श्री दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर में गर्भगृह के बराबर में ही मंदिर के सिद्ध –संतों की समाधियाँ स्थित हैं. इनमें से अनेक सिद्ध- संतों ने जीवित समाधि ली हुई है | इन समाधियों की नित्य पूजा-अर्चना करने से अनेकों चमत्कार होते रहते है. आज भी भगवान् दूधेश्वर को भोग लगाने के पश्चात बाबा इलायची गिरी जी की समाधि पर भोग लगाना अनिवार्य है.
श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर प्रारम्भ से ही अनेक सिद्ध –संतों की तपस्थली रहा है |
अलौकिक संत गरीब गिरी जी महाराज ,तपोमूर्ति बाबा इलायची गिरी जी महाराज ,सिद्ध बाबा गुजरान गिरी जी महाराज ,सिद्ध संत नारायण गिरी जी महाराज ,सिद्ध बाबा कैलाश गिरी जी महाराज ,सिद्ध बाबा गंगा गिरी जी महाराज ,सिद्ध योगी एतबार गिरी जी महाराज , सिद्ध संत बुद्ध गिरी जी महाराज ,पूज्य बाबा दौलत गिरी जी महाराज ,बंगाली बाबा नित्यानंद गिरी जी महाराज मठ की इस परम्परा के वाहक रहे हैं
गौरवशाली समृद्ध श्रीमहंत परम्परा:-
ऐतिहासिक सिद्ध पीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर की श्रीमहंत परम्परा अति प्राचीन एवं समृद्धशाली है | इस परम्परा में ऐसे-ऐसे सिद्ध संत-महात्मा हुए हैं ,जिन्होंने न केवल मंदिर के उत्थान के लिये कार्य किया बल्कि आध्यात्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र में ऐसे अभूतपूर्व कार्य किये जो आम आदमी को अचंभित कर देने वाले हैं |
लगभग 560 वर्ष पूर्व ज्ञात प्रथम श्रीमहंत वेणी गिरी जी महाराज से लेकर वर्तमान श्रीमहंत नारायण गिरी जी महाराज तक समस्त सोलह श्रीमहंत विद्वान,सहज और मठ के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव रखने वाले हुए हैं | कहते हैं कि प्रथम श्रीमहंत वेणी गिरी जी से लेकर तेरहवें श्रीमहंत शिव गिरी जी महाराज तक सभी सोना बनाने की कला में सिद्धहस्त थे |
सिद्ध समाधि स्थल सूचि:-
परम तपस्वी गरीब गिरी जी महाराज(कैलाशवास वि. स. 1564):-
परम तपस्वी गरीब गिरी जी महाराज सिद्ध संत भगवान दूधेश्वर ने गरीब गिरी जी को साक्षात शिव के बना दिया था। अनेक चमत्कार दिखाने के बाद बाबा गरीब गिरी जी महाराज ने श्री दूधेश्वर मठ में जीवित समाधि ले ली थी। ऐसी मान्यता है कि गरीब गिरी जी की समाधि की पूजा अर्चना करने से दुधारू पशु रोग मुक्त हो जाता है। जो गाय दूध ना देती हो कर गर्भ धारणा ना करती हो वह भी दूध देने लगती है। गर्भ धारण करने लगती है। सिद्ध संत बाबा गरीब के लिए जी महाराज श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के अति विलक्षण अलौकिक सिद्ध महात्मा हुए हैं। परम योगी गरीब जी के लिए जी सदैव एक प्रकार की समाधि अवस्था में रहा करते थे। भगवान् सदाशिव के नाम और ध्यान से हर पल जुड़े रहने वाले परम संत गरीब गिरी जी महाराज ब्रह्मानंद- परमा आनंद की अद्भुत मस्ती में रहते थे।
