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शरदीय नवरात्रि 2022 की समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं

जय दूधेश्वर महादेव

नवरात्रि शतचंडी अनुष्ठान यज्ञ ,मां महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती के त्रिगुणात्मक स्वारूप मां जगद् जननी जगदम्बा की पूजन साधना जप पाठ यज्ञ 26 सितम्बर अश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से 4 अक्टूबर अश्विन शुक्ल पक्ष नवमी 2022 तक जिसमें मां के 9 रूपों का पूजन ध्यान जप पाठ होगा , नवरात्रि शतचंडी अनुष्ठान पूज्य गुरुदेव श्रीमहन्त नारायण गिरि जी महाराज श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर गाजियाबाद अन्तर्राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के सानिध्य में पांच स्थानों पर शतचंडी अनुष्ठान आज घट स्थापना पंचांग पीठ पूजन ,समस्त देवी देवताओं के आवाहन स्थापना एवं पूजन के साथ प्रारम्भ हुआ ,प्रथम स्थान सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ महादेव मठ मन्दिर गाजियाबाद उत्तर प्रदेश में स्थापित मां जगदम्बा के चरणों में दूधेश्वर वेद विद्यालय के आचार्य नित्यानंद जी सहित 11 ब्रह्माणो द्वारा पाठ प्रारंभ हुआ , द्वितीय स्थान दूधेश्वर नाथ मन्दिर की शाखा श्री बाला त्रिपुरा सुन्दरी चतुर्भुजा धारी मा के चरणों में गिरिशानन्द गिरि जी के व्यवस्था एवं 11 ब्रह्माणो द्वारा शतचंडी अनुष्ठान आज प्रारम्भ हुआ, तृतीय स्थान कोटेश्वर महादेव मन्दिर सिवाना राजस्थान योगीराज सन्त सत्यम गिरि जी महाराज के स्थान पर पूज्य गुरुदेव श्रीमहन्त नारायण गिरि जी महाराज के पावन सानिध्य एवं अध्यक्षता में प्रतिदिन श्रीमद् देवी भागवत एवं शतचंडी अनुष्ठान आज आचार्य विकास पाण्डेय जी आचार्य तोयराज उपाध्याय जी एवं अन्य ब्राह्मणों द्वारा प्रारंभ हुआ जिसमें पूज्य गुरुदेव ने उपस्थिति होकर कलश यात्रा (बरगोडा )में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया , चतुर्थ स्थान श्री नित्यानंद आश्रम (श्री राधिका कुटी) वृन्दावन में 5 ब्राह्मणो द्वारा आज पूजन प्रारंभ हुआ जो कि महन्त वी पी गिरि जी के व्यवस्था मे प्रारम्भ हुआ ,पंचम स्थान जसोल धाम बालोतरा राजस्थान में माता राणी भटियाणी मन्दिर ,पालिया देवी रूपांदे मन्दिर ,जसोल गढ़ ,में रावल किशन सिंह जी ,कुंवर हरिश्चन्द्र सिंह जी के मुख्य यजमान के रूप में भाग लिया एवं पूज्य गुरुदेव के सानिध्य में आज प्रथम दिवस पूजन पांच स्थानों पर प्रारम्भ हुआ 

आज प्रथम स्वारूप मां शैल पुत्री का पूजन :-

वन्दे वांच्छितलाभाय  चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ । वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥ नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर दुर्गा देवी के नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि विधान से की जाती है। इन रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है।

आइए जानते हैं मां शैलपुत्री के बारे में… 

मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है। एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।        

हर हर महादेव
विश्व संवाद सम्पर्क सचिवअमित कुमार शर्माश्री दूधेश्वर नाथ महादेव मठ मन्दिर गाजियाबाद उत्तर प्रदेश

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