महाराजश्री ने उनके निजी मंदिर में मत्था टेककर उनके पोते जर्नादन सिंह राणावत से मुलाकात की
मेवाड़ः
श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर व श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता व दिल्ली संत महामंडल के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व गोरखपुर स्थित श्री गोरक्षनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के दादा गुरू युगपुरुष ब्रहमलीन महन्त दिग्विजयनाथ की जन्म स्थली उदयपुर के काकरवा ठिकाने मेवाड़ के दर्शन किए। महाराजश्री ने उनके निजी मंदिर में मत्था टेका व पोते जनार्दन सिंह राणावत व उनके परिजनों से मुलाकात की। श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने कहा कि युगपुरूष ब्रहमलीन महंत दिग्विजयनाथ ने ही वर्ष 1949 में अयोध्या में राम जन्म भूमि पर भगवान राम को प्रकट किया था। 700 वर्ष के मुगल काल में हजारों मंदिर तोडे गए। अयोध्या में राम जन्म भूमि पर मंदिर निर्माण के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के दादा गुरू महंत दिग्विजयनाथ ने संघर्ष की जो मशाल जलाई, उनके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के गुरू ब्रहमलीन महंत अवै़द्यनाथ ने उसे प्रज्जवलित किया और देश के हर हिंदू के ह्रदय में राम नाम का प्रकाश फैलाया।






अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हुआ और 500 वर्ष के बाद उसमें रामलला विराजमान हुए, जिससे पूरे विश्व में सनातन हिंदू धर्म व भारतीय संस्कृति का गौरव बढा। आज अयोध्या का राम मंदिर विश्व का सबसे प्रमुख धार्मिक, आध्यात्मिक व सांस्कृतिक केंद्र बना है तो इसका श्रेय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व गोरखपुर स्थित श्री गोरक्षनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के दादा गुरू युगपुरुष ब्रहमलीन महन्त दिग्विजयनाथ व उनके गुरू महंत अवैद्यनाथ को ही है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन राम मंदिर आंदोलन के लिए समर्पित कर दिया था। श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने कहा कि गोरक्षनाथ मंदिर की तीन पीढियों महंत दिग्विजयनाथ, ब्रहमलीन महंत अवैद्यनाथ व महंत व मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने समाज, धर्म, देश की रक्षा करने, हिंदुओं को एकजुट करने व समाज में समरसता की स्थापना में अहम भूमिका निभाई है। युगपुरुष ब्रहमलीन महन्त दिग्विजयनाथ, की जन्मस्थली उदयपुर के काकरवा ठिकाने मेवाड़ है। इस भूमि का कण-कण यहां के वीरों-शूरवीरों की वीरता, शौर्यता, तप, त्याग व बलिदान की गाथा कहता है। महाराणा प्रताप जैसे महावीरों के चलते ही यह भूमि कभी गुलाम नहंी हुई। ब्रहमलीन महन्त दिग्विजयनाथ का जन्म बाप्पा रावल के उस इतिहास प्रसिद्ध वंश में हुआ था, जिसमें उत्पन्न होकर राणा सांगा और महाराणा प्रताप जैसे स्वाभिमानी देशभक्त वीरों ने देश और धर्म की रक्षा के लिए आजीवन संघर्ष किया।
महाराणा प्रताप की तलवार ने जिस वंश के इतिहास को त्याग, वीरता और आत्म.सम्मान का इतिहास बना दिय व जिस धरती को शत्रुओं के रुधिर से पवित्र और पूज्य बनाया, उसी मेवाड़ की धरती पर सिसोदिया वंश में जन्म लेकर महंत दिग्विजयनाथ ने अपने जीवन से धर्म भक्ति, देशभक्ति, त्याग और बलिदान का इतिहास रच दिया। यह उनका सौभाग्य है कि उन्हें पहले वीर प्रसूता भूमि चित्तौड़गढ़ के विश्व प्रसिद्ध दुर्ग में आयोजित विशाल जौहर मेले में आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में जौहर की अगुवाई करने वाली महारानी पद्मिनी, राजमाता कर्णावती और फूलकंवर मेड़तणी समेत सभी वीरांगनाओं को श्रद्धांजलि अर्पित करने का सौभाग्य मिला और उसके बाद महंत दिग्विजयनाथ की जन्मस्थली के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। उनकी जन्मस्थली के दर्शन से जो आनंद की अनुभूति हुई, उसका वर्णन कर पाना संभव नहीं है।