लंबे समय से अस्वस्थ व्यक्ति यदि समाधि पर चोला चढ़ाता है। तो उसे स्वास्थ्य लाभ होता है यह बात भी सच है कि बाबा गरीब गिरी जी की समाधि पर निरंतर नियम पूर्वक जल चढ़ाना वह पूजा करने से साधक की वाणी में अद्भुत सत
और संयम आता है।
तपो मूर्ति इलायची गिरी जी महाराज(कैलाशवास वि. स. 1781):-
बाबा इलाइची गिरी जी महाराज परम तपस्वी परम ज्ञानी सिद्ध संत थे। उन्होंने मंदिर प्रांगण में जीवित समाधि ली थी। अन्नपूर्णा सिद्धि व मनोकामना पूर्ति के लिए भक्त उनके समाधि की पूजा करते हैं। भगवान दूधेश्वर के बाद बाबा लाल जी गिरी जी महाराज को भोग लगाने की परंपरा है। जो आज भी विद्यमान है।
श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ के सिद्ध संतों में तपो मूर्ति बाबा इलाइची गिरी जी महाराज का नाम शीर्ष पर आता है। बाबा इलाइची गिरी जी को मंदिर से बाहर जाते कभी किसी ने देखा नहीं था। सदैव धूने के निकट विराजमान होकर बाबा प्रभु का नाम जपते रहते थे। कहा जाता है कई कई दिनों तक लगातार धूने के निकट आसन पर बैठे रहते थे। ये उनके तपस्या करने का अंदाज था इस अवधि में वो कुछ खाते पीते नहीं थे और ना ही किसी से कोई बात करते थे। उनके पास कोई व्यक्ति जब कोई समस्या लेकर आता था तो पीड़ित की बात सुनने के बाद केवल इतना कहा करते थे भगवान दूधेश्वर से कह दूंगा वही तुम्हारा उद्धार करेंगे ऐसा कहकर आंख मूंद लेते थे और कुछ बुदबुदाने लगते थे ऐसा जैसे मन ही मन किसी से बात कर रहे हो।
सिद्ध बाबा गुजरान गिरी जी महाराज(कैलाशवास वि. स. 1781):-
पूजयपाद बाबा गुजरान गिरी जी महाराज श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के परम तपस्वी सिद्ध संत थे। बाबा की वाणी में साक्षात सरस्वती माता का वास था। माता अन्नपूर्णा तो संभवत सदा गुजरान गिरी जी के समक्ष ही रहती थी।
सिद्ध संत नारायण गिरी जी महाराज(कैलाशवास वि. स. 1870):-
श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर में परम सिद्ध संत बाबा नारायण गिरी जी महाराज हुए। बाबा सदैव प्रभु के स्मरण में लीन रहते थे बाबा के मुख से सदा नमः शिवाय पंचाक्षरी मंत्र निकला करता था। वह बहुत ही धीमी बोलते थे। उनकी वाणी को सुनने के लिए पूरा ध्यान देना पड़ता था। बाबा के हृदय में सभी के लिए प्यार था कुछ भक्त तो उनकी ममता से प्रभावित होकर उन्हें बाबा माँ भी कह दिया करते थे। एक विशेष बात यह थी कि बाबा नारायण गिरी सदैव मुस्कुराते रहते थे। अपने सारे काम स्वयं करते थे उनका कहना था कि अपने काम अपने आप करने से व्यक्ति छोटा नहीं होता बल्कि अपने काम औरो से करा कर आदमी छोटा हो जाता है। बाबा नारायण गिरी का एक नियम था। नित्य प्रति प्रातः काल और सांयकाल पास के जंगल में जरूर जाया करते थे। वहाँ से लौटते थे तो उनके हाथ में किसी न किसी वनस्पति के पत्ते अथवा जड़े जरूर होते थे। उन्हें जड़ी बूटियों की अनोखी पहचानती भ्रमण कर संग्रह की जड़ी बूटियों से बाबा लोगों का उपचार करते थे।
