श्री श्री 1008 श्रीमहंत महाराज
प्राकट्य तिथि
संवत् 1511 वि० तदनुसार 3 नवंबर ,1454 ई०
भगवान
श्री दूधेश्वर नाथ शिवलिंग (शिव जी)
प्रसिद्ध
स्वयंभू, ऐतिहासिकता , शिवरात्रि काँवड़ यात्रा
दिल्ली और एनसीआर के मध्य ग़ाज़ियाबाद में स्थित है बहुत ही प्रसिद्द मंदिर जो अपने आप में ऐतिहासिक महत्व रखता है। दिल्ली और एनसीआर के मध्य ग़ाज़ियाबाद में स्थित है बहुत ही प्रसिद्द मंदिर जो अपने आप में ऐतिहासिक महत्व रखता है। जिसको सभी श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव के नाम से जानते है। स्वयंभू (जो स्वयं प्रकट हुए )श्री दूधेश्वर नाथ शिवलिंग का कलयुग में प्राकट्य सोमवार , कार्तिक शुक्ल ,वैकुन्ठी चतुर्दशी संवत् 1511 वि० तदनुसार 3 नवंबर ,1454 ई० को हुआ था | इस दिव्य लिंग की ही तरह कलियुग में इसके प्राकट्य की कथा भी बड़ी दिव्य है | अभी श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के 16th पीठाधीश्वर श्री महंत नारायण गिरी जी है |
कलियुग में प्राकट्य पूर्व ग्राम्य क्षेत्र कैलाश का अपभ्रंश कैला गाँव श्री दूधेश्वर नाथ महादेव ज्योतिर्लिंग के निकट ही है | पुराणों में वर्णित हरनंदी (हिन्डन ) आज भी पास ही बहती है |
यह भी किसी से छिपा नहीं है कि भगवान् दूधेश्वर अपने जिस भक्त पर अति प्रसन्न होते हैं ,उसे स्वर्ण प्रचुर मात्रा में मिलता है | ऋषि विश्वेश्रवा और रावण को भी तो दूधेश्वर की पूजा-अर्चना से ही सोने की लंका प्राप्त हुई थी | इतिहास गवाह है कि भगवान् दूधेश्वर की कृपा और मठ के सिद्ध संत-महंतों के निर्मल आशीर्वाद से लाखों लोग कष्टों से मुक्ति पा चुके हैं | यह सिलसिला त्रेता युग से आज तक निरंतर जारी है |
प्रसिद्ध उद्योगपति, समाजसेवी व धर्मप्रेमी श्री धर्मपाल गर्ग के कर कमलो द्वारा प्राचीन दूधेश्वरनाथ महादेव मंदिर के जीर्णोद्धार हुआ।
दिव्य वास्तविक गाथा:-
कलियुग में प्राकट्य पूर्व ग्राम्य क्षेत्र कैलाश का अपभ्रंश कैला गाँव श्री दूधेश्वर नाथ महादेव ज्योतिर्लिंग के निकट ही है | पुराणों में वर्णित हरनंदी (हिन्डन ) आज भी पास ही बहती है |
निकटवर्ती गाँव कैला की गायों को चरवाहे टीले पर चराने के लिये लाते थे | गायों को चरने के लिये छोडकर ग्वाले पेड़ों के नीचे विश्राम करते थे | टीले के निकट ही एक तलाब था ,उससे गायें जल पिया करतीं थी | जब गायें टीले पर एक स्थान विशेष पर पहुंचतीं तो उनके थनों से स्वत:दूध टपकने लगता था | यह बड़ी विचित्र बात थी ,जिसकी ओर ग्वालों ने कभी ध्यान ही नहीं दिया था | लेकिन कभी-न-कभी तो किसी का ध्यान इस ओर जाना ही था |
हुआ यूँ कि जब शाम के समय गायें अपने-अपने मालिकों के घर पहुँचतीं और उनका दूध निकालने का उपक्रम किया जाता तो कई गायें बिल्कुल दूध नहीं देती थीं तथा अनेक बहुत कम दूध देती थीं | जब किसी न किसी गाय के साथ ऐसा होता पाया गया तो चर्चा शुरू हुई | चर्चा मे सबसे पहली बात तो यही कहि गयी यह चरवाहों की करतूत हो सकती है | गायों को घर पहुँचाने से पहले ही वे उनका दूध निकाल लेते हैं | लेकिन सभी लोग इस बात से सहमत नहीं थे क्योंकि ज्यादातर चरवाहे पीदियों से नगरवासियों की गायें चरते आ रहे थे और कभी किसी की ऐसी शिकायत नहीं मिली थी |
मगर प्रश्न तो सिर उठाये खड़ा ही था कि गायों का दूध आखिर चला कहाँ जाता है ?
