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हरियाली तीज का पर्व शंकर और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक हैःश्रीमहंत नारायण गिरि जी


गाजियाबादः
श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष व श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर श्रीमहंत नारायण गिरि ने सभी को हरियाली तीज पर्व की बधाई दी है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह त्योहार सभी के जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली का संदेश लेकर आएगा। श्रीमहंत नारायण गिरि ने बताया कि हरियाली तीज का पर्व शनिवार 19 अगस्त को है। श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में भी इसे धूमधाम से मनाया जाएगा।

हरियाली तीज:-

हरियाली तीज का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। इसे सिंधारा तीज, कजरी तीज और हरतालिका तीज के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार भारत के राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड में उत्साह के साथ मनाया जाता है। हरियाली तीज का पर्व नेपाल के कई क्षेत्रों में भी मनाया जाता है। इस दिन सुहागिनें अपने अखंड सौभाग्य के लिए हरियाली तीज का व्रत रखती हैं। यह त्योहार हर साल सावन के महीने में मनाया जाता है। इस दिन को शंकर और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक माना जाता है।

हरियाली का अर्थ है– वह समय जब वातावरण हरियाली से भरा होता है और यह तृतीया तिथि में पड़ती है, इसलिए इसे ‘हरियाली तीज’ कहा जाता है। इस अवसर पर महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखकर मां पार्वती, भगवान शिव और गणेश जी की उपासना करती हैं। इस दिन महिलाएं हाथ और पैरों में सुंदर मेहंदी लगाती हैं और झूला भी झूलती है।

हरियाली तीज महत्व:-

शादीशुदा महिलाएं अपनी पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। यह व्रत निर्जला रखा जाता है। अतः यह काफी कठिन होता है। सिर्फ विवाहित ही नहीं बल्कि कुंवारी लड़कियां भी इस व्रत को रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं और अपने लिए सुयोग्य वर की कामना करती हैं। इस व्रत में विधि-विधान से भगवान शंकर के पूरे परिवार की पूजा.अर्चना की जाती है।

तीज के दिन महिलाओं को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर, साफ सुथरे कपड़े पहनकर भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चिाहिए। बालू के भगवान शंकर व माता पार्वती की मूर्ति बनाकर पूजन किया जाना शुभ रहता है। एक चौकी पर शुद्ध मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, रिद्धि.सिद्धि सहित गणेश, पार्वती एवं उनकी सहेली की प्रतिमा बनाएं और माता को श्रृंगार का सामान अर्पित करें। भगवान शिव व माता पार्वती का आवाह्न करें। उनके साथ गणेश जी की पूजा भी करें। भगवान शिव को वस्त्र अर्पित करें और हरियाली तीज की कथा सुनें। ऐसा करने से भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश जी के साथ रिद्धि.सिद्धि की कृपा भी प्राप्त होगी

हरियाली तीज की कथा (Hariyali Teej Katha)

शिवजी ने पार्वतीजी को उनके पूर्वजन्म का स्मरण कराने के लिए तीज की कथा सुनाई थी। शिवजी कहते हैं- हे पार्वती तुमने हिमालय पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था। अन्न-जल त्यागा, पत्ते खाए, सर्दी-गर्मी, बरसात में कष्ट सहे।
तुम्हारे पिता दुःखी थे। नारदजी तुम्हारे घर पधारे और कहा- मैं विष्णुजी के भेजने पर आया हूं। वह आपकी कन्या से प्रसन्न होकर विवाह करना चाहते हैं। अपनी राय बताएं।

पर्वतराज प्रसन्नता से तुम्हारा विवाह विष्णुजी से करने को तैयार हो गए। नारदजी ने विष्णुजी को यह शुभ समाचार सुना दिया पर जब तुम्हें पता चला तो बड़ा दु.ख हुआ। तुम मुझे मन से अपना पति मान चुकी थीं। तुमने अपने मन की बात सहेली को बताई।
सहेली ने तुम्हें एक ऐसे घने वन में छुपा दिया जहां तुम्हारे पिता नहीं पहुंच सकते थे। वहां तुम तप करने लगी। तुम्हारे लुप्त होने से पिता चिंतित होकर सोचने लगे यदि इस बीच विष्णुजी बारात लेकर आ गए तो क्या होगा।

शिवजी ने आगे पार्वतीजी से कहा- तुम्हारे पिता ने तुम्हारी खोज में धरती-पाताल एक कर दिया पर तुम न मिली। तुम गुफा में रेत से शिवलिंग बनाकर मेरी आराधना में लीन थी। प्रसन्न होकर मैंने मनोकामना पूरी करने का वचन दिया। तुम्हारे पिता खोजते हुए गुफा तक पहुंचे।
तुमने बताया कि अधिकांश जीवन शिवजी को पतिरूप में पाने के लिए तप में बिताया है। आज तप सफल रहा, शिवजी ने मेरा वरण कर लिया। मैं आपके साथ एक ही शर्त पर घर चलूंगी यदि आप मेरा विवाह शिवजी से करने को राजी हों।

पर्वतराज मान गए। बाद में विधि-विधान के साथ हमारा विवाह किया। हे पार्वती! तुमने जो कठोर व्रत किया था उसी के फलस्वरूप हमारा विवाह हो सका। इस व्रत को निष्ठा से करने वाली स्त्री को मैं मनवांछित फल देता हूं। उसे तुम जैसा अचल सुहाग का वरदान प्राप्त हो।

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