सिद्ध बाबा कैलाश गिरी जी महाराज(कैलाशवास वि. स. 1912):-
ऐतिहासिक सिद्धपीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के संतों में बाबा कैलाश गिरी जी महाराज का नाम बड़े आदर व श्रद्धा से लिया जाता है कैलाश गिरी जी महाराज बहुत कम बोलते थे लेकिन जब बोलते थे उनकी वाणी से मानव मात्र के कल्याण की बातें ही निकलती थी बाबा कैलाश गिरी जी किसी का भी दुखने देख नहीं सकते थे किसी को भी कष्ट में देख यह जानकर उनकी आंखों से आंसू निकलने लगते थे लेकिन दूसरे ही पल वह कष्ट निवारण का उपाय बता रहे होते थे। अनन्य शिव साधक कैलाश गिरी जी महाराज के हाथों में कमाल की शक्ति थी सामान्य से लंबी उंगलियां वाले हाथ के स्पर्श मात्र से बाबा किसी की भी पीड़ा को समाप्त करने को करने की जादुई शक्ति स्वामी थी।
सिद्ध बाबा गंगा गिरी जी महाराज (कैलाशवास वि. स. 1975):-
सिद्ध बाबा गंगा गिरी जी महाराज अति विलक्षण संत थे वह बड़े मनमौजी थे अधिकांश समय अपने इष्ट के स्मरण में व्यस्त रहते और शेष समय में भगवान दूधेश्वर के भक्तों से ढेर सारी बातें करते बाबा गंगा गिरी जी महाराज के बारे में कहा जाता है वह दिन में 5 घंटे का मौन व्रत रखते थे या उनका नियम था जिससे उन्हें कभी भंग नहीं किया। बाबा जी को गंगा मैया से बेहद लगाव था प्रत्येक माह के शिवरात्रि को गंगा स्नान के लिए जरूर जाया करते थे। उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर में सर्वाधिक गंगा स्नान किए ऐसे अनेक बार हरिद्वार ऋषिकेश गया गए थे। गंगा स्नान करते हुए काफी सारा गंगाजल साथ लाना नहीं भूलते थे। उसी गंगाजल से बाबा जी भगवान दूधेश्वर का अभिषेक करते थे। गंगागिरी जी 5 घंटे के मौन व्रत की अवधि में पंचाक्षर नमः शिवाय का जाप करते थे। इस दौरान वो किसी से मिलते भी नहीं थे. वह इसी मंत्र को जपने के लिए भक्तों को दिया करते थे।
बाबा गंगा गिरी जी महाराज की समाधि पर 40 दिन तक निरंतर चढ़ा नमः शिवाय का जाप करने से मनोकामना पूर्ण होने की मान्यता है लेकिन समाधि पर गंगाजल से अभिषेक आवश्यक है।
सिद्ध योगी एतबार गिरी जी महाराज((कैलाशवास वि. स. 1975):-
अनन्य शिव साधक सिद्ध बाबा ऐतबार गिरी जी महाराज श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ के ऐसे सिद्ध संत हुए है। जो योग शास्त्र के महान ज्ञाता थे। वह वास्तव में सिद्ध योगी थे और योग ही उनके जीवन का आधार था।
एतबार गिरी जी महाराज को गायों से बहुत लगाव था। वह प्रतिदिन कई घंटे गौशाला में गायों की सेवा करते हुए बिताते थे उन्होंने प्रत्येक गाय और बछड़े का नामकरण किया हुआ था वह सभी गायों व बछड़ों को नाम से पुकारते थे बाबाजी के समय गाय को पुकारते उसकी आंखों में अजीब सी चमक आ जाती थी जिस बछड़ों का नाम लेते वह रसी तोड़ कर उनकी और आने की कोशिश करता। लेकिन जब वो उनके इसके पास पहुंच जाते। तो शांत हो जाया करते थे। बाबा एतबार गिरी जी महाराज की चारो तरफ एक अद्भुत आभा थी।