लगातार चर्चा के बाद यही निर्णय हुआ की हो न हो चरवाहे ही गायों का दूध निकाल कर पी जाते हैं ,इसलिये उन्हें धमकाया जाये ताकि वे अपनी हरकत से बाज आयें | इस विचार के साथ ही गाँव वालों ने ग्वालों को धमकाया —‘तुम गायों का दूध निकालकर पी जाते हो ,ऐसा करते तुम्हें शर्म नहीं आती | गाय के दूध की चोरी जैसा पाप क्यों करते हो ?’ ग्वालों ने कहा —‘हम कसम खा कर कहते हैं कि गायों का एक बूंद दूध भी हमने आज तक नहीं निकाला | हम पर ऐसा लांछन मत लगाओ | हम बिल्कुल निर्दोष हैं |
इस पर नाराज गाँव वालों ने कहा —‘अगर तुम निर्दोष हो ,अगर तुम निरपराध हो ,अगर तुम सच्चे हो तो फिर कौन गायों का दूध निकालकर ले जाता है –बताओ ! देखो भई ! इस सारे मामले में दोष तुम्हारा ही बनता है | अब यह जिम्मेदारी भी तुम्हारी ही है कि खुद को निर्दोष साबित करो और दूध चुरानेवाले को हमारे सामने लाकर खड़ा करो |
चरवाहे थे तो बिल्कुल निरपराध ,निर्दोष | मगर मामला उन्हें ही सुलझाना था | उन्हें इस बात की चिन्ता सताने लगी कि इस झूठे आरोप से कैसे मुक्ति पाई जाये ? कैसे गाँव वालों को अपने निर्दोष होने का विश्वास दिलाया जाये ? ग्वालों ने परस्पर विचार-विमर्श किया और निर्णय किया कि सभी ग्वाले गाय चराते समय पूरी तरह से सजग व सतर्क रहेंगे |
निर्णय के अनुसार समस्त ग्वाले दिनभर चौकस रहते | पेड़ों के नीचे बैठते जरुर ,मगर सोते नहीं थे | उन्होंने इस बात का पता लगाना शुरू किया कि कौन उन्हें बदनाम करने के लिये यह नीच हरकत कर रहा है |
एक दिन अचानक ग्वालों ने देख की गायें इधर-उधर चरती रहीं तो कुछ नहीं हुआ लेकिन जैसे ही टीले के ऊपर एक स्थान विशेष पर पहुँची तो उनके थानों से दूध स्वत:ही चुने लगा | कुछेक गायों के थनों से तो बाकायदा दूध की धार ही बहने लगी | जैसे ही गायें उस स्थान विशेष से अलग हटीं उनके थनों से दूध टपकना बन्द हो गया | इस अनोखी घटना को देख सभी चरवाहे हतप्रभ रह गये | यह महान आश्चर्यजनक घटना थी | चकित ग्वालों को एक बात की तो तसल्ली हो गयी कि अब उनपर लगा दूध चोरी का लांछन हट जायेगा |
शाम को लोटकर चरवाहों ने गाँवमें गायों के मालिकों से उक्त घटना के बारे में बताया तो सभी ने उनकी इस बात को मानने से इंकार कर दिया | गाँव वालों ने ग्वालों से कहा —‘तुम एक झूठ को छिपाने के लिये अब दूसरा झूठ बोल रहे हो | ऐसी मनघडंत कहानी किसी और को सुनाना | हम क्या तुम्हें इतने मुर्ख दिखाई देते हैं कि तुम्हारी इस बेसिर-पैर की कहानी को सच मान लेंगे | चुपचाप असली बात बताओ ,नहीं तो तुम्हारे हक में अच्छा नहीं होगा |’
ग्वालों ने गोपालकों को समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन मामला ढ़ाक के तीन पात वाला साबित हुआ | गौपालक उनकी कोई बात सुनने को तैयार नहीं थे | अन्त में काफी बहस के बाद तय हुआ कि अगले दिन ग्वालों के साथ गोपालक भी जायेंगे और घटना की सत्यता की स्वयं जाँच करेंगे
दुसरे दिन गायों के साथ ग्वाले व गाँव वाले भी टीले की ओर चल पड़े | टीले के पास गायों को चरने के लिये छोड़ दिया गया | गायें टीले पर इधर-उधर बिखर गयीं | ग्वालों के साथ ही उत्सुक गाँव वाले भी पेड़ों की छावं में बैठ गये | काफी देर के इंतजार के बाद गाँव वालों ने अपनी आँखों से उस चमत्कार को अपने सामने होते देखा ,जिसके बारे में चरवाहों ने उन्हें बताया था | टीले के स्थान विशेष पर पहुँची कुछ गायों के थानों से स्वत: ही दूध टपकने लगा | बाद में कुछ गायों के थानों से दूध की धार भी बहते देखी |
