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क्या आप श्री दूधेश्वर नाथ महादेव मंदिर के साल भर के पर्व एवं आयोजन के बारे में जानते है ?

मठ मंदिर प्रांगण में यूं तो सारे वर्ष ही उत्सव का वातावरण बना रहता है | वर्ष में होने वाले पर्व ,उत्सव व अन्य धार्मिक व सामाजिक आयोजनों का संचालन श्रीमहंत गौरी गिरी दूधेश्वर नाथ महादेव मठ मंदिर समिति (पंजी०) द्वारा सुचारू रूप से किया जाता है | इन समस्त आयोजनों में भक्तगण सम्पूर्ण श्रद्धा व आस्था के साथ सम्मिलित होकर धर्मलाभ प्राप्त करते हैं |

वर्ष 2021 में मंदिर में आयोजित होने वाले पर्व और उत्सव :-

पर्व एवं आयोजनतिथि
मकर संक्रांतिमाघ कृष्ण त्रयोदशी
वसन्त पंचमीमाघ शुक्ल पंचमी16 फ़रवरी 2021
गणतन्त्र दिवसमाघ कृष्ण नवमी
महा शिवरात्रिफाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी11 मार्च 2021
होलिकादहनफाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा28 मार्च 2021
शिव बारात ,पंखा शोभा यात्राफाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा
चैत्र नवरात्र प्रारम्भचैत्र शुक्ल प्रतिपदा
श्री रामनवमीचैत्र शुक्ल नवमी
श्री हनुमान जयन्तीचैत्र शुक्ल पूर्णिमा27 अप्रैल 2021
अक्षय तृतीयावैशाख शुक्ल तृतीया
श्री आद्यशंकराचार्य जयन्तीवैशाख शुक्ल पंचमी
पुरुषोत्तम मास आरम्भज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा
पुरुषोत्तम मास समाप्तज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या
संत-सनातन-कुम्भ (श्रीमहंत गौरी गिरी
पुन्य तिथि )
आषाढ़ शुक्ल पंचमी17 जुलाई 2021
चातुर्मास आरम्भआषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी एकादशी)
गुरु पूर्णिमाआषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा24 जुलाई 2021
श्रावण प्रारम्भश्रावण कृष्ण प्रतिपदा
श्रावण शिवरात्रिश्रावण कृष्ण त्रयोदशी/ चतुर्दशी6 अगस्त 2021
नागपंचमीश्रावण शुक्ल पंचमी
स्वतन्त्रता दिवसश्रावण शुक्ल पंचमी
रक्षाबंधनश्रावण शुक्ल पूर्णिमा
श्री कृष्ण जन्माष्टमीभाद्रपद कृष्ण अष्टमी30 अगस्त 2021
श्री गणेश चतुर्थीभाद्रपद शुक्ल चतुर्थी10 सितम्बर 2021
शारदीय नवरात्रआश्विन शुक्ल प्रतिपदा
महानवमीआश्विन शुक्ल नवमी
विजया दशमी (दशहरा)आश्विन शुक्ल दशमी
शरद पूर्णिमाआश्विन शुक्ल चतुर्दशी20 सितम्बर 2021
दीपावलीकार्तिक कृष्ण अमावस्या4 नवंबर 2021
अन्नकूट गोवर्धनकार्तिक शुक्ल प्रतिपदा
गोपाष्टमीकार्तिक शुक्ल अष्टमी
देवप्रबोधनी एकादशीकार्तिक शुक्ल एकादशी
श्री दूधेश्वर प्राकट्योत्सवकार्तिक शुक्ल चतुर्दशी17 नवंबर 2021
महाकाल भैरवाष्टमीमार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी
श्री दत्तात्रेय जयन्तीमार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा

मकर संक्रांति:-

मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। … मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं, यह भ्रान्ति है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है।

वसन्त पंचमी

विद्या की देवी सरस्वती का जन्मदिवस वसंत पंचमी वसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है।

चैत्र नवरात्र:-

चैत्र नवरात्रि के आगमन के साथ ही चैत्र नवरात्रों का शुभ आरंभ होता है इस अवसर पर मां भगवती दुर्गा के नौ रूपों की नौ दिवसीय आराधना होती है। इस अवसर पर विभिन्न अनुष्ठान भी किए जाते हैं नवरात्रा की पूर्णता नौवीं की कन्या पूजन से होती है।

हनुमान जयंती:-

हनुमान जयंती चैत्र मास की पूर्णिमा को नगर के मध्य चौपला स्थित श्री सिद्ध हनुमान मंदिर पर हनुमान जी के भक्तों द्वारा धूमधाम से हनुमान जयंती मनाई जाती है। इस दिन प्रातः काल रामचरितमानस सुंदरकांड का भक्ति पूर्वक पाठ किया जाता है। व रात्रि में भक्ति भाव से संकीर्तन होता है। चौपला का श्री सिद्ध हनुमान मंदिर श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ द्वारा ही संचालित है।

