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मां मातंगी साधकों को अभीष्ट फल देने वाली देवी हैंः श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज

श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में आयोजित गुप्त नवरात्रि के नवें दिन कई शहरों के साधकों ने मां मातंगी की पूजा-अर्चना की
गाजियाबादः
सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में मंदिर के पीठाधीश्वर श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज के पावन सानिध्य व अध्यक्षता में चल रहे गुप्त नवरात्रि अनुष्ठान के नौवें दिन मां की नवीं महाविद्या मां मातंगी की पूजा-अर्चना हुई। कई शहरों से आए साधकों ने श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज से भेंटकर उनका आशीर्वाद भी लिया। महाराजश्री ने बताया कि मां मातंगी कों वाणी, कला, संगीत और ज्ञान की देवी माना जाता है,। साथ ही उन्हें तांत्रिकों की सरस्वती भी कहा जाता है। वे प्रकृति की स्वामिनी हैं। मतंग ऋषि की पुत्री हेाने के कारण ही उन्हें मां मातंगी के नाम से जाना जाता है। मां मातंगी के लिए व्रत नहीं रखा जाता है, क्योंकि वे मन और वचन से ही तृप्त हो जाती हैं। उनका वर्ण गहरा नीला या श्याम वर्ण का है और वे अर्धचंद्र धारण करती हैं। उनके तीन नेत्र हैं, और रत्नों से जड़े सिंहासन पर आसीन रहती हैं।

वे गुंजा के बीजों की माला, वीणा, कपाल और खड़ग धारण किए हुए रहती हैं। मां मातंगी की साधना से वाक्-सिद्धि, संगीत और कला में निपुणता, एकाग्रता और मानसिक शांति प्राप्त होती है। वह व्यक्ति को ज्ञान और सफलता की ओर भी ले जाती हैं। मां मातंगी को सुमुखी, लघुश्यामा या श्यामला, राज-मातंगी, कर्ण-मातंगी, चंड-मातंगी, वश्य-मातंगी, मातंगेश्वरी जैसे नामों से भी जाना जाता है। मातंगी ही एक ऐसी देवी है जिन्हें जूठन का भोग लगाया जाता है। ऐसा कहते हैं कि मातंगी देवी को जुठा किये बिना भोग नहीं लगता है। मातंगी देवी समता की सूचक है । शिव की यह शक्ति असुरों को मोहित करने वाली और साधकों को अभिष्ट फल देने वाली है। गृहस्थ जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए लोग इनकी पूजा करते हैं।

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