विद्यालय के विद्यार्थियों व आचार्यो ने 5 घंटे 35 मिनट तक मां सरस्वती की पूजा-अर्चना की
बसंत पंचमी का पर्व नव सृजन व नव ऊर्जा के संचार का पर्व हैः श्रीमहंत नारायण गिरि
गाजियाबादः
सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर परिसर स्थित दूधेश्वर वेद विद्यालय संस्थान में बसंत पंचमी का पर्व बुधवार को धूमधाम से मनाया गया। श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष व दूधेश्वर वेद विद्यालय के मुख्य संरक्षक श्रीमहंत नारायण गिरि के पावन सानिध्य में ज्ञान की देवी मां भगवती सरस्वती की उपासना-आराधना की गई। विद्यालय के विद्यार्थियों ने महाराजश्री के निर्देशानुसार प्रातः 7 बजे से ही मां सरस्वती की विधि-विधान से मां सरस्वती की पूजा-अर्चना शुरू कर दी थी।
पूजा-अर्चना 5 घंटे 35 मिनट तक चली और इस दौरान दूधेश्वर वेद विद्यालय संस्थान के सचिव लक्ष्मीकांत पाढ़ी, कोषाध्यक्ष विवेक गोयल, संजीव गुप्ता सीए, हर्ष पाण्डेय व दूधेश्वर वेद विद्यालय के समस्त छात्रों और आचार्यों ने मंगलाचरण, दीप पूजन गणेश गौरी मातृकादि कलश पूजन, महा सरस्वती के पश्चात पुस्तक व वेद पूजन.अर्चन कर मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त किया गया। श्रीमहंत नारायण गिरि ने कहा कि वाणी और विद्या की देवी मां सरस्वती की आराधना का पर्व बसंत पंचमी हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है। बसंत को ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है। यह त्योहार फूलों के खिलने और नई फसल के आने का त्योहार है। वसंत पंचमी का धार्मिक महत्व होने के साथ ही सामाजिक महत्व भी है।
वसंत पंचमी जीवन में नई चीजें शुरू करने का एक शुभ दिन है। इस मौसम में पेड़ों पर नव कोपलें आनी शुरू हो जाती हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन ब्रह्मांड का निर्माण किया था। सृष्टि की रचना करके जब उन्होंने संसार में देखा तो उन्हें चारों ओर सूनसान निर्जन ही दिखाई दिया। वातावरण बिल्कुल शांत लगा। तब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु जी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। जल छिड़कने के बाद हाथ में वीणा लिए मां सरस्वती प्रकट हुईं। मां के प्रकटोत्सव को पूरे देश में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसी कारण वसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता की विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस पर्व का पर्यावरणीय महत्व भी है। इस ऋतु के साथ मौसम की चाल बदलने लगती है और वह खुशगवार हो जाता है। है। ठंड में मुरझाए हुए पेड़-पौधों, आदि नए सृजन की तरफ बढ़ते हैं। खेतों में फसलें पक जाती हैं तो वहीं प्रकृति ऐसी सुंदरता की चुनरी ओढ लेती है, जिसे देखकर ही मन प्रसन्न हो जाता है और जीवन में नए उल्लास, उत्साह, उमंग का संचार होता है। एक नई उर्जा जन्म लेती है। इसी कारण कहा गया है कि बसंत पंचमी का पर्व नव सृजन का पर्व है, नव ऊर्जा के संचार के पर्व है।