सिद्ध संत बुद्ध गिरी जी महाराज(कैलाशवास वि. स. 1979):-
श्री दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर प्रांगण में स्थित सिद्ध संत बाबा बुध गिरी जी महाराज की समाधि पर नित्य प्रति पुष्प अर्पित करने से शारीरिक व मानसिक बल की प्राप्ति होती है। बुद्धि कौशल में निखार आता है
पूज्य बुध गिरी जी महाराज बड़े सिद्ध पुरुष हुए हैं वह सप्तम अवस्था में पहुंचे हुए संत थे। थे उनकी वाणी में साक्षात माता सरस्वती का वास था उनका दिया प्रत्येक आशीर्वाद निश्चित रूप से परिपूर्ण होता था. बाबा बुध गिरी जी के पैर नहीं थे. और शरीर भी भारी था वह ज्यादातर समय एक ही स्थान पर बैठे रहते थे बाबा जी निरंतर अपने इष्ट के साथ ध्यान में लीन रहते थे भक्तों से उनके हाल चाल जानना बाबा जी को प्रिय था। बाबा भूत गिरी जी महाराज त्रिकालदर्शी और वचन सिद्ध संत थे. उनके बारे में कहा जाता है उन्हें आठ सिद्धियां प्राप्त थी गाजियाबाद के चौपला बाजार अग्रसेन बाजार स्थित मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के अनन्य भक्त महावीर हनुमान जी का सिद्ध मंदिर बाबा बुध गिरी जी द्वारा जागृत है।
पूज्य बाबा दौलत गिरी जी महाराज(कैलाशवास वि. स. 1979):-
दौलत गिरी जी जिस किसी को भी दबा देते उसे एक वादा जरूर लेते थे वादा करो जिस समय से दवा पीनी शुरु करोगे उस समय से 24 घंटे में कभी भी दुग्धेश्वरय नमः शिवाय महामंत्र की एक माला जरूर करोगे। और यथासंभव प्रयास कर भगवान दूधेश्वर का जल अभिषेक भी करोगे।
स्वयंभू ज्योतिर्लिंग की दूधेश्वरनाथ महादेव के देवस्थान में तप साधना पूजा अर्चना करने वाले पूज्य दौलत गिरी जी महाराज विलक्षण संत थे। पूज्य दौलत गिरी जी की नाड़ी और विचित्र औषधियों का अद्भुत ज्ञान था। वह किसी की भी नारी देखकर उनकी मनोदशा के बारे में एक एक बात सही-सही बता देते थे। बाबा जी ज्यादातर लोगों की नाड़ी देखते नहीं थे क्योंकि नाड़ी देखकर जब वो सही बात बोलते थे तो लोगो को बुरा लग जाता था। वो उनका दिल नहीं दुखना चाहते थे।
बंगाली बाबा नित्यानंद गिरी जी महाराज(कैलाशवास वि. स. 2051):-
बंगाली बाबा नित्यानंद गिरी जी महाराज बंगाली बाबा आधी धोती बांधते थे। उनकी जरूरत बहुत सीमित थी अपने ऊपर खर्च करना बंगाली बाबा को अच्छा नहीं लगता था। उन्हें तो गरीबों की सहायता में धन व्यय करना भाता था। ऐतिहासिक सिद्धपीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर की गौरवशाली सिद्ध संत परंपरा की महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में पूज्य नित्यानंद गिरी जी महाराज के विशेष पहचान थी उनके शिष्य उन्हें श्रद्धा को प्रेम से बंगाली बाबा कहकर पुकारते थे।
गौरवशाली श्री महंत परंपरा:-
