हिन्दू पंचांग के पौष माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पौष पूर्णिमा कहा जाता है। हिन्दू धर्म और भारतीय जनजीवन में पूर्णिमा तिथि का बड़ा महत्व है। पूर्णिमा की तिथि चंद्रमा को प्रिय होती है और इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण आकार में होता है। हिन्दू धर्म ग्रन्थों में पौष पूर्णिमा के दिन दान, स्नान और सूर्य देव को अर्घ्य देने का विशेष महत्व बतलाया गया है।
पौष पूर्णिमा का महत्व:-
वैदिक ज्योतिष और हिन्दू धर्म से जुड़ी मान्यता के अनुसार पौष सूर्य देव का माह कहलाता है। इस मास में सूर्य देव की आराधना से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए पौष पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान और सूर्य देव को अर्घ्य देने की परंपरा है। पौष पूर्णिमा के दिन वाराणसी में ‘दशाश्वमेध घाट’, प्रयाग में ‘त्रिवेणी संगम, हरिद्धार में ’हर की पौणी’ और उज्जैन में ‘राम घाट’ पर पवित्र स्नान अत्यधिक शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पौष पूर्णिमा के शुभ दिन पवित्र डुबकी आत्मा को जन्म और मृत्यु के निरंतर चक्र से मुक्त करती है।
यदि कोई व्यक्ति इन तीर्थ स्थानों पर नहीं जा सकता है तो उसे इस दिन सूर्योदय से पहले नदी, तालाब, कुआँ आदि के जल से स्नान कर सकता हैं, या घर पर ही सूर्यादय से पहले स्नान करने वाले जल में गंगा जल मिलाकर भी स्नान कर सकता है। इसके बाद भगवान वासुदेव की पूजा की जाती है। पूजा समाप्ति के बाद ब्राह्माणों को भोजन कराकर दान दक्षिणा देकर विदा करते हैं। इससे भगवान वासुदेव प्रसन्न रहते हैं।
पूजा:-
पौष पूर्णिमा के दिन भगवान ’सत्यनारायण’ व्रत भी रखा जाता हैं और पूरी भक्ति के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती हैं। पूरे दिन उपवास करने के बाद ’सत्यनारायण’ कथा का पाठ करना चाहिए। भगवान को अर्पित करने के लिए विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है। अंत में एक ’आरती’ की जाती है जिसके बाद प्रसाद को सभी में वितरित किया जाता है। पौष पूर्णिमा के दिन, पूरे भारत में भगवान कृष्ण के मंदिरों में विशेष ’पुष्यभिषेक यात्रा’ मनाई जाती है। इस दिन रामायण और भगवद् गीता पर व्याख्यान भी आयोजित किए जाते हैं।
पूजा का फल:-
पौष पूर्णिमा के दिन दान करना भी बहुत शुभ होता है। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान आसानी से फल देता है। ’अन्ना दान’ के तहत जरूरतमंदों को मंदिरों और आश्रमों में मुफ्त भोजन परोसा जाता है।
पौष पूर्णिमा व्रत मुहूर्त कब है:-paush purnima 2022
जनवरी 17, 2022 को 03:20:37 से पूर्णिमा आरम्भ
जनवरी 18, 2022 को 05:20:21 पर पूर्णिमा समाप्त
पौष पूर्णिमा व्रत पूजा विधि
1- पौष पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल स्नान से पहले व्रत का संकल्प ले
2- पवित्र नदी या कुंड में स्नान करें और स्नान से पूर्व वरुण देव को प्रणाम करें.
3- स्नान के पश्चात सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए.
4- स्नान से करने के बाद भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए.
5- किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दें.
6- दान में तिल, गुड़, कंबल और ऊनी वस्त्र विशेष रूप से दें.
पौष पूर्णिमा के अन्य नाम:-
1- पौष पूर्णिमा को शाकंभरी जयंती मनाई जाती है.
2- पौष पूर्णिमा पर जैन धर्म के लोग पुष्याभिषेक यात्रा निकालते हैं.
3- पौष पूर्णिमा को छत्तीसगढ में आदिवासी ग्रामीण ‘छेरता पर्व’ मनाते हैं.
पौष पूर्णिमा के दिन क्यों की जाती है मां दुर्गा की पूजा:-
पौष मास की पूर्णिमा के दिन ही मां दुर्गा ने अपने भक्तों के कल्याण के लिए माता शांकभरी का अवतार लिया था। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन मां दुर्गा ने पृथ्वी पर अकाल और गंभीर खाद्य संकट से भक्तों को निजात दिलाने के लिए शांकभरी का रूप लिया था। इसलिए इन्हें सब्जियों और फलों की देवी माना जाता है। इसलिए इस पूर्णिमा को शांकभरी पू्र्णिमा के नाम से भी जानते हैं। पौष पूर्णिमा के दिन मां दुर्गा की पूजा का भी विधान है। छत्तीसगढ़ के आदिवासी इस दिन को छेरता पर्व मनाते हैं।
शांकभरी पूर्णिमा से जुड़ी मान्यता-
मान्यता है कि पौष पूर्णिमा के दिन गरीब या जरुरतमंद को अन्न, शाक (कच्ची सब्जी) फल व जल का दान देने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। मां दुर्गा की कृपा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
पौराणिक कथाएं-
पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, एक समय जब पृथ्वी पर दुर्गम नामक दैत्य ने आतंक का माहौल पैदा किया। इस तरह करीब सौ वर्ष तक वर्षा न होने के कारण अन्न-जल के अभाव में भयंकर सूखा पड़ा, जिससे लोग मर रहे थे। जीवन खत्म हो रहा था। उस दैत्य ने ब्रह्माजी से चारों वेद चुरा लिए थे। तब आदिशक्ति मां दुर्गा का रूप मां शाकंभरी देवी में अवतरित हुई, जिनके सौ नेत्र थे। उन्होंने रोना शुरू किया, रोने पर आंसू निकले और इस तरह पूरी धरती में जल का प्रवाह हो गया। अंत में मां शाकंभरी दुर्गम दैत्य का अंत कर दिया।