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मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya 2022)-कब है मौनी अमावस्या-मौनी अमावस्या का महत्व

इस तिथि पर चुप रहकर अर्थात मौन धारण करके मुनियों के समान आचरण करते हुए स्नान करने के विशेष महत्व के कारण ही माघ मास के  कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि मौनी अमावस्या कहलाती है । माघ मास में गोचर करते हुए भुवन भास्कर भगवान सूर्य जब चन्द्रमा के साथ मकर राशि पर आसीन होते है तो ज्योतिष शास्त्र में उस काल को मौनी अमावस्या कहा जाता है । वैसे तो जब सूर्य और चन्द्रमा का एक साथ गोचरीय संचरण शनि देव की राशि मकर में होता है तब उस महत्वपूर्ण पुण्य तिथि को मौनी अमावश्या कहा जाता है ।इस वर्ष 31.1.2022 जहाँ सूर्य पुत्र शनि देव स्वगृही होकर मकर राशि में गोचर कर रहे है , वही चन्द्रमा भी अपने पुत्र बुध के साथ बुधादित्य योग का निर्माण करके मकर राशि में गोचर करते हुए इस दिन की शुभता को बढ़ाने वाले है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार :-

मौनी अमावस्या शनि देव और पितरों से संबंधित है। मान्‍यता है क‍ि इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करने व भगवान विष्णु की विधिवत पूजा अर्चना करने से सभी कष्टों का निवारण होता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya 2022) के दिन मनु ऋषि का जन्म हुआ था और मनु शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई। इसलिए इस दिन मौन व्रत करने से मुनि पद की प्राप्ति होती है।

विशेष महत्व:-

र्वर्ष के अति महत्वपूर्ण तिथियों में अपना परम् पुण्यदायक महत्व स्थापित करने वाले मौनी अमावस्या में स्नान .दान ,पूजा और पितृ तर्पण का विशेष महत्व होता है. इस दिन संगम पर सभी देवी देवताओं का वास होता है, इसलिए कहा जाता है क‍ि मौनी अमावस्या पर पवित्र नदी में स्नान करने से निरोगी काया प्राप्त होती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

अमावस्या तिथि:-

वैसे तो अमावस्या तिथि का आरम्भ 31 जनवरी 2022 दिन सोमवार को दोपहर 1 बजकर 15 मिनट से ही आरम्भ हो जाएगा परन्तु उदय कालिक महत्व के कारण स्नान, दान एवं मौनी अमावस्या 1 फरबरी दिन मंगलवार को होगा। मंगलवार के दिन अमावस्या पड़ने के कारण इसे भौमवती अमावस्या   भी कहा जा सकता है ।भौमवती अमावस्या का मणि -कांचन योग गंगा -स्नान के महत्व को कई गुना   बढ़ाने वाला होगा । वही मौनी अमावश्या के दिन पितृगण पितृलोक से आशा करते है और इस दिन किया गया जप , तप , ध्यान ,स्नान , दान ,यज्ञ , हवन कई गुना फल देता है ।

शास्त्रों के अनुसार:-

शास्त्रों के अनुसार अमावश्या के विषय में कहा गया है कि इस दिन मन , कर्म तथा वाणी के जरिए किसी के लिए अशुभ नहीं सोचना चाहिए केवल बंद होंठो से “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय  तथा “ॐ नमः शिवाय ,या “ॐ नमो नारायण , या विष्णु स्तुति मन्त्र 

शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं,
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् 

का जाप करते हुए अर्ध्य देने से पापों का शमन एवं पुण्य की प्राप्ति होती है ।मौनी अमावस्या के दिन स्नान दान एवं व्रत करने से पुत्री और दामाद की आयु बढ़ती है  पुत्री को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है  मान्यता है कि सौ अश्वमेघ यज्ञ और एक हजार राजसूय यज्ञ का फल मौनी अमावश्या पर पितरों को याद करने व् पूजन करने से प्राप्त होता है । पद्मपुराण में मौनी अमावश्या के महत्व को बताया गया है कि माघ मास के कृष्णपक्ष की अमावश्या को सूर्योदय से पहले जो तिल और जल से पितरों का तर्पण करता है वह स्वर्ग में अक्षय सुख भोगता है प्रत्येक अमावश्या का महत्व अधिक है लेकिन मकरस्थ रवि अर्थात मकर राशि में सूर्य के होने के कारण ही इस अमावश्या का महत्व अधिक है ।

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