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श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में 24 मार्च से 27 मार्च तक होली महोत्सव मनाया जाएगा-चारों दिन सभी कार्यक्रम श्रीमहंत नारायण गिरि की अध्यक्षता व पावन सानिध्य में होंगे

गाजियाबादः
सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में चार दिवसीय होली महोत्सव 24 मार्च को होलिका दहन से शुरू होगा। 27 मार्च को कढी पकौडी के साथ महोत्सव का समापन होगा। 24 मार्च से 27 मार्च तक महोत्सव में होने वाले सभी कार्यक्रम श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज की अध्यक्षता व पावन सानिध्य में होंगे। श्रीमहंत नारायण गिरि ने कहा कि होली भारत का ऐसा प्रमुख त्योहार है, जो रंगों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन एक-दूसरे को रंग लगाकर हम अपनी पुरानी सभी कडुवाहट को भूल जाते हैं और अपने रिश्तों को खुशी, उमंग व उत्साह के रंगों से रंग देते हैं। राग-रंग अर्थात संगीत व रंग के इस पर्व पर प्रकृति भी रंग.बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है।

होली का पर्व श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में:-

फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। आपसी एकता व भाईचारे का प्रतीक होली का पर्व मंदिर में चार दिवसीय होली मिलन महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। पहले दिन होलिका दहन होता है, दूसरे दिन पंखा शोभा-यात्रा निकाली जाती है। तीसरे दिन भंडारे का आयोजन होता है जिसमें देश भर से आए साधु व हजारों श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते हैं। चौथे दिन कढी-पकौडी के साथ संतों को विदाई दी जाती है। बहुत से क्षेत्रों में ऐसा कहा जाता है कि कढी-पकौडी बेसन की, गाडी पकडो टेशन की। मंदिर के मीडिया प्रभारी एस आर सुथार ने बताया कि श्रीमहंत नारायण गिरि की अध्यक्षता व पावन सानिध्य में 24 मार्च को होलिका दहन सांय 7 बजकर 19 मिनट पर होगा।

महाशिवरात्रि पर्व पर देश भर से जो भक्त मंदिर में आए और भगवान दूधेश्वर को जो विल्बपत्र, विल्वफल वपुष्प चढ़ाए उनको सुखा कर उनसे एवं‌ गाय के गोबर के उपले से होली जलाई जाएगी। 25 मार्च को मंदिर में सिद्ध महात्माओं द्वारा शुरू की गई परम्परा के अनुसार प्रातः 9 बजे से 12 बजे तक हवन होगा और उसके बाद पंखा शोभा-यात्रा निकाली जाएगी।

पंखा शोभायात्रा:-

पंखा शोभायात्रा में रथ में पंखा विराजमान करके 1 पंखा अग्रसेन बजार चौपला हनुमान मन्दिर के शिवालय में व दूसरा पंखा दूधेश्वर मन्दिर में शिवालय गृभगृह में स्थापित किया जायेगा। पंखा शोभा यात्रा ढोल नगाड़े बैंड झांकियों के साथ निकलेगी और सन्त होलिका में जलाई गई दिव्य विभूति को धारण करके घोड़े हाथी पर विराजमान होकर नगर भम्रण करेंगे और विभूति का वितरण भक्तों में प्रसाद के रूप में करेंगे। नागा साधु भी शोभा-यात्रा में शामिल होंगे। शोभायात्रा दूधेश्वर मन्दिर से प्रारंभ होकर दूधेश्वर चौक जस्सीपुरा, देवी मन्दिर दिल्ली गेट, चौपला मन्दिर, डासना गेट, रमतेराम रोड, राईटगंज, घंटाघर, जीटी रोड, कीर्तन वाली गली, रेलवे रोड बजरिया, घंटाघर चौपला मन्दिर, सिहानी गेट चन्द्रपुरी, हापुड़ रोड व ठाकुर द्वारा होते हुये व दूधेश्वर मन्दिर में विश्राम लेगी। 26 मार्च को दूधेश्वर मन्दिर परिसर में साधु-सन्तों का भण्डारा प्रसाद होगा और भक्त महाराजश्री का आशीर्वाद प्राप्त करेंगे। 27 मार्च को श्रीमहन्त नारायण गिरि महाराज कढी पकौडी के साथ साधु-संतों को विदाई देंगे

रंग और उमंग वाली होली एक सुनहरा मौका होता है, होलिका दहन के साथ अपनी बुरी आदतों को उसके साथ दहन करने का.

होली का साफ संदेश है कि आप भले ही कितने ही ताकतवर हों, लेकिन यदि आपका उद्देश्य सही नहीं है तो आप निश्चित रूप से अंत में हार की चिता में जलेंगे.

होली पर्व से जुड़ी कथाएं

धर्म ग्रन्थ एवं शास्त्रों में होली से जुड़ी कथा एवं कहानियों को अंकित किया गया है। जिनमें से भक्त प्रह्लाद और भगवान श्री हरि की कथा सबसे प्रचलित है। जैसा कि सब जानते हैं कि होली की शुरुआत होलिका दहन से हो जाती है। जिसे भक्त प्रह्लाद की स्मृति में मनाया जाता है। पौराणिक धर्म-ग्रंथों में बताया गया है कि हिरण्यकश्यपु की बहन होलिका जब भक्त प्रह्लाद को गोद में उठाकर अग्नि में बैठ गई। तब भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यपु के षड्यंत्र को नष्ट करते हुए होलिका को भस्म कर दिया था और भक्त प्रह्लाद श्रीहरि की कृपा से बच गए थे। तब से होलिका दहन को बड़े स्तर पर आयोजित किया जाता है।

कुछ धर्माचार्य बताते हैं कि जब भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था, उसकी खुशी में सभी गांव वालों ने होली का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया था। साथ ही इस बात का भी वर्णन मिलता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने पूर्णिमा तिथि के दिन ही गोपियों के साथ रास-लीला रचाई थी और अगले दिन रंग वाली होली खेली थी। वहीं महाकवि सूरदास ने भी बसंत और होली पर 70 से अधिक पद लिखे हैं। कुछ जगहों पर होली का संबंध भगवान शिव से भी जोड़ा जाता है।

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