जय दूधेश्वर महादेव
{शारदीय नवरात्रि 2022 सप्तम् दिवस }
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
आज मां भगवती जगद् जननी मां जगदम्बा के सप्तम् स्वरूप मां कालरात्रि का पूजन पूज्य गुरुदेव श्रीमहन्त नारायण गिरि जी महाराज श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर गाजियाबाद अन्तर्राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के अध्यक्षता एवं साान्निध्य में सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ महादेव मठ मन्दिर गाजियाबाद में मां भगवती का पूजन श्री दुर्गासप्तशती का पाठ नवार्ण मंत्र(ऊं ऐं ह्लीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै) का जाप आचार्य नित्यानंद जी एवं दूधेश्वर वेद विद्यालय के छात्रों द्वारा चल रहा है ,साथ ही दूधेश्वर मठ की शाखा प्राचीन सिद्ध पीठ बाला त्रिपुरा सुन्दरी देवी मन्दिर मां भगवती का बाल स्वारूप धारण किया था , दिल्ली गेट में महन्त गिरिशा नन्द गिरि जी के आयोजन में पं राम मनोहर अग्निहोत्री जी एवं अन्य ब्राह्मणों द्वारा पाठ पूजन जाप हवन यज्ञ चल रहा है ,
नित्यानंद आश्रम श्रीधाम वृन्दावन में महन्त वी पी गिरि जी के आयोजन में आचार्य अमित कुमार शर्मा जी के द्वारा शतचंडी अनुष्ठान चल रहा है , कोटेश्वर महादेव मन्दिर गुडानाला सिवाना राजस्थान में पूज्य गुरुदेव श्रीमहन्त नारायण गिरि जी महाराज के पावन सान्निध्य एवं मुख्य आतिथ्य में योगीराज महन्त सत्यम गिरि जी के आयोजन में चल रहे शतचंडी महायज्ञ,श्रीमद् भागवत कथा श्री विचाराराम जी ने भागवत के प्रसंग भगवान के रूपों की कथा उपस्थिति जनमानस को श्रवण करा रहे हैं आज कोटेश्वर महादेव में चल रही साप्ताहिक श्रीमद् भागवत कथा का आज सायंकाल 5 बजे विश्राम हुआ ,जसोल धाम बालोतरा बाड़मेर राजस्थान में माता राणी भटियाणी माता के चरणों में आचार्य अभिषेक जोशी जी के नेतृत्व में शतचंडी यज्ञ अनुष्ठान चल रहा है ,
साथ ही रानी रूपादे,रावल मल्लीनाथ जी की समाधी पालिया , नर्मदेश्वर महादेव,जसोल गढ़ में आचार्य तोयराज उपाध्याय जी , आचार्य विकास पाण्डेय जी,दीपक भट्ट जी , दीपांकर पाण्डेय जी के द्वारा मां भगवती का पूजन पाठ जप चल रहा है , विशेष रूप से महाराज श्री का नवरात्रि अनुष्ठान रानी भटियानी माता के चरणों में चल रहा है ,जिसके यजमान एवं आयोजक रावल किशन सिंह जी,कुंवर हरिश्चन्द्र सिंह जी महाराज श्री के सान्निध्य में अनुष्ठान में भाग लेकर धर्मलाभ प्राप्त कर रहे हैं ,आज विशेष रूप से महाराज श्री ने आज नागाणा जोधपुर में राठौड़ वंश की कुलदेवी नागणेची माता मन्दिर में जाकर महाराज श्री ने दर्शन पूजन किया सप्तमी तिथि को पूजन का बहुत बड़ा महत्व है आज महाराज श्री के साथ जसोल के रावल किशन सिंह