लगभग 560 वर्ष पूर्व ज्ञात प्रथम श्रीमहंत वेणी गिरी जी महाराज से लेकर वर्तमान श्रीमहंत नारायण गिरी जी महाराज तक समस्त सोलह श्रीमहंत विद्वान,सहज और मठ के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव रखने वाले हुए हैं | कहते हैं कि प्रथम श्रीमहंत वेणी गिरी जी से लेकर तेरहवें श्रीमहंत शिव गिरी जी महाराज तक सभी सोना बनाने की कला में सिद्धहस्त थे |
श्री श्री 1008 श्रीमहंत वेणी गिरी जी महाराज(विक्रम सम्वत् 1511 से 1568):-
ऐसी मान्यता है कि श्री दूधेश्वर के प्रथम श्री महंत परम तपस्वी त्रिकालदर्शी पूजय वेणी गिरी जी महाराज मठ मंदिर प्रांगण स्थित समाधि पर नित्य जल चढ़ाने से भविष्य की घटनाओं का पूर्वाभास होने के गुण की प्राप्ति होती है साथ ही बुद्धि का अद्भुत विकास होता है।
श्री महंत वेणी गिरी जी महाराज विक्रम संवत 1511 से 1568 तक मठ श्रीमंत रहे। इनका स्वभाव अत्यंत सौम्य सरल सहज और परम तपस्वी संत थे। उस समय यहां घना जंगल था। जिसमें तरह-तरह के भयानक जंगली जानवर भी रहते थे। मठ मंदिर में भी बहुत अधिक भक्तों का आना जाना नहीं था क्योंकि क्षेत्र की आबादी बहुत अधिक नहीं थी फिर भी मठ में महात्माओं का डेरा लगा रहता था सूर्यास्त के बाद तो मंदिर की ओर कोई आता ही नहीं था क्योंकि लोग जंगली जानवर से आतंकित रहते थे। ऐसे वातावरण में भी परम तपस्वी वेणी गिरी जी महाराज निर्भय रहकर भगवान दूधेश्वर का ध्यान किया करते थे सुबह शाम पूजा-अर्चना और बाकी समय ध्यान भजन चर्चा में बिताया करते थे।
श्री महंत संध्या गिरी जी महाराज(कैलाशवास वि. स. 1600):-
ऐसी मान्यता है कि पूज्य संध्या गिरी जी महाराज की समाधि पर नित्य जल पुष्प अर्पित करने और चिड़ियों को दाना डालने से व्यक्ति का हर कष्ट सुख में बदल जाता है। संध्या गिरी जी महाराज ने विक्रम संवत 1568 से 1600 तक सिद्ध पीठ में श्री महंत बने रहे।
संध्या गिरी जी महाराज को पक्षियों से बेहद लगाव था आसपास के वृक्षों पर कौन-कौन से पक्षियों के घोंसले में कितने कितने बच्चे हैं इसकी पूरी जानकारी महाराज श्री को रहती थी। प्रात:काल भगवान श्री दूधेश्वर का अभिषेक करने के बाद पहला काम पक्षियों को दाना डालने का किया करते थे बहुत से पक्षी दाना चुगने आ तो वो थोड़ी दूरी पर बैठ जाते हैं पक्षियों को चुगते देखते रहते। उस दौरान वह किसी से कोई बात नहीं करते थे यदि कोई उनसे मिलने आता भी तो उसे चुप रहने का इशारा करके अपने पास बिठा लेते।
श्री महंत प्रेम गिरी जी महाराज(1600 से 1649)
पूज्य श्री महंत संध्या गिरी जी महाराज के बाद प्रेम गिरि जी महाराज ऐतिहासिक सिद्धपीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के तीसरे श्री महंत बने। प्रेम गिरि जी को पहलवानी का बड़ा शौक था उनकी काया भी पहलवानों वाली ही थी वह खूब तगड़े थे भगवान दधेश्वर की साधना पूजा अर्चना और व्यायाम भी उनकी दिनचर्या के मुख्य हिस्सा था। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत हो भगवान दूधेश्वर का अभिषेक करने के बाद लगभग एक घंटा साधना करके अखाड़े में काम करते थे। मंदिर के पास ही उन्होंने मिट्टी खोद वा लिया था। यहीं पे पत्थर रखे हुए थे आदि।
