगे.
अभ्यागत साधुओं के विश्राम के लिये मंदिर परिसर में गौशाला के पास बरामदे में रुकने की व्यवस्था पूज्य श्रीमहंत नारायण गिरी जी ने बना रखी है |
नित्य प्रति साधु-महात्माओं ,अभ्यागतों के लिये भंडार से प्रात:चाय-नाश्ता ,मध्यान्ह भोजन ,सांयकालीन चाय-नाश्ता व रात्रि भोजन की व्यवस्था नि:शुल्क मंदिर समिति की ओर से की जाती है |
श्री दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर में गर्भगृह के बराबर में ही मंदिर के सिद्ध –संतों की समाधियाँ स्थित हैं | इनमें से अनेक सिद्ध- संतों ने जीवित समाधि ली हुई है | इन समाधियों की नित्य पूजा-अर्चना करने से अनेकों चमत्कार होते रहते है |
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