जी,कुंवर हरिश्चन्द्र सिंह जी उनकी लाडी सा ,ईश्वर सिंह जी भवरानी ,राम सिंह जी समदड़ी ,नकुल सिंह जी धानसा,सरपंच महेन्द्र सिंह जी धानसा,हुक्म सिंह जी धानसा, नागाणा धाम के ट्रस्ट के अध्यक्ष उमेश सिंह आरावा जी ने महाराज श्री को नागणेची माता के दर्शन करवाये महाराज श्री का स्वागत सम्मान किया ,:–(राठौड वंश की कुल देवी माँ नागणेची जी का इतिहास)एक बार बचपन में राव धुहड जी ननिहाल गए , तो वहां उन्होने अपने मामा का बहुत बडा पेट देखा ।बेडोल पेट देखकर वे अपनी हँसी रोक नही पाएं ।और जोर जोर से हस पडे ।
तब उनके मामा को गुस्सा आ गया और उन्होने राव धुहडजी से कहा की सुन भांनजे । तुम तो मेरा बडा पेट देखकर हँस रहे होकिन्तु तुम्हारे परिवार को बिना कुलदेवी देखकर सारी दुनिया हंसती हैतुम्हारे दादाजी तो कुलदेवी की मूर्ति भी साथ लेकर नही आ सकेतभी तो तुम्हारा कही स्थाई ठोड-ठिकाना नही बन पा रहा हैमामा के ये कडवे बोल राव धुहडजी के ह्रदय में चुभ गयेउन्होने उसी समय मन ही मन निश्चय किया की मैं अपनी कूलदेवी की मूर्ति अवश्य लाऊगां ।और वे अपने पिताजी राव आस्थानजी के पास खेड लोट आएकिन्तु बाल धुहडजी को यह पता नही था कि कुलदेवी कौन हैउनकी मूर्ति कहा है ।और वह केसे लाई जा सकती है आखिर कार उन्होने सोचा की क्यो न तपस्या करके देवी को प्रसन्न करूं ।
वे प्रगट हो कर मुझे सब कुछ बता देगी ।और एक दिन बालक राव धुहडजी चुपचाप घर से निकल गये ।और जंगल मे जा पहुंचे ।वहा अन्नजल त्याग कर तपस्या करने लगे ।बालहट के कारण आखिर देवी का ह्रदय पसीजा ।
उन्हे तपस्या करते देख देवी प्रकट हुई ।तब बालक राव धुहडजी ने देवी को आप बीती बताकर कहा की हे माता मेरी कुलदेवी कौन है ।और उनकी मूर्ति कहा है ।और वह केसे लाई जा सकती है ।देवी ने स्नेह पूर्वक उनसे कहा की सून बालकतुम्हारी कुलदेवी का नाम चक्रेश्वरी है ।और उनकी मूर्ति कन्नौज मे है ।तुम अभी छोटे हो ,बडे होने पर जा पाओगें ।तुम्हारी आस्था देखकर मेरा यही कहना है । की एक दिन अवश्य तुम ही उसे लेकर आओगे ।किन्तु तुम्हे प्रतीक्षा करनी होगी कलांतर में राव आस्थानजी का सवर्गवास हुआ ।और राव धुहडजी खेड के शासक बनें ।
तब एक दिनराजपूरोहित पीथडजी को साथ लेकर राव धूहडजी कन्नौज रवाना हुए ।कन्नौज में उन्हें गुरू लुंम्ब रिषि मिले ।उन्होने उन्हे माता चक्रेश्वरी की मूर्ति के दर्शन कराएं और कहा की यही तुम्हारी कुलदेवी है ।इसे तुम अपने साथ ले जा सकते हो ।जब राव धुहडजी ने कुलदेवी की मूर्ति को विधिवत् साथ लेने का उपक्रम किया तो अचानक कुलदेवी की वाणी गुंजी – ठहरो पूत्रमें ऐसे तुम्हारे साथ नही चलूंगी में पंखिनी ( पक्षिनी )के रूप में तुम्हारे साथ चलूंगीतब राव धुहडजी ने कहा हे माँ मुझे विश्वास केसे होगा की आप मेरे साथ चल रही है ।