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हिंदू धर्म में जात-पात, अमीर-गरीब का कोई स्थान नहीं हैः श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज

हिंदू धर्म में तो छोटे जीव-जंतु को भी सम्मान दिया जाता हैः सुधांशु महाराज अच्छे संस्कार से ही सामाजिक एकता व समरसता की स्थापना होगीः रामानुजाचार्य कृष्ण आचार्य

जिस दिन हम धर्म के वास्तविक अर्थ को समझ लेंगे, उस दिन सामाजिक समरसता की स्थापना हो जाएगीः स्वामी चिदानंद सरस्वती मुनि महाराज नई दिल्लीः विश्व हिंदू परिषद की इंद्रप्रस्थ, मेरठ व जयपुर प्रांत की केंद्रीय मार्ग दर्शन मंडल की दो दिवसीय बैठक शुक्रवार को समाप्त हो गई। विश्व जागृति मिशन आनंद धाम आश्रम बक्करवाला में आयोजित बैठक में शुक्रवार को मुख्य अतिथि श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज रहे। बैठक की अध्यक्षता हिमालय पीठाधीश्वर रामानुजाचार्य कृष्ण आचार्य ने की। बैठक में कुटुम्ब प्रबोधन यानि परिवार संस्कार, धर्म प्रसार व सामाजिक समरसता पर चिंतन किया गया। श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने कहा कि विश्व हिंदू परिषद की यह बैठक सनातन धर्म के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगी। बैठक में हिंदू सनातन धर्म में व्याप्त जात-पात के भेद को मिटाने का जो संकल्प लिया गया है, वह हिंदू सनातन धर्म को एकजुट करने मजबूत करने का कार्य करेगा। महाराजश्री ने कहा कि भारतीय समाज में जाति व्यवस्था कभी थी नहीं। हिंदू सनातन धर्म में तो कर्म को ही सबसे प्रमुख माना गया है। कर्म के अनुसार ही व्यक्ति को पुण्यात्मा या पापकर्मी माना जाता रहा है। गीता में भगवान कृष्ण ने भी कर्म को ही सबसे महान बताया है।

हिंदू सनातन धर्म:-

हिंदू सनातन धर्म में जात-पात व उंच-नीच का कोई स्थान नहीं था, तभी तो हम विश्व गुरू कहलाते थे और पूरा विश्व हमसे प्रेरणा लेता था। जाति वाली व्यवस्था तो गुलामी के कार्यकाल में हिंदू समाज को कमजोर करने के लिए शुरू की गई थी। हमें हिंदू समाज को कमजोर वाले इस षडयंत्र को विफल करना है और इसके लिए जात-पात व उंच-नीच के भेदभाव को खत्म कर एकजुट होना है। विश्व जागृति मिशन, आनंद धाम आश्रम के संस्थापक सुधांशु महाराज ने कहा कि जो सनातन धर्म में तो छोटे से छोटे जीव-जंतु को भी सम्मान दिया जाता है तो फिर किसी के साथ उंच-नीच, अमीर-गरीब या जात-पांत का भेदभाव कैसे हो सकता है। यह सब तो हमारी एकजुटता को कमजोर करने की चाल है, जिसे हम सबको मिलकर नाकाम करना है। हिमालय पीठाधीश्वर रामानुजाचार्य कृष्ण आचार्य ने कहा कि परिवारों में अच्छे संस्कार होंगे तो हम सबको एक समान दृष्टि से देखेंगे और एक समान आदर-सम्मान देंगे। इससे जात-पात का भेदभाव खत्म हो जाएगा और समाज में सामाजिक एकता व समरसता की स्थापना होगी। पर्यावरणवादी स्वामी चिदानंद सरस्वती मुनि महाराज परमार्थ निकेतन आश्रम ऋषिकेश ने कहा कि हमें धर्म के वास्तविक अर्थ का प्रचार-प्रसार करना होगा। धर्म का वास्तविक अर्थ बहुआयामी और गहरा है। यह केवल धार्मिक आस्थाओं और कर्मकांडों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के हर पहलू को समाहित करता है। धर्म का अर्थ है कि धारण करना सहेजना। जो भी धरण करने योग्य है, उसे धारण करना ही धर्म है।

सामाजिक एकता व समरसता की स्थापना:-

जिस दिन हम धर्म के वास्तविक अर्थ को समझ लेंगे, उस दिन सामाजिक एकता व समरसता की स्थापना हो जाएगी। दिल्ली संत महामंडल के महामंत्री महामंडलेश्वर नवल किशोर दास महाराज ने कहा कि हिंदू धर्म को सनातन धर्म कहा जाता है क्योंकि यह सत्य के मार्ग पर चलता है। जीओ और जीने दो के मूलमंत्र के साथ सबको एक समान जीने का मौका देता है। पूर्व अध्यक्ष महामंडलेश्वर साध्वी विद्यानंद गिरि महाराज ने कहा कि धर्म की स्थापना हो और सर्वत्र सामाजिक एकता व समरसता हो, इसके लिए हमें अच्छे संस्कारों की जरूरत है। हम अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देंगे तो दुख-संकट के बादल अपने आप छंट जाएंगे। विहिप के अध्यक्ष आलोक ने कहा कि विहिप का एकमात्र उददेश्य हिंदू धर्म को एकजुट व मजबूत बनाना है और उसके इस कार्य में देश के संत अहम भूमिका निभा रहे हैं। विहिप के महामंत्री बडे दिनेश ने बताया कि इंद्रप्रस्थ, मेरठ व जयपुर प्रांत की केंद्रीय मार्ग दर्शन मंडल की दो दिवसीय बैठक में 150 संतों ने भाग लिया। बैठक का संचालन धर्म सम्पर्क प्रमुख अशोक तिवारी ने किया और बैठक में भाग लेने वाले सीाी संतों का आभार व्यक्त किया। स्वामी तुरियानंद महाराज कल्याण आश्रम शुक्रताल, महंत करनपुरी महाराज, महंत रमनपुरी महाराज, स्वामी तीर्थ गिरि महराज राजस्थान, अखिल भारतय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद महाराज आदि भी मौजूद रहे।

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