महाराजश्री का मंदिर में भक्तों द्वारा स्वागत-अभिनंदन किया गया- मंदिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पूजा-अर्चना कर चुके हैं
केरलः
केरल की सात दिवसीय देवदर्शन, अनुष्ठान एवं धर्म यात्रा के दौरान बुधवार को सिद्धपीठ श्री दूधेश्वरनाथ मठ महादेव मंदिर के पीठाधीश्वर, जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता एवं दिल्ली संत मंडल के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने भगवान श्रीराम के विश्व प्रसिद्ध त्रिप्रयार श्रीराम मंदिर के दर्शन किए।
उन्होंने मंदिर में भगवान श्रीराम की पूजा-अर्चना कर सभी के लिए सुख-समृद्धि, खुशहाली तथा विश्व शांति की प्रार्थना की। मंदिर में महाराजश्री का भक्तों द्वारा स्वागत-अभिनंदन किया गया। उन्होंने मंदिर के मुख्य पुजारी से भेंट की और मंदिर के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त की। मंदिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पूजा-अर्चना कर चुके हैं।

श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बताया:-
श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि त्रिप्रयार श्रीराम मंदिर कोडुंगल्लूर का प्रमुख धार्मिक एवं चमत्कारिक देवस्थल है। यह त्रिप्रयार में स्थित है, जो कोडुंगल्लूर शहर से लगभग 15 किलोमीटर और त्रिशूर से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पाँच हजार से भी अधिक वर्ष पुराने इस मंदिर में भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीराम की पूजा-अर्चना की जाती है। इस मूर्ति में ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव—तीनों के तत्व हैं, अतः इसकी पूजा त्रिमूर्ति रूप में की जाती है।











हिंदू पुराणों के अनुसार :-
हिंदू पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के रूप धरने वाले भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की मूर्तियाँ त्रिप्रयार के किनारे वक्केल कैमल को प्राप्त हुई थीं। उसने इन मूर्तियों को क्रमशः त्रिप्रयार, तिरुमूज़िक्कलम, कूडलमाणिक्कम और पैम्मेल में स्थापित किया, जहाँ चारों स्थानों पर बने मंदिर आज देश-विदेश में विख्यात हैं।
मंदिरों में पूजा-अर्चना के लिए प्रतिदिन भक्तों का मेला लगा रहता है। विश्व प्रसिद्ध त्रिप्रयार श्रीराम मंदिर में भगवान श्रीराम के दिव्य स्वरूप के दर्शन मात्र से ही जो आनंद व शांति की अनुभूति होती है, वह कठोर से कठोर तपस्या से भी प्राप्त नहीं होती। श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि वर्ष में एक बार चारों भाइयों का मिलन भी होता है।
सरयू नदी के किनारे :-
यह मंदिर सरयू नदी के किनारे स्थित है और यहां आकर साक्षात भगवान से साक्षात्कार की अनुभूति होती है। सरयू नदी दो समुद्रों में मिलती है। मंदिर परिसर में एक गर्भगृह और एक नमस्कार मंडपम है, जहाँ रामायण काल के चित्र हैं, साथ ही नवग्रहों को दर्शाती हुई लकड़ी की नक्काशी और प्राचीन भित्तिचित्र भी विद्यमान हैं।