तब माँ कुलदेवी ने कहा जब तक तुम्हें पंखिणी के रूप में तुम्हारे साथ चलती दिखूं तुम यह समझना की तुम्हारी कुलदेवी तुम्हारे साथ हैलेकिन एक बात का ध्यान रहे , बीच में कही रूकना मत राव धुहडजी ने कुलदेवी का आदेश मान कर वैसे ही किया ।राव धुहडजी कन्नौज से रवाना होकर नागाणा ( आत्मरक्षा ) पर्वत के पास पहुंचते पहुंचते थक चुके थे ।तब विश्राम के लिए एक नीम के नीचे तनिक रूके ।अत्यधिक थकावट के कारण उन्हें वहा नीदं आ गई ।जब आँख खुली तो देखा की पंखिनी नीम वृक्ष पर बैठी है राव धुहडजी हडबडाकर उठें और आगे चलने को तैयार हुए तो कुलदेवी बोली पुत्र , मैनें पहले ही कहा था कि जहां तुम रूकोगें वही मैं भी रूक जाऊंगी और फिर आगे नही चलूंगी ।अब मैं आगे नही चलूंगी तब राव धूहडजी ने कहा की हें माँ अब मेरे लिए क्या आदेश है ।कुलदेवी बोली की तुम ऐसा करना की कल सुबह सवा प्रहर दिन चढने से पहले – पहले अपना घोडा जहाॅ तक संभव हो वहा तक घुमाना यही क्षैत्र अब मेरा ओरण होगा और यहां मै मूर्ति रूप में प्रकट होऊंगी तब राव धुहडजी ने पूछा कीहे माँ इस बात का पता कैसे चलेगा की आप प्रकट हो चूकी है । तब कुलदेवी ने कहा कि पर्वत पर जोरदार गर्जना होगी बिजलियां चमकेगी और पर्वत से पत्थर दूर दूर तक गिरने लगेंगे उस समय । मैं मूर्ति रूप में प्रकट होऊंगी किन्तु एक बात का ध्यान रहे , मैं जब प्रकट होऊंगी तब तुम ग्वालिये से कह देना कि वह गायों को हाक न करे , अन्यथा मेरी मूर्ति प्रकट होते होते रूक जाएगी अगले दिन सुबह जल्दी उठकर राव धुहडजी ने माता के कहने के अनुसार अपना घोडा चारों दिशाओं में दौडाया और वहां के ग्वालिये से कहा की गायों को रोकने के लिए आवाज मत करना , चुप रहना , तुम्हारी गाये जहां भी जाएगी ,मै वहां से लाकर दूंगा कुछ ही समय बाद अचानक पर्वत पर जोरदार गर्जना होने लगी , बिजलियां चमकने लगी और ऐसा लगने लगा जैसे प्रलय मचने वाला हो डर के मारे ग्वालिये की गाय इधर – उधर भागने लगी ग्वालियां भी कापने लगा इसके साथ ही भूमि से कुलदेवी की मूर्ति प्रकट होने लगी । तभी स्वभाव वश ग्वालिये के मुह से गायों को रोकने के लिए हाक की आवाज निकल गई ।
बस, ग्वालिये के मुह से आवाज निकलनी थी की प्रकट होती होती मुर्ति वही थम गई केवल कटि तक ही भूमि से मूर्ति बाहर आ सकी ।देवी का वचन था । वह भला असत्य कैसे होता ।राव धुहडजी ने होनी को नमस्कार किया । और उसी अर्ध प्रकट मूर्ति के लिए सन् 1305, माघ वदी दशम सवत् 1362 ई. में मन्दिर का निर्माण करवाया ,क्योकि चक्रेश्वरी नागाणा में मूर्ति रूप में प्रकटी ,अतः वह चारों और नागणेची रूप में प्रसिध्ध हुई इस प्रकार मारवाड में राठौडों की कुलदेवी नागणेची कहलाई!