श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने की
गाजियाबाद:
पितृ पक्ष में रविवार को पंचमी पर सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में मंदिर के 14 वें महंत श्रीमहंत गौरी गिरि महाराज का श्राद्ध हुआ। मंदिर के पीठाधीश्वर श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने श्रीमहंत गौरी गिरि महाराज की समाधि की पूजा-अर्चना की व अभिषेक किया। भोग लगाया जिसके बाद भंडारे का आयोजन हुआ। श्रीमहंत गौरी गिरि महाराज की समाधि की पूजा-अर्चना करने के लिए भक्तों की भीड लगी रही। महाराजश्री ने कहा कि श्रीमहंत गौरी गिरि महाराज का उन पर विशेष स्नेह था। उनके आशीर्वाद से ही आज उन्हें भगवान दूधेश्वर की पूजा-अर्चना करने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। उन्होंने बताया कि संत शिरोमणि श्रीमहंत गौरी गिरि महाराज विक्रमी संवत 1991 में मंदिर के 14 वें महंत के रूप में विराजमान हुए। वे एक सिद्ध योगी थे। उन्होंने अपने कार्यकाल में ज्ञान, भक्ति व कर्म की वह त्रिवेणी प्रवाहित की जिसमें डूबकी लगाकर भक्त आज भी खुद को धन्य मानते हैं। उनके चमत्कारों का साक्षात्कार करने वालों में राजेंद्र भारद्वाज भी हैं। राजेंद्र भारद्वाज श्रीमहंत गौरी गिरि महाराज को ठंड में भ्ी कुएं के ठंडे पानी की अनेकों बाल्टियों से नहाता देखकर हैरान रह जाते थे। वे एक बार की बात बाते हैं कि एक बार मंदिर में पांच किलो आटा बाजार से लाया गया। मंदिर के महात्माओं, सेवकों के लिए दो-ढाई किलो आटा प्रर्याप्त था। शेष आटा महााजश्री ने परात में लाल कपडे से ढककर गुफा में रखवा दिया। कुछ देर बाद उन्होंने कहा कि बहुत से संत मंदिर आ रहे हैं, उनके भोजन का प्रबंध किया जाए। साग-पात खेत में से ले लो। भंडार में नमक कम था। भंडारी महाराजश्री से कुछ कहते उससे पहले ही वे गुड की भेली लेकर आए और सब्जी में डाल दिया। सबको हैरानी हुई और वे इस बात से भी चिंतित थे कि इतने कम आटे में इतने संतों के भोजन का प्रबंध कैसा होगां।



भंडारी ने यह बात कही तो महाराजश्री ने कहा कि परात पर से एक और से थोडा सा कपडा हटाकर आटज्ञ लेते जाओ और गूंथते जाओ। भंडारी ने राजे को परात लेने भेजा तो गुफा में नाग-नागिन का जोडा देखकर डर के मारे वापस आ गया। इस पर महाराजश्री उसके साथ परात लेकर आए तो वहां कोई नाग नहीं था। राजे परात में से आटा लाते रहे और भंडारी भेाजन बनाते रहे। 60 संतों ने भरपेट प्रसाद ग्रहण किया। सभी हैरान परेशान कि इतने कम आटे में 60 संतों का भोजन कैसे बना और सब्जी में गुड डालने के बाद भी किसी ने शिकायत क्यों नहीं की। संतों के जाने के बाद महाराजश्री ने कहा कि चलो अब परात से कपडा हटाओ। कपडा हटाते ही राजे व सभी डर गए क्योंकि उसके अंदर नाग-नागिन का जोडा था। महाराजश्री बोले डरो नहीं यह तो साक्षात भगवान शिव व अन्नपूर्णा माता पार्वती हैं। उनके समय में ही मंदिर में राम दरबार, कृष्ण दरबार, राम भक्त हनुमान व माता दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित हुईं और निकट के देवी मंदिर में सुंदर व्यवस्थाएं की गईं, जो आज तक जारी हैं। वे कहते थे कि पांच देवताओं विष्णु, शिव,गणपति, देवी व सूर्य के प्रति सदैव पूज्य भाव रखना चाहिए। भूत-प्रेत का उपद्रव होने पर नारायण कवच का पाठ करना चाहिए या हनुमान जी के मंत्रका जाप करना चाहिए। विक्रमी संवत 2034 में स्वास्थ्य खराब होने पर उन्होंने अपने पौत्र शिष्य महंत राम गिरि को मठ-मंदिर का कार्यभार सौंप दिया और विक्रमी संवत 2034 में इस नश्वर संसार का त्याग कर दिया। श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने कहा कि श्रीमहंत गौरी गिरि महाराज जैसा योगी संत सदियों में एक बार पैदा होता है और धर्म, ज्ञान, आध्यात्म से पूरे विश्व को आलौकिक कर देता है।
हरि ओम् गुरुदेव