गाँव वालो को ग्वालों की बात पर विशवास हो गया था ,उन्होंने ग्वालों से क्षमा मांगी और उन्हें गाँव में पहुँच कर सबके सामने दोषमुक्त कर दिया | इस विचित्र चमत्कारी घटना की खबर जंगल में आग की तरह आस-पास के तमाम क्षेत्रों में फैल गई | हर तरफ यही चर्चा हो रही थी —‘क्या कारण है की स्थान विशेष पर गायों के पहुँचने पर दूध की धार स्वत: गिरने लगती है |’
अदभुत दैवी रहस्य:-
गाँव वालों ने फैसला किया की उस स्थान की खुदाई करके इस अदभुत दैवी रहस्य से पर्दा उठाया जाये | उधर कोट नामक गाँव में उच्चकोटि के ,दसनामी जूना अखाड़े के एक जटिल सन्यासी सिद्ध महात्मा को स्वप्न मे भगवान् शिव ने दर्शन देकर इस महत्वपूर्ण स्थान पर पहुँचने का आदेश दिया | भगवान् शंकर के आदेश का पालन करते हुए सिद्ध संत शिष्यों सहित इस पावन स्थल पर पहुँच गये |
खुदाई का काम शुरू हुआ ,शीघ्र ही एक जलहरी और एक दिव्य शिवलिंग द्रष्टिगोचर हुआ | गाँव वाले इस अदभुत शिवकृपा से अभिभूत थे | इस दिव्य स्थान पर जल स्रोत भी होना चाहिए —ऐसा बुजुर्गों ने विचार किया | खुदाई करने पर पास ही एक अनोखा कुआं निकला | जिसका जल कभी गंगाजल जैसा ,कभी दूध जैसा सफ़ेद तो कभी मीठा होता था | यह कुआँ आज भी सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर में विधमान है |
शिवाजी महाराज ने यहाँ हवन भी किया था | उनके द्वारा जमीन खुदवा कर गहराई में बनवाया गया हवन-कुंड आज भी यहाँ मौजूद है | इसी हवन-कुंड के निकट वेद विद्यापीठ की स्थापना वर्तमान श्रीमहंत नारायण गिरी जी महाराज ने की है ,जिसमे देश के कोने-कोने से आये विद्यार्थी वेद का ज्ञान अर्जित कर रहें हैं |
कहा जाता है कि औरंगजेब के कारागार से निकल भागने के बाद छत्रपति शिवाजी यहाँ आये थे और यहाँ एकांत में हवन-पूजन व भगवान् दूधेश्वर का अभिषेक करने के बाद ही मराठा सैनिक मुगलों के दांत खट्टे करने के लिये निकला करते थे | यह क्रम काफी लम्बे समय तक चला था | पण्डित गंगा भट्ट द्वारा राजतिलक किये जाने के उपरांत शिवाजी ने श्री दूधेश्वर नाथ महादेव की महिमा से प्रभावित होकर महाराष्ट्र में एक गाँव बसाकर उसका नाम दूधेश्वर ग्राम रखा ,जो आज भी स्थित है | यह भी कहा जाता है कि शिवाजी महाराज ने महाराष्ट्र प्रस्थान से पूर्व पूर्ण विधि-विधान से श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था
श्री धर्मपाल गर्ग जी ने जब ऐतिहासिक सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ महादेव मठ –मंदिर के जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया तो उनका नाम स्वत: ही इतिहास के पन्नो में अंकित हो गया क्योंकि लगभग चार सौ वर्ष पूर्व इस प्रख्यात मंदिर का जीर्णोद्धार वीर मराठा छत्रपति शिवाजी महाराज ने कराया था | तब के बाद अब गाज़ियाबाद के प्रसिद्ध समाज सेवी व परम धार्मिक शिव चरण अनुरागी श्री धर्मपाल गर्ग जी ने अपने पूजनीय माता-पिता जी की याद में बने ट्रस्ट श्री आत्माराम नर्वदा देवी चेरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से हिरण्यगर्भ ज्योतिर्लिंग श्री दूधेश्वर नाथ महादेव के मंदिर का भव्य जीर्णोद्धार कराया है |
सिद्ध पीठ हिरण्यगर्भ ज्योतिर्लिंग श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ का संचालन श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा से संबंध महंत परंपरा से होता है।
श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर श्री शंकराचार्य द्वारा स्थापित महान मठ परंपरा का ध्वज वाहक है। मठ का अर्थ देवगृह ,छात्रावास, मंदिर अथवा स्थान है जिसमें एक महंत जी के संरक्षण में अनेक साधु निवास करते हैं आम बोलचाल की भाषा में मठ को साधु-संतों की धर्मशाला भी कहा जाता है।
