श्रीमहंत हरि गिरि महाराज की अध्यक्षता व मार्गदर्शन में परिक्रमा कार्तिक पूर्णिमा को संपूर्ण होगीः श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज
गिरनार परिक्रमा त्रिदेव ब्रहमा, विष्णु व महेश ने भी लगाई थी
जूनागढः गुजरात
जूनागढ़ के जंगलों में हर वर्ष आयोजित होने वाली धार्मिक गिरनार हरित परिक्रमा (Girnar Parikrama) का शुभारंभ लाखों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में हुआ। प्राचीन भवनाथ मंदिर के महंत, जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक एवं अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमहंत हरि गिरि महाराज की अध्यक्षता व मार्गदर्शन में शुरू हुई परिक्रमा पूर्णिमा तक चलेगी। जगदगुरू शंकराचार्य गर्गाचार्य महेंद्रानंद गिरि महाराज, श्रीमहंत हरि गिरि महाराज, श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर व श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज, गिरनार मंडल के अध्यक्ष श्रीमहंत इंद्र भारती महाराज, कमंडल कुंड के महंत पूर्व सांसद महेश गिरि महाराज, महंत महादेव गिरि महाराज समेत सभी दशनामी संत व देश भर से आए लाखों श्रद्धालु परिक्रमा में शामिल हुए। जगदगुरू शंकराचार्य गर्गाचार्य महेंद्रानंद गिरि महाराज ने कहा कि गिरनार पर्वत की परिक्रमा प्राचीन समय से ही की जा रही है। इस परिक्रमा को लगाने से भक्तों को सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। श्रीमहंत हरि गिरि महाराज ने कहा कि गिरनार परिक्रमा में हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। यह परिक्रमा हर साल कार्तिक महीने में देवउठान एकादशी जिसे सुद अगियारस भी कहा जाता है, से शुरू होती है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूरी होती है।
गिरनार पर्वत की परिक्रमा:-
इस बार परिक्रमा देवउठान एकादशी पर मंगलवार 12 नवंबर को शुरू हुई और शुक्रवार 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा पर पूर्ण होगी। गिरनार मंडल के अध्यक्ष श्रीमहंत इंद्र भारती महाराज व कमंडल कुंड के महंत पूर्व सांसद महेश गिरि महाराज ने गिरनार परिक्रमा लगाने से सभी कष्ट दूर होते हैं। भक्तों को यहां वास करनेे वाले 33 कोटि देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर व श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि गिरनार परिक्रमा का बहुत अधिक महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गिरनार पर्वत की परिक्रमा त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश समेत पंच पांडवों ने भी की थी। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार बोरदेवी मंदिर, जहां यह परिक्रमा समाप्त होती हैए वहां देवी सुभद्रा के साथ अर्जुन की शादी हुई थी और भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन की शादी करवाने के लिए गिरनार पर्वत की हरित परिक्रमा की थी। लगभग 36 किमी लंबी यह परिक्रमा पहाड़ों और घने जंगलों के बीच से होकर की जाती है जो बहुत ही चुनौतीपूर्ण होती है। रास्ते में जंगलों से घिरा इलाका भी होता है और इन जंगलों में शेर और तेंदुए भी रहते हैं। इसके बावजूद भक्त श्रद्धा और विश्वास के साथ आगे बढ़ते हुए अपनी यात्रा पूरी करते हैं और भगवान की कृपा से किसी भी तीर्थ यात्री को कभी कोई मुश्किल नहीं आती है।
इस धार्मिक परिक्रमा की शुरुआत जूनागढ़ के भवनाथ में दूधेश्वर मंदिर से होती है। यात्रा का पहला पड़ाव जिना बावा का मंदिर और उसके बाद चंद्र मौलेश्वर का मंदिर होता है, जो भवनाथ मंदिर से लगभग 12 किमी की दूरी पर मौजूद है। इसके बाद श्रद्धालुओं का समूह हनुमान मंदिर और सूरज कुंड की ओर बढ़ता है जो जीना बावनी माधी से लगभग 8 किमी की दूरी पर मालवेला झील के पास स्थित है। यात्रा का अगला चरण मालवेला से बोरदेवी तक का होता है, जो बड़ा ही कठिन होता है। समें खड़ी पहाड़ी पर चढ़ना और उतरना होता है। इसे मालवेलानी घोड़ी कहा जाता है। इन सभी कठिनाइयों को पार करते हुए श्रद्धालु इस परिक्रमा के आखिरी पड़ाव बोरदेवी माता के मंदिर में पहुंचते हैं। मंदिर के आसपास झीलें और नदियां इस जगह की सुन्दरता में चार चांद लगा देती हैं। बोरदेवी माता मंदिर में पूजा अर्चना कर श्रद्धालु फिर से 8 किमी की भवनाथ मंदिर तक का यात्रा करते हैं, जिसके बाद परिक्रमा संपूर्ण होती है। परिक्रमा मार्ग में गुरू शिखर, कमंडल कुंड जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थल भी अते हैं, जहां भगवान दत्तोत्रय विराजमान हैं।