साथ ही आज ग्राम भाडियावास करती माता का दर्शन पूजन हुआ ,साथ ही महाराज श्री से पूजन करवाकर करणी माता उद्यान में भक्तो को बैठने के लिये पत्थर की बेंच बनवाकर आज जसोल माजीसा धाम की ओर रावल किशन सिंह जी कुंवर हरिश्चन्द्र सिंह जी ने आज करणी माता उद्यान में भेट किया ,मनोहर लाल जी के कपड़ों के फैक्ट्री में जाकर महाराज श्री ने पागलिये करके आशीर्वाद दिया,आज सप्तमी को सायंकाल महाराज श्री रांची भटियाणी माता मन्दिर में आरती पूजन में महाराज श्री ने भाग लिया ,कल अष्टमी पूजन हवन यज्ञ होगा नवमी को नवरात्रि पूजन अनुष्ठान पूर्ण होगा दशमी को महाराज श्री द्वारा पांचों स्थान पूजन पूर्ण होगा ।आज सप्तम् स्वारूप मां कालरात्रि:- माता कालरात्रि का स्वरूपदेवी कालरात्रि कृष्ण वर्ण की हैं। वे गधे की सवारी करती हैं। देवी की चार भुजाएँ हैं, दोनों दाहिने हाथ क्रमशः अभय और वर मुद्रा में हैं, जबिक बाएँ दोनों हाथ में क्रमशः तलवार और खडग हैपौराणिक कथा :- शुंभ और निशुंभ नामक दो दानव थे जिन्होंने देवलोक में तबाही मचा रखी थी। इस युद्ध में देवताओं के राजा इंद्रदेव की हार हो गई और देवलोक पर दानवों का राज हो गया। तब सभी देव अपने लोक को वापस पाने के लिए माँ पार्वती के पास गए। जिस समय देवताओं ने देवी को अपनी व्यथा सुनाई उस समय देवी अपने घर में स्नान कर रहीं थीं, इसलिए उन्होंने उनकी मदद के लिए चण्डी को भेजा।
जब देवी चण्डी दानवों से युद्ध के लिए गईं तो दानवों ने उनसे लड़ने के लिए चण्ड-मुण्ड को भेजा। तब देवी ने माँ कालरात्रि को उत्पन्न किया। तब देवी ने उनका वध किया जिसके कारण उनका नाम चामुण्डा पड़ा। इसके बाद उनसे लड़ने के लिए रक्तबीज नामक राक्षस आया। वह अपने शरीर को विशालकाय बनाने में सक्षम था और उसके रक्त (खून) के गिरने से भी एक नया दानव (रक्तबीज) पैदा हो रहा था। तब देवी ने उसे मारकर उसका रक्त पीने का विचार किया, ताकि न उसका खून ज़मीन पर गिरे और न ही कोई दूसरा पैदा हो।
माता कालरात्रि को लेकर बहुत सारे संदर्भ मिलते हैं। आइए हम उनमें से एक बताते हैं कि देवी पार्वती दुर्गा में कैसे परिवर्तित हुईं? मान्यताओं के मुताबिक़ दुर्गासुर नामक राक्षस शिव-पार्वती के निवास स्थान कैलाश पर्वत पर देवी पार्वती की अनुपस्थिति में हमला करने की लगातार कोशिश कर रहा था। इसलिए देवी पार्वती ने उससे निपटने के लिए कालरात्रि को भेजा, लेकिन वह लगातार विशालकाय होता जा रहा था। तब देवी ने अपने आप को भी और शक्तिशाली बनाया और शस्त्रों से सुसज्जित हुईं। उसके बाद जैसे ही दुर्गासुर ने दोबारा कैलाश पर हमला करने की कोशिश की, देवी ने उसको मार गिराया। इसी कारण उन्हें दुर्गा कहा गया।
हर हर महादेव
विश्व संवाद सम्पर्क सचिवअमित कुमार शर्माश्री दूधेश्वर नाथ महादेव मठ मन्दिर गाजियाबाद उत्तर प्रदेश