गुजराती भाषा में जूना का अर्थ प्राचीन है जूना, अग्नि, आवाहन, निरंजनी, अटल ,आनंद और महानिर्वाणी 7 अखाड़ों में जूना अखाड़ा ही सबसे प्राचीन है।
भगवान दत्तात्रेय जी, भगवान दत्तात्रेय को योगियों का गुरुदेव भी कहा जाता है। इनका असाधारण कार्य
है अखंड रूप से ज्ञान का दान करते रहना।
श्री विष्णु पुराण वायु पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण, मार्कंडेय पुराण, मत्स्य पुराण, ब्रह्मांड पुराण, अग्नि पुराण, पद्म पुराण और श्रीमद्भागवत पुराण आदि में भगवान श्री दत्तात्रेय का वर्णन उपलब्ध है।
चार प्रकार के सन्यासी:- हंस, परमहंस बहुदक और कुटीचर। इनमें से हंस और परमहंस तो शास्त्रज्ञ थी। बहुदक सन्यासी रमते राम थे पूरे देश में भ्रमण कर सनातन धर्म का प्रचार करने वाले और कुटीचर सन्यासी हुए थे जो आश्रमों व मठों में रहकर धर्म कार्य में लगे कुटीचर सन्यासी ही मठ वासी हुए।
अज्ञान के अंधकार को दूर करके जो हृदय में ज्ञान का प्रकाश करते हैं उन्हें गुरु कहा जाता है। भगवान के 24 अवतारों में छठा अवतार भगवान दत्तात्रेय जी का है। वह योगियों व साधकों के हृदय में ज्ञान का प्रकाश फैलाने आये। गिरनार उनका सिद्ध पीठ है। उनका वेश विचित्र है उनके साथ गऊ और चार कुत्ते रहते हैं उनके दर्शन बड़े भाग्यशाली और तपस्वी को मिलते हैं।
यह दोनों तो भगवान के अवतारी माने जाते हैं ऐसे अवतारी पुरुष तीन मुख वाले भगवान दत्तात्रेय जी को जूना अखाड़ा के सन्यासियों ने अपने इष्ट माना। धर्म में जिनकी संपत्ति है ऐसे गृह रहित सन्यासियों को अपने इष्ट भगवान दत्तात्रेय का सर्वाधिक प्रभावशाली नमस्कार मंत्र "ॐ नमो नारायणाय नारायणा " भी मिला। श्रीमद्भागवत में स्पष्ट किया है भगवान विष्णु के नामों का स्मरण करने से श्रेष्ठ और कोई कार्य नहीं।
ऐतिहासिक सिद्ध पीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर की श्रीमहंत परम्परा अति प्राचीन एवं समृद्धशाली है | इस परम्परा में ऐसे-ऐसे सिद्ध संत-महात्मा हुए हैं ,जिन्होंने न केवल मंदिर के उत्थान के लिये कार्य किया बल्कि आध्यात्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र में ऐसे अभूतपूर्व कार्य किये जो आम आदमी को अचंभित कर देने वाले हैं |
लगभग 560 वर्ष पूर्व ज्ञात प्रथम श्रीमहंत वेणी गिरी जी महाराज से लेकर वर्तमान श्रीमहंत नारायण गिरी जी महाराज तक समस्त सोलह श्रीमहंत विद्वान,सहज और मठ के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव रखने वाले हुए हैं |
श्री श्री 1008 श्रीमहंत महाराज
श्री श्री 1008 श्रीमहंत वेणी गिरी जी महाराज
श्री श्री 1008 श्रीमहंत संध्या गिरी जी महाराज
श्री श्री 1008 श्रीमहंत प्रेम गिरी जी महाराज
श्री श्री 1008 श्रीमहंत अधीन गिरी जी महाराज
श्री श्री 1008 श्रीमहंत राज गिरी जी महाराज
श्री श्री 1008 श्रीमहंत धनी गिरी जी महाराज
श्री श्री 1008 श्रीमहंत दया गिरी जी महाराज
श्री श्री 1008 श्रीमहंत पलटू गिरी जी महाराज
श्री श्री 1008 श्रीमहंत सोमवार गिरी जी महाराज
श्री श्री 1008 श्रीमहंत वसंत गिरी जी महाराज
श्री श्री 1008 श्रीमहंत निहाल गिरी जी महाराज
श्री श्री 1008 श्रीमहंत मंगल गिरी जी महाराज
श्री श्री 1008 श्रीमहंत शिव गिरी जी महाराज
श्री श्री 1008 श्रीमहंत गौरी गिरी जी महाराज
श्री श्री 1008 श्रीमहंत राम गिरी जी महाराज
श्री श्री 1008 श्रीमहंत नारायण गिरी जी महाराज
अध्यात्म से जुड़ा हुए या कोई भी श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर सेवा से जुड़ा हुआ आप सवाल पूछना चाहते है। तो आपका स्वागत है।
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