श्री महंत अधीन गिरि जी महाराज(कैलाशवास वि. स.1649 से 1680):-
पूज्य प्रेम गिरि जी महाराज के बाद अधीन गिरि जी महाराज ऐतिहासिक सिद्धपीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के 4th श्री महंत बने। श्री महंत अधीन गिरि जी महाराज ऐतिहासिक सिद्धपीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के जैसे प्रांगण में स्थित श्री महंत अधीन गिरी जी महाराज की समाधि पर नित्य जल चढ़ाने से इच्छित फल की प्राप्ति होती है तथा वाक सिद्धि प्राप्त होती है।
श्री अधीन गिरी जी महाराज के पास एक मिट्टी का पात्र था। जिसमें तरह-तरह के छोटे पत्थर थे। अलग-अलग रंग वाले इन पथरो को महाराज श्री कभी भी अपने से दूर नहीं होने देते थे। अरहर की दाल के दाने के बराबर इन पत्थरों से मिट्टी का वह पात्र हमेशा ही गर्दन तक भरा रहता था। श्री अधीन गिरी जी सोमवार के दिन इन पात्रो को गौशाला में ले जाकर पहले गोमूत्र से फिर दुग्ध से धोकर अपने कंधे पर पड़े रहने वाले अंगों जैसे सुखाकर मिट्टी के पात्र में रख दिया करते थे। राष्ट्रीय अध्यक्ष मृदुभाषी और कृपालु थे उन्होंने कभी किसी की आवेश में नहीं देखा उनके चेहरे पर मुस्कान रहती थी। उनके स्वभाव के कारण अपना दुख दर्द सुनाने वालों की कमी नहीं रहती थी। सबकी बात को बहुत ध्यान से सुनते थे और उचित सलाह देते थे।
श्री महंत राज गिरी जी महाराज(कैलाशवास वि. स.1680 से 1707):-
श्री महंत राज गिरी जी महाराज की समाधि पर जल और कच्चा दूध चढ़ाने से अभीष्ट सिद्धि प्राप्त होती है। ऐतिहासिक सिद्धपीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के पंचम श्री महंत पूज्य राज गिरी जी महाराज बने। अधीन गिरी जी महाराज के कैलाशवासी होने के बाद राज गिरी जी महाराज उनके उत्तराधिकारी बने।
महाराज श्री को मिट्टी की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाना बहुत भाता था वैसे भी इस कला में वह पूर्ण पारंगत थे।
श्री महंत धनी गिरी जी महाराज(विक्रम सम्वत् 1707 से 1743):-
श्री महंत धनी गिरी जी महाराज पूरे 36 वर्ष तक सिद्ध पीठ के श्रीमंत रहे। परम पूज्य धनी गिरी जी महाराज समाधि पर जल चढ़ाने से भगवान दूधेश्वर की अनन्य भक्ति का साक्षात फल मिलता है। आरोग्य की प्राप्ति होती है और समृद्धि आती है।
परम पूज्य श्री महंत राज गिरी जी महाराज के कैलाश वासी के उपरांत श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के छठे श्रीमंत के रूप में परम पूज्य धनी गिरी जी महाराज गद्दी पर विराजमान हुए. पूज्य धनी गिरी जी महाराज अत्यंत परोपकारी संत थे। भक्तों के दुख उनसे देखे नहीं जाते थे सदैव परमेश्वर की भक्ति में लीन रहने वाले महाराज श्री कई बार भक्तों की खातिर भगवान से भी टकरा जाते थे अपनी बात मनवा कर ही दम लेते थे। ऐसे महात्मा कम ही होते हैं जो अपने हिट को तिलांजलि देकर पर हित के लिए अपने भगवान से टकरा जाए।
