भगवान शिव के तीन स्वरूपों की उपासना के लिए सावन का तीसरा सोमवार सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. सावन के तीसरे सोमवार श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर में शिवभक्तों की उमडी भीड सावन के तीसरे सोमवार का अलग ही महत्व हैः श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज भगवान शिव के तीन स्वरूपों की उपासना के लिए सावन का तीसरा सोमवार सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है गाजियाबादः सावन के तीसरे सोमवार को जलाभिषेक के लिए सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में शिवभक्तों की भीड उमडी। भगवान के दरबार में हाजरी लगाकर उनकी पूजा-अर्चना करने व जलाभिषेक करने के लिए मंदिर में हजारों शिवभक्त पहुंचे। शिवभक्तों ने भगवान की पूजा-अर्चना कर श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर के पीठाधीश्वर, दिल्ली सन्त महामण्डल के राष्ट्रीय अध्यक्ष, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज से मुलाकात कर उनका आशीर्वाद लिया।
श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज ने कहा कि वैसे तो पूरा सावन मास व इस मास का प्रत्येक सोमवार ही खास है, मगर सावन के तीसरे सोमवार का महत्व अलग ही है। इसका कारण यह है कि भगवान शिव सृष्टि के तीनों गुणों को नियंत्रित करते हैं। वे स्वयं त्रिनेत्रधारी भी हैं। साथ ही उनकी पूजा-अर्चना मूल रूप से तीन स्वरूपों में ही की जाती है। तीनों स्वरूपों की उपासना के लिए सावन का तीसरा सोमवार सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। तीसरे सोमवार को तीनों स्वरूपों की उपासना करने भगवान शिव की कृपा से प्रत्येक मनोकामना पूर्ण होती है। मंदिर भगवान के जलाभिषेक का सिलसिला रात्रि 12 बजे से शुरू हुआ, मगर भक्तों की कतारें रात्रि 10 बजे से ही लगने लगी थीं।
मंदिर के पीठाधीश्वर श्रीमहंत नारायण गिरि ने भगवान दूधेश्वर की पूजा-अर्चना व जलाभिषेक किया। उसके बाद भक्तों ने जलाभिषेक करना शुरू किया। जलाभिषंक का सिलसिला लगातार जारी है। भगवान के दर्शन व जलाभिषेक के लिए भक्तों की कतार सुबह 4 बजे तक जस्सीपुरा मोड तक पहुंच गई थी। कतार में घंटों लगाने के बाद ही भक्त भगवान के दर्शन कर पाए व जलाभिषेक कर पाए। जलाभिषेक के लिए जिला व पुलिस प्रशासन, नगर निगम की ओर से विशेष व्यवस्था की गई है। मंदिर के स्वयंसेवक भी व्यवस्था में सहयोग कर रहे हैं। मंदिर के मीडिया प्रभारी एस आर सुथार ने बताया कि मंदिर श्रृंगार सेवा समिति के अध्यक्ष विजय मित्तल के नेतृत्व में भगवान दूधेश्वर का विशेष श्रृंगार किया गया। महंत गिरिशानंद गिरी महाराज ने भगवान की धूप व दीप आरती की। भगवान को विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग भी लगाया गया।