छठी पूजन:-

छठी पूजन इस अवसर पर हनुमान मंदिर पर प्रातः हनुमान जी का छठी पूजन किया जाता है बाद में कढ़ी चावल का प्रचार भक्तों में वितरित किया जाता है।

परशुराम जयंती:-

परशुराम जयंती प्रतिवर्ष वैशाख मास में अक्षय तृतीया को प्रातः हवन व विचार गोष्ठी द्वारा भगवान परशुराम की जयंती विधि-विधान से मनाई जाती है अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के पदाधिकारियों व सदस्य द्वारा इस अवसर पर मंदिर प्रांगण स्थित प्राचीन हवन हवन कुंड में विश्व शांति हेतु यज्ञ किया जाता है। इस यज्ञ में श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर श्री महंत नारायण गिरी जी व अन्य साधु संत शामिल होते हैं।

श्री शंकराचार्य जयंती:-

श्री शंकराचार्य जयंती प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ल पंचमी को जगद्गुरु भगवान शंकराचार्य जी की जयंती का आयोजन मंदिर प्रांगण में किया जाता है। भारत भूमि की चार दिशाओं में चार मठ स्थापित कर धर्म ध्वजा फैराने वाले आदि शंकराचार्य जी है। श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर श्री महंत नारायण गिरी जी की जी ने भारतीय संस्कृति व सभय्ता के प्रचार प्रसार तथा वेद वाणी को जन जन तक पहुंचाने के लिए वेद विद्यापीठ की स्थापना की थी।

गुरु पूर्णिमा:-

गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा को यह उत्सव पारंपरिक उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिवस गुरु अथवा आचार्य की पूजा करने का विशेष महत्व है गुरु को ब्रह्मा विष्णु और शिव के सामान देवता समझ कर पूजा करने की हिंदू धर्म की अपनी विशेषता है इसी दिन चारों वेदों के प्रथम व्याख्या महर्षि वेदव्यास की स्मृति में उनकी पूजा की जाती है इसीलिए इस पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है श्री महंत नारायण गिरी जी महाराज प्राचीन गुरु गद्दी पर विराजमान होते हैं उनके शिष्य उनकी की पूजा करते हैं और यथाशक्ति उन्हें भेंट करते हैं। और श्री महंत जी सभी को मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

चातुर्मास व्रत:-

आषाढ़ मास की हरि शयनी एकादशी से चातुर्मास व्रत प्रारंभ होता है इस व्रत के दौरान मठ मंदिर के सन्यासी का नदी पार का आगमन बंद रहता है। भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार मास की अखंड निंद्रा ग्रहण करते हैं। और चार मास बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को निद्रा त्याग करते हैं। चातुर्मास व्रत में धर्म शास्त्र में अनेक वस्तुओं के सेवन का निषेध किया गया है उसके विचित्र परिणाम भी बताए गए हैं। यह व्रत अत्यंत फलदाई होता है। इस अवधि में संत महात्मा एक ही स्थान में रहकर सत्संग करते हैं और तब करते हैं और प्रभु स्मरण में लीन रहते हैं।

श्रावण मास के सोमवार:-

श्रावण मास के सोमवार आशुतोष भगवान् भोलेनाथ शिव जी को सावन मास अत्यंत प्रिय है। श्रावण में वार्षिक शिव पूजा का विशेष महत्व है। भगवान शिव को जितना भी सोमवार है उसके कई गुना सावन का सोमवार है। उससे भी अधिक प्रिय श्रावण मास है गुरु पूर्णिमा के अगले ही दिन ही आयोजन अपने विशाल स्वरूप में अत्याधिक सिद्धपीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर में उत्साह उल्लास के साथ मनाया जाता है। कांवरियों की सुविधा के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था की जाती है इस कार्य में स्थानीय प्रशासन जिला प्रशासन तथा पुलिस प्रशासन के अन्य स्वयंसेवी संस्था का सहयोग करते हैं।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी:-

श्री कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद कृष्ण जन्माष्टमी को रात के 12:00 बजे मथुरा नगरी के कारगार में वासुदेव जी की पत्नी देवकी के घर से 16 कलाओं से संपन्न भगवान श्री कृष्ण का अवतार हुआ था। श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर में यह पर बहुत धूमधाम से मनाया जाता है श्री कृष्ण भगवान की झांकी निकाली जाती है ताकि को अत्यंत दिव्य रूप में सूचित किया जाता है भगवान श्री कृष्ण का पूजन होता है।

श्री गणेश चतुर्थी:-

श्री गणेश चतुर्थी श्री महंत नारायण गिरी जी महाराज ने हिंदुओं के आदि देवता श्री गणेश के जन्म उत्सव को उत्साह पूर्वक मनाने की परंपरा स्थापित किया था। 1100 किलो का लडू बनाया जाता है और भक्तो के बीच वितरित किया जाता है।

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