कुछ क्षण इतिहास में अमर हो जाते हैं: पीएम मोदी
देश की यात्रा में कुछ क्षण ऐसे आते हैं, जो हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं. कुछ तारीखें, समय के ललाट पर इतिहास का अमिट हस्ताक्षर बन जाती हैं. आज ऐसा ही अवसर है. देश आजादी के 75 वर्ष होने पर अमृत महोत्सव मना रहा है. आज सुबह ही संसद परिसर में सर्वपंथ प्रार्थना हुई है. मैं सभी देशवासियों को भारतीय लोकतंत्र के इस स्वर्णिम क्षण की बधाई देता हूं. ये सिर्फ एक भवन नहीं, 140 करोड़ भारतवासियों की आकांक्षाओं और सपनों का प्रतिबिंब है. ये विश्व को भारत के दृढ़ संकल्प का संदेश देता हमारे लोकतंत्र का मंदिर है.
नया संसद भवन सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है. गौरवशाली भवन नया इतिहास लिखेगा. नई संसद गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का प्रतीक है. देश के हर कोने से लाई गई संस्कृति की भव्यता है.

पीएम मोदी ने सेंगोल को नए संसद भवन में किया स्थापित:-

सत्य, सनातन,धर्म, दंड, स्थापित हो चुका है:-
भारत में अब धर्म का राज होगा भारत में धर्म दंडराजा, राज्य और छत्र की शक्ति और संप्रभुता का द्योतक और किसी अपराधी को उसके अपराध के निमित्त दी गयी सजा को दण्ड कहते हैं। एक दूसरे सन्दर्भ में, राजनीतिशास्त्र के चार उपायों – साम, दाम, दंड और भेद में एक उपाय। दण्ड का शाब्दिक अर्थ ‘डण्डा’ (छड़ी) है. जिससे किसी को पीटा जाता है।हिन्दू धर्म में दण्ड का संस्कारगत अर्थसंस्कारगत क्षेत्र में मुख्य रूप से ब्रह्मचारी विद्यार्थी के द्वारा धारण किए जानेवाले दंड (छडी) का उल्लेख किया जा सकता है। गृह्यसूत्रों, स्मृतियों, उनकी टीकाओं, बृहत्संहिता तथा साधारणतया धर्मशास्त्र के अन्य ग्रंथों में तत्संबंधी विशद विवरण मिलते हैं। तदनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य बालक भिन्न भिन्न अवस्थाओं में जब आचार्य के द्वारा यज्ञविधि से उपनयन संस्कार से संस्कृत होते हैं तो उन्हें सौम्यदर्शन और अनुद्वेगकर दण्ड भी धारण करने होते हैं।

शास्त्रगत विधान और परंपरागत मान्यताएँ ये हैं कि ब्राह्मण बालक केशांतपर्यंत विल्वदंड, क्षत्रिय बालक ललाटपर्यंत पलाशदंड और वैश्यबालक नासिकापर्यंत उदुंबर (गूलर) का दंड धारण करें (मनुस्मृति, द्वितीय, 45-47; वृहत्संहिता, 72.3-4)।राजनीति एवं प्रशासनदण्ड शब्द का मुख्य रूप से प्रयोग राजनीतिशास्त्र और प्रशासन के सम्बन्ध में किया जाता है। जिसके द्वारा अपराधियों को दंडित किया जाय वही दंड है, किंतु इसका प्रयोग होता है राज्य और शासन की सीमा के भीतर। जब राज्य की सीमा के बाहर किसी, शत्रु, मित्र, मध्यस्थ अथवा उदासीन राज्य के प्रति उसका प्रयोग किया जाय तो वह राजनीति के चार उपायों में एक हो जाता है.
और उससे तात्पर्य होता है सैन्य प्रयोग का। इन बातों के विचार से संबंध रखनेवाला शास्त्र होता है दंडशास्त्र और उसकी नीति होती है दंडनीति। दंडनीति सरकार और प्रशासन का विज्ञान है, जिसका आधार है नैतिकता और विधि का पालन, जो दंड धारण करनेवाले तथा दंड पानेवाले दोनों ही पर समान रूप से लागू होती है। उसके बिना लोकयात्रा संभव नहीं। (तस्यामायत्ता लोकयात्रा – अर्थशास्त्र, प्रथम आधि, 4-7)। कामन्दक नीतिसार (द्वितीय 15) (शुक्रनीति, प्रथम, 14) और महाभारत (शांतिपर्व, 15-8) की परिभाषा के अनुसार अपराधों का दमन (दम) ही दंड अथवा “नीति” कहलाता है। इस कार्य को करनेवाला अर्थात् इस गुण का प्रतीक राजा ‘दंडी’ कहलाता है, नयन (समाज का सुमार्ग पर नेतृत्व) के कारण।

