पालिया धाम का दिव्य स्वरूप प्रत्येक श्रद्धालु को सच्चे आनंद व सुख की अनुभूति कराता है तिलवाड़ा मेले में संचालित भोजनशाला का हुआ समापन
जसोलः
श्री राणी रूपादे जी मन्दिर पालियाधाम में चैत्र नवरात्रि पर्व पर माता के दर्शनों को लेकर श्रद्धालुओं की लम्बी-लम्बी कतारें लगी रही। छत्तीस कौम की आस्था केंद्र पालियाधाम दिन भर श्रद्धालुओं के जयकारों से गुंजायमान होता रहा। देश भर से मंदिर में पहुंचे श्रद्धालुओं ने रावल श्री मल्लीनाथ व उनकी राणी रूपादे जी के दर्शन कर सुख समृद्धि की कामना की। चैत्र नवरात्रि पर्व पर श्री रावल मल्लीनाथ जी मंदिर मालाजाल, श्री राणी रूपादे जी मंदिर पालिया व श्री रावल मल्लीनाथ जी मंदिर थान मल्लीनाथ तिलवाड़ा में श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर, श्रीपंच दशनाम जूना अखाडा अंतर्राष्ट्रीय प्रवक्ता, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज, श्री राणी रूपादे मन्दिर संस्थान अध्यक्ष रावल किशनसिंह जसोल एवं कुंवर हरिश्चन्द्रसिंह ने विधि विधान से दर्शन एवम् पूजा अर्चना की।
इस दौरान श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज ने कहा कि पालिया धाम का दिव्य स्वरूप भक्तों का मन मोह लेता हैं और उन्हें सच्चे आनंद व सुख की अनुभूति कराता है। सालों पहले यंहा राणी रूपादे ने सामाजिक समरसता की जो सीख दी थी, रावल परिवार आज भी उनके पदचिन्हों पर चल रहा है। हमें भी उनके साथ जुड़ने की आवश्यकता है। रावल मल्लीनाथ जी और राणी रूपादे जी ने जो आदर्श स्थापित किए हैं, वे हम सभी के लिए प्रेरणादायक हैं। महाराजश्री ने कहा कि रावल किशनसिंह जसोल अपनी संस्कृति, पर्यावरण, प्रकृति के संरक्षण व संवर्धन को लेकर जो कार्य कर रहे हैं, वे लोगों के लिए मिसाल बन गए हैं और लोग उनसे प्रेरणा ले रहे हैं। हम सभी को भी रावल साहब के कार्यो में सहयोग देना चाहिए। श्री रावल मल्लीनाथ श्री राणी रूपादे संस्थान अध्यक्ष रावल किशनसिंह जसोल ने कहा कि ये भूमि वीर योद्धाओं व महान तपस्वी संतों की है। यहां रावल मल्लीनाथजी ने 700 वर्षों पूर्व सन्तों का समागम करवाया था, जिसमें श्री राणी रूपादे जी के गुरु श्री उगमसी भाटी, गुरु भाई मेघधारूजी, संत शासक महाराणा कुंभा व उनकी रानी ;मेवाड़, बाबा रामदेव जी रामदेवरा पोखरण, जैसल धाड़वी व उनकी रानी तोरल ;गुजरात सहित अन्य अनेक संतो ने भाग लिया था और समरसता, धर्म व सत्य के मार्ग पर चलने की ज्योत जगाई थी।
उन्होंने कहा कि यह मेला सन्तों के समागम का मेला था, जो कालांतर में व्यापार बढ़ने के साथ पशु मेला बन कर रह गया। कुछ समय से पशुओं में भी गिरावट आ गई है। साथ ही बताया कि 15 से 20 वर्ष पूर्व यहां मेले में एक लाख से ज्यादा पशु आते थे, जिनमें ऊंट के अलावा बेल, गाय व घोडे शामिल होते थे। आज के समय मे मेले की स्थिति चिंताजनक है और मेला खत्म होने की ओर बढ़ रहा है। यह देखकर बहुत दुख होता है। यदि समय रहते सरकार इस मेलेकी ओर ध्यान दे तो निश्चित ही आने वाले समय में यह बड़ा रूप ले सकता है। प्रशासनिक उदासीनता के चलते लगातार मेले का ग्राफ घटता जा रहा है। रावल किशनसिंह जसोल कहा कि संस्थान मेले को पुनर्जीवित करने के कार्य में लगा हुआ है। आज यहां संस्कृति को जीवंत रखने को लेकर लोक गायकों व कलाकारों के माध्यम से सन्तो की वाणी गाई जा रही है।
लुणी नदी में बढ़ते प्रदूषण को लेकर मरु गंगा की आरती कर नदी को बचाने का पवित्र कार्य किया जा रहा है। मेले में महंत गणेश पुरी महाराज वरीया के पावन सानिध्य में श्री राणी भटियाणी मंदिर द्वारा निशुल्क संचालित भोजनशाला का कन्या पूजन एवं श्री रावल मल्लीनाथ जी मंदिर में लापसी प्रसाद का भोग लगाकर तिलवाड़ा, थान मल्लीनाथ व बोरावास के प्रत्येक घर में रावल मल्लीनाथजी व श्री राणी रूपादे जी द्वारा बताए सत्य व लोक कल्याण मार्ग का संदेश वितरित किया गया एवं स्थानीय गैर नृत्य कलाकारों की कलाकृति के साथ समापन किया गया। भोजनशाला शुभारंभ 5 अप्रैल को भी लापसी प्रसाद का भोग लगाकर इसी संदेश के साथ इन्ही तीनों ग्रामों एवं मेलार्थियों में वितरण किया गया था। भोजनशाला में मेला अवधि के दौरान प्रतिदिन हजारों मेलार्थियों एवं भक्तों ने प्रसादी का लाभ लिया। इस दौरान संस्थान सचिव सुमेर सिंह वरिया, जीवराज सिंह कोलु व विजय सिंह टापरा, भगवत सिंह थान मल्लीनाथ, पुंजराज सिंह वरिया, मांगू सिंह जागसा, गजेंद्र सिंह जसोल, उत्तम सिंह असाड़ा समेत हजारों भक्तगण मौजूद रहे।