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श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर तथा दिल्ली गेट स्थित प्राचीन बाला सुंदरी चतुर्भुजी देवी मंदिर में शारदीय नवरात्रि महोत्सव 2025-नव दिवस में प्रथम स्वारूप मां शैलपुत्री

श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने नवरात्र महोत्सव का शुभारंभ करते हुए श्री दूधेश्वरनाथ मठ महादेव मंदिर परिसर स्थित श्री दूधेश्वर वेद विद्या पीठ में घट स्थापना की तथा दिल्ली गेट स्थित प्राचीन बाला सुंदरी चतुर्भुजी देवी मंदिर में पूजा-अर्चना की। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि नवरात्र का पर्व देवी दुर्गा के नौ रूपों की साधना और उपासना के लिए समर्पित है, जिससे भक्त शक्ति, साहस, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति की कामना करते हैं। घट स्थापना के उपरांत दुर्गा सप्तशती का पाठ हुआ और पीठ के 55 विद्यार्थियों ने भक्तों व गाजियाबादवासियों के कल्याण हेतु कष्ट निवारण मंत्र का जाप किया।

पहले दिन मंदिर में गाजियाबाद सहित अनेक शहरों से आए भक्तों की भीड़ उमड़ी, जिन्होंने मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त किया। महाराजश्री ने बताया कि जिस प्रकार काशी विश्वनाथ मंदिर से अन्नपूर्णा व संकट मोचन मंदिर जुड़े हैं, उसी प्रकार श्री दूधेश्वरनाथ मंदिर से बाला सुंदरी चतुर्भुजी देवी मंदिर और चौपला का हनुमान मंदिर जुड़े हैं, जहाँ माता रानी की कृपा से भक्तों के दुख दूर होकर जीवन सुख-समृद्धि से भर जाता है। इस अवसर पर जूना अखाड़ा के सचिव एवं बाला सुंदरी चतुर्भुजी देवी मंदिर के महंत गिरिशानंद गिरि महाराज ने उनका स्वागत किया और बताया कि नौ दिनों तक प्रतिदिन माता का श्रृंगार, दुर्गा सप्तशती का पाठ तथा सांयकाल यज्ञ का आयोजन होगा, जिसके यजमान अतुल जी होंगे।

नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा :-

नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा होती है। ये नवदुर्गा में प्रथम स्वरूप हैं।

माँ शैलपुत्री – परिचय

  • अगली बार जन्म लेकर ये हिमालयराज की पुत्री बनीं और शैलपुत्री कहलाईं।
  • शैल का अर्थ है पर्वत और पुत्री का अर्थ है पुत्री।
  • माँ शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं।
  • इनका दूसरा नाम पार्वती और हेमवती भी है।
  • पूर्वजन्म में ये सती थीं, जिन्होंने अपने पति भगवान शिव का अपमान सहन न कर अग्नि में देह त्याग दी थी।

स्वरूप और प्रतीक

  • इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल है।
  • ये नंदी बैल (वृषभ) पर सवार रहती हैं।
  • इनके मस्तक पर अर्धचंद्र सुशोभित होता है।
  • माँ शैलपुत्री को भक्ति और साधना का आधार माना जाता है।

माँ शैलपुत्री का महत्व

  • साधक के मूलाधार चक्र की साधना इनसे शुरू होती है।
  • इनकी उपासना से जीवन में स्थिरता, धैर्य, और मनोबल प्राप्त होता है।
  • माँ शैलपुत्री का पूजन करने से मन की अशांति दूर होती है और साधना का पहला द्वार खुलता है।

माँ शैलपुत्री का बीज मंत्र:-

“ॐ एं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे”

पूजा मंत्र (जप हेतु)

“ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः”
👉 इसे 108 बार जपना सर्वोत्तम माना जाता है।

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