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भगवान परशुराम के जन्म जयंती पर कोटिश:नमन् एवं समस्त देशवासियों को अनन्त शुभकामनाएं

।।जय दूधेश्वर महादेव।।       

।।महर्षि परशुरामाय नमः।।
।।भगवान परशुराम के जन्म जयंती पर कोटिश: नमन् एवं समस्त देशवासियों को अनन्त शुभकामनाएं ।।

भगवान परशुराम:-


आज परशुराम जयंती के अवसर श्री दूधेश्वर महादेव मठ मन्दिर गाजियाबाद में गाजियाबाद के सांसद जनरल वी के सिंह जी , गाजियाबाद के जिलाधिकारी आर के सिंह जी ने भगवान दूधेश्वर का पूजन अभिषेक किया ब्रह्मलीन समाधी वाले सिद्ध गुरूमुर्तियो को मत्था टेका एवं दूधेश्वर मन्दिर में स्थापित भगवान परशुराम की प्रतिमा का पूजन किया ,साथ ही श्री दूधेश्वर वेद विद्यालय में प्रातः काल परशुराम जयंती के अवसर पर हवन यज्ञ हुआ एवं भगवान परशुराम का पूजन हुआ ,इस अवसर पर भाजपा नेता मंयक गोयल ,महन्त विजय गिरि जी भी उपस्थित रहे , महाराज श्री के शिष्य महन्त गिरिशानन्द गिरि जी ने वी के सिंह जी व जिलाधिकारी जी का सम्मान किया,भगवान परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) में एक ब्राह्मण ऋषि के यहाँ जन्मे थे।

जो विष्णु के छठा अवतार हैं पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था, परशुराम जी भगवान विष्णु के आवेशावतार हैं।एक मान्यता ये भी है कि इनका जन्म उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर जनपद के जमानिया तहसील के पास स्थित हरपुर गांव में हुआ था।जमानिया का नाम कभी जमदग्नि पुर हुआ करता था जो परशुराम जी के पिता के नाम पर है और जहां उत्तर वाहिनी गंगा का प्रवाह है। महाभारत और विष्णुपुराण के अनुसार परशुराम का मूल नाम राम था किन्तु जब भगवान शिव ने उन्हें अपना परशु नामक अस्त्र प्रदान किया तभी से उनका नाम परशुराम हो गया। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम कहलाए। वे जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से शार्ङ्ग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ।

तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया।वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होनें कर्ण को श्राप भी दिया था। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त “शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र” भी लिखा। इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है-“ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नः परशुराम: प्रचोदयात्।” वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था,साथ ही समाज के अताताईयो को नाश किया साथ ही वैदिक गुरू कुल का प्रारम्भ किया था वे सदैव प्रेरणा पुरूष एवं संन्यासी सन्तो का  भृगु गोत्र ही होता है वो ब्रह्माण संन्यासी एवं क्षत्रिय का पालन किया
              हर हर  महादेव
     अन्तर्राष्ट्रीय प्रवक्ताश्रीमहन्त नारायण गिरि जीश्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ाश्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर गाजियाबादउत्तर प्रदेश

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