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बाबा बंगाली नित्यानंद गिरि महाराज को धन की सिद्धि प्राप्त थीः श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज

मां लक्ष्मी की आराधना से बाबा को धन की सिद्धि की प्राप्ति हुई थी
गाजियाबादः
सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथमठ महादेव मंदिर के सिद्ध संतों की कडी में बाबा नित्यानंद गिरि महाराज की विशेष पहचान थी। उन्हें असत्य से नफरत थी और इधर की उधर लगाने वालों को उनके क्रोध का शिकार बनना पडता था। श्री दूघेश्वर नाथ मंदिर के पीठाधीश्वर, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि बाबा को प्यार से से सब बंगाली बाबा कहते थे। भक्त उनसे इस कदर प्रेम करते थे कि उनका सानिध्य प्राप्त करने के लिए मिथ्या वचन तक बोल देते थे। मालीवाडा के हरिदत्त व आर्यनगर के मनमोहन गुप्ता दोनों ही भगवान दूधेश्वर के भक्त और नियमित रूप से चौपला के प्राचीन हनुमान मंदिर भी जाते थे। दोनों पर ही बाबा का आशीर्वाद था। एक बार हरिदत्त ने उनसे कहा कि मनमोहन उनके बारे में अर्नगल बात कहता है। इस पर बाबा ने उसे अगले दिन शाम 7 बजे आने को कहा। अगले दिन शाम सात बजे हरिदत्त पहुंचा तो मनमोहन भी वहां था। बाबा ने हरिदत्त से कहा कि कल तू जो कह रहा था, अब मनमोहन के सामने बोल। इसपर हरिदत्त घबरा गया और बाबा सब समझ गए। वे हरिदत्त से इतना नाराज हुए कि निरतंर मंदिर आने के बाद भी

उन्होंने हरिदत्त से कभी बात नहीं की। बाबा को धन की सिद्धि थी और यह सिद्धि उन्हें मां लक्ष्मी की आराधना से प्राप्त हुई थी। बाबा की अंटी में हमेशा हजार रूपये होते थे, मगर जब किसी को जरूरत होती तो अंटी से निकालकर दस हजार रूपये तक दे देते और हजार रूपये फिर भी उनकी अंटी में रहते। उन्हें गौ माता से बहुत प्रेम था और उनकी प्रेरणा से बहुत से लोग गौ भक्त बने। श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि प्रसिद्ध घी विक्रेता पं केदारनाथ बीमार पड गए तो उन्होंने अपने बेटे गुरचरण जो बाबा का परम शिष्य था, से दादा को बुलाकर लाने को कहा। पं केदारनाथ का परिवार बाबा को दादा कहता था। गुरचरण मंदिर पंहुचे तो उसे बाबाउसे देखते ही बोले,पंडित जी बीमार ैं और बुला रहे हैं। यह सुनकर गुरचरण हैरान कि बाबा को कैसे पता चल गया। बाबा गुरचरण के घर पहुंचे तो उनकी पत्नी रामप्यारी देवी से कहा कि पहले तुम मरोगी। बाबा को देखकर पं केदारनाथ बोले कि अब नहीं बचूंगा, मगर बाबा ने कहा कि तुम्हें कुछ नहीं होगा। बाबा की बात सत्य निकली और वे स्वस्थ हो गए। 2 जनवरी 1992 को रामप्यारी देवी व उसके 2 वर्ष बाद 2 जनवरी 1994 को पंडित केदारनाथ का निधन हुआ। बाबा गुरचरण से बहुत स्नेह करते थे।

एक दिन बाबा 3 भक्तों के साथ गढमुक्तेश्वर गंगा स्नान को गए तो रास्ते में दुर्घटना में घायल हो गए। उन्हें इलाज के लिए मेरठ ले जाया गया जहां वे कैलाश वासी हो गए। महाराजश्री ने कहा कि गुरचरण के साथ वे मेरठ पहुंचे। वे पुलिस वालों से बात करने लगे और इस बीच गुरचरण ने बाबा के शरीर को गाडी में सीट पर बैठा दिया। किसी को पता हीं चला और बाबा के शव को बिना पोस्टमार्टम के ही ले आए। बाबा की अंतिम यात्रा बाजार से निकली तो पूरा बाजार बंद हो गया। जल समाधि के लिए बाबा की देह को हरिद्वार ले जाया गया तो वहां के महात्माओं ने कहा कि कोई भी गृहस्थ हाथ नहीं लगाएगा। महाराजश्री ने बताया कि उनके यह कहने पर कि गुरचरण बाबा के परम शिष्य है, इसे मत हटाओ तो भी वे नहीं माने। लकडी की पेटी में रखकर बाबा को जल समाधि दी गई तो पेटी तैरने लगी और एक जगह अटक गई। महात्मा प्रेम गिरि ने उसे हिलाया मगर वह टस से मस नहीं हुई। इस पर गुरचरण ने हाथ जोडकर कहा कि दादा अपने बच्चों को क्यों तंग करते हो तो पेटी स्वंतः जल में समाती चली गई। इस पर सभी ने भगवान राम के नाम का जयघोष किया। बाबा ने विक्रमी संवत 2051 में जल समाधि ली।

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