शंकराचार्य ने कामंदक की टीका करते हुए मनुस्मृति (सप्तम्-22) को उद्धृत किया है, जहाँ यह कहा गया है कि सम्पूर्ण लोक दण्ड के भय के कारण ही जगत् का भोग संभव हो पाता है।तस्यसर्वाणि भूतानि स्थावराणि चराणि च ।भयाद्भोगायकल्पन्ते स्वधर्मान्न चलन्ति च ॥अर्थात, दण्ड वह विधान है, जिसके भय से सभी प्राणी अपना-अपना भोग करने में समर्थ होते हैं, अन्यथा बलवान व्यक्ति दुर्बल व्यक्ति के धन, पत्नी आदि का ग्रहण कर लेता। इसी प्रकार वृक्ष आदि स्थावरों को काट कर भी वह दूसरों को न भोगने देता। राजा के डर से सज्जन भी नित्य नैमित्तिक आदि नियमों का पालन करते है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार, 28 मई, 2023 को देश का नया संसद भवन राष्ट्र को समर्पित किया। नए संसद भवन का निर्माण क्षेत्रफल 64,500 वर्ग मीटर है। इसे बनाने में 60 हजार श्रमिकों को प्रत्यक्ष रोजगार मिला है। प्रबंधन से लेकर परियोजना से जुड़े मजदूरों तक 23 लाख से अधिक मानव दिवस का रोजगार सृजित हुआ। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि एक व्यक्ति अगर संसद भवन बनाने लगता तो उसे 23 लाख दिन काम करना पड़ता यानी कि 6312 साल लग जाते है। लेकिन इसका निर्माण कार्य जो कि दिसंबर 2020 में शुरू हुआ था और करीब ढाई साल के समय में पूरा हो गया है। यह भी एक उपलब्धि है।

याज्ञवल्क्य के अनुसार दुराचारियों अर्थात अपराधियों का दमन करना ही दण्ड है। मनुष्य को प्रमाद से बचाने तथा उसके धन की रक्षा करने के लिए संसार में जो मर्यादा स्थापित की गयी है दण्ड उसी का नाम है। इससे स्पष्ट होता है कि दण्ड वह विधान है जो सामाजिक सम्बन्धों, सम्पत्ति के अधिकारों एवं परम्पराओं का सही ढंग से परिपालन करवाता था। स्पष्ट है, भारतीय राजनीतिशास्त्र में दंड का अत्यधिक महत्व था जो वास्तविक और प्रतीकात्मक, दोनों स्वरूपों से व्यक्त होता था।मनुस्मृति में दण्डदण्ड के बारे में मनुस्मृति में बहुत बातें कही गईं हैं।
मनु कहते हैं कि जो दण्ड है वही राजा, वही न्याय का प्रचारकर्त्ता और सब का शासनकर्त्ता, वही चार वर्ण और आश्रमों के धर्म का प्रतिभू अर्थात् जामिन है। वही राजा व दण्ड प्रजा का शासनकर्त्ता, सब प्रजा का रक्षक, सोते हुए प्रजास्थ मनुष्यों में जागता है, इसी लिये बुद्धिमान लोग दण्ड ही को धर्म कहते हैं। यदि राजा दण्ड को अच्छे प्रकार विचार से धारण करे तो वह सब प्रजा को आनन्दित कर देता है और जो विना विचारे चलाया जाय तो सब ओर से राजा का विनाश कर देता है। विना दण्ड के सब वर्ण अर्थात् प्रजा दूषित और सब मर्यादा छिन्न-भिन्न हो जाती है। दण्ड के यथावत् न होने से सब लोगों का राजा व राज्य व्यवस्था के विरुद्ध प्रकोप हो सकता है। यह भी कहा है कि दण्ड बड़ा तेजोमय है जिसे अविद्वान् व अधर्मात्मा धारण नहीं कर सकता।
हर हर महादेव