श्री महंत दया गिरी जी महाराज(विक्रम सम्वत् 1743 से 1785):-
ऐसी मान्यता है कि मंदिर प्रांगण में स्थित श्री दया गिरी जी महाराज के समाधि पर जल चढ़ाने व पूजा-अर्चना करने से संतोष का भाव जागृत होता है और जीवन में ठहराव तथा सम्पनता आती है।
नाम के अनुरूप दया गिरी जी महाराज के मन में दया का सागर हिलोरे लेता रहता था। उनके सरल व सहज स्वभाव के कारण भक्तगण उनका बहुत सम्मान करते थे। महाराज श्री सुबह शाम की आरती के समय नृत्य किया करते थे। साधारण व्यक्ति जिसे नृत्य कहते थे वास्तव में वो महाराज श्री आत्मानंद में झूम ना होता था। आत्मानंद प्रणाम तथा पूजा गिरी जी महाराज रुद्राक्ष की माला धारण किए रहते थे
महाराज श्री स्वपन शास्त्री थे उन्हें प्रत्येक स्वपन का अर्थ पता होता था।
जीवन में व्यक्ति स्वप्न का फल नहीं जानता जो सब जानते हैं स्वप्न शास्त्री कहलाते हैं। ज्यादा स्वप्न शास्त्रीओ का मानना है कि किसी भी व्यक्ति द्वारा देखे गए प्रत्येक शब्द का कोई ना कोई अर्थ होता और वो व्यक्ति के जीवन से जुड़ा होता है।
श्री महंत पलटू गिरी जी महाराज(विक्रम सम्वत् 1785 से 1830):-
परम पूज्य श्री पलटू गिरी जी की समाधि पर निर्मित जल चढ़ाने से दरिद्रता का नाश होता है और मनोकामना पूर्ण होती है कभी-कभी पलटू गिरी जी महाराज भगवान दूधेश्वर में पूर्ण आस्था व विश्वास रखने वालों को स्वप्न में दर्शन देकर आदेश भी देते हैं।
परम पूज्य श्री महंत दया गिरी जी महाराज के कैलाश वास के बाद परम तपस्वी पलटू गिरी जी महाराज ऐतिहासिक सिद्धि पीठ के ज्योतिर्लिंग श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के पद पर आसीन हुए व सिद्ध पीठ के आठवें श्री महंत थे। प्राचीन विद्याओं के ज्ञाता थे। वो बहुत ही झीन काया थे इतने पतले की हड्डियों को भी गिना जा सकता था वह पूर्व के महंतो की तरह ही एक लंगोटी ही धारण करते थे गले में रुद्राक्ष की माला धारण करते थे।
श्री महंत सोमवार गिरी जी महाराज(विक्रम सम्वत् 1830 से 1874):-
श्री महंत सोमवार गिरी जी महाराज किसी भी प्रकार की शारीरिक पीड़ा जो सोमवार को गिरी जी महाराज के अंगूठे के स्पर्श मात्र से ही दूर हो जाया करती थी इस तरह के अनेक घटनाएं हैं जिनसे पूज्य महाराज श्री का भगवान श्री दूधेश्वर के प्रति समर्पण उजागर होता है।
सिद्ध पीठ के नवे श्री महंत सोमवार गिरी जी महाराज का जीवन भरा साधा था। तरह तरह की सिद्धियाँ उन्हें प्राप्त थी। आध्यात्मिक व सामाजिक ज्ञान से परिपूर्ण महाराज श्री भी पूर्व के महंतो की तरह वनष्पतियो के ज्ञाता थे। जड़ी बूटियों द्वारा असाध्य रोगों को दूर कर देते थे रोगी का उपचार करने से पहले उनकी एक ही शर्त होती थी की वो यथासंभव भगवान दूधेश्वर के दर्शन व सेवा करने जरूर आएंगे असाध्य रोग से मुक्ति के लिए यह कोई बहुत बड़ी शर्त नहीं थी।
श्री महंत वसंत गिरी जी महाराज(विक्रम सम्वत् 1874 से 1915):-
