Back to all Post

शिव जी का सच्चा भक्त कौन है ? एक शिव भक्त की कहानी

सोने का थाल की कहानी (shiv bhakt stories):-

एक नगर में भगवान शिव का एक भव्य मंदिर था । जहाँ हर वर्ष दूर – दूर से भक्तजन शिवजी के दर्शन के लिए आते रहते थे । श्रावण का महिना था । दूर – दूर से कावड़िये कावड़ लेकर भगवान शिव को जलाभिषेक करने आये हुए थे । मंदिर का परिसर भक्तों की भीड़ से भरा हुआ था ।

तभी अचानक आकाश में बिजलियाँ हुई और सोने का एक थाल उतरा । उसी के साथ एक भविष्यवाणी हुई कि “जो कोई भगवान शंकर का सच्चा भक्त और प्रेमी होगा उसी को यह थाल मिलेगा ।

भविष्यवाणी :-

मंदिर के परिसर में उपस्थित सभी लोगों ने यह भविष्यवाणी सुनी । धीरे – धीरे सभी इकट्ठे हो गये । जो लोग मंदिर की व्यवस्था देखते थे, उन्हें तो पूरा विश्वास था कि यह थाल हमें मिलेगा । इसलिए वे सबसे आगे जाकर खड़े हो गये ।

सबसे पहले एक पंडितजी आये और बोले – “ देखिये ! मैं प्रतिदिन महादेव का अभिषेक करता हूँ, अतः मैं ही भोलेनाथ का सबसे निकटवर्ती प्रेमी और भक्त हूँ । इसलिए थाल मुझे मिलना चाहिए ।” इतना कहकर पंडितजी ने थाल उठाया । जैसे ही पंडितजी ने थाल उठाया, थाल पीतल का हो गया । यह देखकर पंडितजी बड़े लज्जित हुए । उन्होंने थाल यथास्थान पर रखा और वहाँ से निकल गये ।

इसी प्रकार वहाँ उपस्थित सभी पंडितों ने खुद को आजमाया । लेकिन शायद उनमें से कोई भी सच्चा भक्त नहीं था । उन्हें भी थाल यथास्थान पर रखकर चले जाना पड़ा ।

इसके बाद उस नगर के राजा का आगमन हुआ । राजा साब आगे आये और बोले – “ मैंने महादेव के मंदिर में बड़ी भारी दान दक्षिणा दी है । इसलिए यह थाल मुझे मिलना चाहिए ।” इतना कहकर राजा साब आगे बढे और थाल उठाया । जैसे ही राजा ने थाल उठाया, थाल ताम्बे का हो गया । यह देखकर महाराज भी लज्जित हुए और थाल यथास्थान रखकर एक तरफ खड़े हो गये ।

महात्मा और भक्त पधारे:-

इसके बाद इसी तरह एक से बढ़कर एक दानी – महात्मा और भक्त पधारे और थाल उठाया लेकिन किसी के हाथ में कुछ और किसी के हाथ में कुछ हो गया लेकिन सोने का नहीं रहा । तब लोगों को पता चला कि हममें से कोई भी महादेव का सच्चा भक्त नहीं है ।

उसी समय एक किसान का आगमन हुआ । वो बिचारा महीनों बाद आज चातुर्मास के सोमवार के शुभ अवसर पर शिवजी के दर्शन करने आया था । गरीबी और गृहस्थी के बोझ तले दबा दिनरात खेतों में मेहनत – मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का गुजारा करता था । अभी रास्ते में आ ही रहा था कि कोई भिखारी मिल गया और कुछ खाने को मांगने लगा । इस किसान को दया आ गई । अपने खाने के लिए जो खाना लाया था वो उसने उस भिखारी को दे दिया । थाल के बारे में इसने भी सुना था लेकिन इसने उस ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया । सीधा मंदिर में गया और महादेव का पूजन करके बाहर आ गया । परिक्रमा करके जाने को हुआ तभी पीछे से एक व्यक्ति बोला – “ भाई ! तुम भी थाल को उठाकर देख लो । हो सकता है तूम ही वह सच्चे भक्त हो जिसके लिए यह थाल आया है ।”

किसान को लगा वह व्यक्ति उसका मजाक बना रहा है । किसान ने हँसते हुए कहा – “ भाई ! मैं तो कभी कोई पूजा – पाठ भी नहीं करता, महीनों ने एकाध बार मंदिर आ पाता हूँ, मैं कायेका का सच्चा भक्त !”

वह अजनबी बोला – “ भाई ! हम तो देख चुके है । हमारी भक्ति तो दो कोड़ी की भी नहीं है । अब तुम भी अपना हाथ लगाकर देख लो । सोने का थाल मिले न मिले किन्तु पता चल जायेगा कि तुम्हारी भक्ति में कितनी सच्चाई है ।”

लोगों के बहुत आग्रह करने पर आखिर उस भोलेभाले किसान ने जाकर थाल उठा ही लिया । जैसे ही उसने थाल उठाया लोगों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा । सोने का थाल रौशनी से चमचमाने लगा । यह देख सब लोगों में खुशियों की लहर दौड़ गई । सभी लोग उसके जयकारे लगाने लगे और पूछने लगे कि “भाई ! तुम ही सच्चे भक्त हो । अब हमें भी बता दो कि कैसी भक्ति करते हो ? जिससे महादेव तुमसे इतने प्रसन्न है ?”

Also Read: श्री दूधेश्वर नाथ महादेव इतिहास व महात्म्य

किसान बोला:-

तो किसान बोला – “ भाई ! मैं कोई भक्ति नहीं करता । मैं केवल दिनभर खेतों में काम करता हूँ और थोड़ा समय निकालकर जरूरतमंद लोगों की मदद करता हूँ । इसके अलावा मैं कोई विशेष कार्य नहीं करता ।”

लोग पूछने लगे – “ तूम लोगों की मदद क्यों करते हो ?”

shivratri kyu manate hai

हंसते हुए किसान बोला – “ सुकून ! दूसरों के चेहरे पर मुस्कान देखकर मुझे जो आनंद और ख़ुशी होती है, उसे मैं शब्दों में बयाँ नहीं कर सकता । शायद यही कारण है कि महादेव मुझसे खुश है ।”

इसलिए हमेशा याद रखे

सत्कर्म का आरंभ भी आनंद से होता है और अंत भी आनंददायक होता है

दुष्कर्म का आरंभ भी दुःख से होता है और अंत भी दुखदायक होता है

आप सैकड़ो मील की यात्रा करके भी दूसरों का दिल दुखाते है तो आपकी वह तपस्या, साधना और महादेव का दर्शन धुल के बराबर है ।

Add Your Comment