मानव जीवन का सही उपयोग क्या है और क्या हमारा ध्यान इस ओर कभी जाता है ? मानव जीवन का उद्देश्य क्या है और क्या कभी हमने एकांत में बैठकर इसका चिंतन किया है ? हम कभी ऐसा सोचने का प्रयास ही नहीं करते और एक-एक दिन करके हमारा मानव जीवन बीतता ही चला जाता है । बचपन खेल कूद और पढ़ाई में, जवानी कमाई और दुनियादारी में और बुढ़ापा बीमारी में बीत जाता है ।
मानव जीवन पाकर हमें क्या करना चाहिए:-
हम व्यर्थ में कैसे अपना मानव जीवन बर्बाद कर लेते हैं । फिर प्रश्न उठता है कि मानव जीवन पाकर हमें क्या करना चाहिए । मानव जीवन पाकर जो उसकी मर्यादा है हमें उसको लांघना नहीं चाहिए । जीवन निर्वाह और दुनियादारी की जितनी आवश्यकता है उससे बाहर जाकर कुछ भी नहीं करना चाहिए । हम गलती यह कर बैठते हैं कि जीवन निर्वाह के लिए आवश्यकता से ज्यादा कमाई और व्यर्थ की बहुत सारी दुनियादारी में उलझ जाते हैं और इस तरह अपना बहुमूल्य समय प्रभु को देने से वंचित रह जाते हैं ।
“युवा से जवानी और जवानी से बुढ़ापे में जैसे-जैसे भी हम प्रवेश करते जाए प्रभु के लिए नित्य निरंतर हमें समय बढ़ाते चले जाना चाहिए । जितना-जितना प्रभु के लिए हम अपने जीवन में समय बढ़ाएंगे उतने-उतने हम प्रभु के समीप पहुँचते चले जाएंगे ।“
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जीव को चाहिए कि वह प्रभु की भक्ति में रमे और अपना तन-मन-धन प्रभु सेवा में अर्पित करे । हम सिर्फ आरती में गाने के लिए प्रभु से कह देते हैं कि हमारा तन-मन-धन आपको अर्पण है पर सही मायने में हम ऐसा कर नहीं पाते । यह सिर्फ और सिर्फ भक्ति से ही संभव है । जब भक्ति तीव्र होती है तो जीव अपना सर्वस्व प्रभु को अर्पण कर देता है ।
हमें अपना अंत सुधारना है और जीवन भी सुधारना है तो प्रभु भक्ति करना नितांत आवश्यक है । तभी हम अंत में प्रभु को प्राप्त कर पाएंगे और चौरासी लाख योनियों से सदैव के लिए मुक्त हो पाएंगे । अगर हम ऐसा नहीं कर पाते तो हमारा चौरासी लाख योनियों में लगातार भटकते रहना तय है ।
इसलिए जीवन में अविलम्ब भक्ति का सहारा लेकर प्रभु तक पहुँचने का प्रयास करना चाहिए । हम प्रभु की तरफ एक कदम बढ़ाते हैं तो प्रभु दस कदम हमारी तरफ बढ़ाते हैं । इसलिए जीवन निर्वाह की आवश्यकता के लिए जो जरूरी है वह करते हुए एवं बहुत सीमित दुनियादारी रखते हुए बाकी सारा समय प्रभु की भक्ति करके प्रभु को अर्पण करना चाहिए । ऐसा करने वाला ही प्रभु तक पहुँच पाता है । ऐसा करने वाला ही अपना मानव जीवन सफल कर पाता है और ऐसा करने वाला ही अपने मानव जीवन का सही उपयोग कर पाता है ।
Jai mahakal ki nagari ki jai jai ho nirmata aur nirdeshak ke sath guru ji ke sath balki ek baar baba ki jai ho sabka malik ek hai kya aap jante han ki nagari ki jai mahakal ki nagari ki
Mahraj shri ke charon mai sadar pranam