श्री महंत बसंत गिरी जी महाराज भगवान शिव के परमधाम कैलाश को प्रस्थान किया मान्यता है किमंदिर में स्थित श्री महंत जी महाराज के समाधि पर नित्य जल चढ़ाने वाले को जीवन में आजीविका के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता।
श्री बसंत गिरी जी छोटे कद के पतले दुबले तेजस्वी संत थे उनका व्यक्तित्व बहुत शानदार था उनके पास अनेक ऐसे सिद्धियाँ थी। जिनका उपयोग वो जनकल्याण के लिए ही किया करते थे उनके पास दिव्य दृष्टि थी। जिसके माध्यम से घटित होने से बहुत पहले ही घटना को देख लिया करते थे और हर संभव प्रयास कर मंदिर में आने वाले किसी भी वक्त का अनिष्ट नहीं होने देते थे।
श्री महंत निहाल गिरी जी महाराज(विक्रम सम्वत् 1915 से 1965):-
भगवान श्री दूधेश्वरनाथ महादेव की विधिवत पूजा अर्चना अभिषेक करने के साथ सिद्ध पीठ स्थित श्री निहाल गिरी जी महाराज की समाधि पर नित्य जल चढ़ाने से समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं और साधक का कर्म के प्रति विश्वास निरंतर बढ़ जाता है आलस्य और लालच से मुक्ति मिलती है.
श्री महंत वसंत गिरी जी महाराज के कैलाश वासी के बाद पूज्य निहाल गिरी जी महाराज सिद्धपीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के 11वीं श्री महंत बनी श्री महंत निहाल गिरी जी महाराज को सिद्ध संत बाबा गिरी गंगा के जी महाराज का पावन सानिध्य मिला था पूज्य निहाल गिरी जी महाराज अपना अधिकांश समय अपने इष्ट के ध्यान में लगाया करते थे रोजाना 1 घंटे गौशाला में गायों की सेवा करना उनका नियम था और गौशाल में जाकर महाराज श्री सभी गायों को चरण स्पर्श किया करते थे और उनके माथे पर तिलक लगाते थे।
श्री महंत मंगल गिरी जी महाराज(विक्रम सम्वत् 1965 से 1977):-
परम पूज्य श्री महंत मंगल गिरी जी महाराज शिवयोग वासी हुए उन्होंने अनेक भक्तों को अंधेरे से निकालकर प्रकाश की और राह दिखाया था। श्री महंत निहाल गिरी जी महाराज के कैलाश वास के बाद उनके उत्तराधिकारी के रूप में श्री मंगल गिरी जी महाराज सिद्धपीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के श्री महंत पद पर आसीन हुए मंगल गिरी जी महाराज सिद्ध पीठ के गौरवशाली श्री महंत परंपरा के प्रवेश के महंत पूज्य मंगल गिरी जी महाराज के ही नहीं दो 2 महान संतो परम पूज्य बाबा एतवार गिरी जी महाराज परम पूज्य बुध जी महाराज के पावन सानिध्य प्राप्त हुआ था।
श्री महंत शिव गिरी जी महाराज(विक्रम सम्वत् 1977 से 1991):-
श्री महंत शिव गिरी जी महाराज ने कितने ही भक्तों को जीने की कला सिखाई थी। कितनी लोगो को पाप के रास्ते से हटा कर धर्म की राह पर लगाया था। महाराज श्री गरीब असहाय भक्तों के सहायता भी किया करते थे।
श्री महंत मंगल गिरी जी महाराज के कैलाश वास के उपरांत उनके उत्तराधिकारी के रूप में परम पूज्य श्री गिरी जी महाराज ने ऐतिहासिक सिद्धपीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर की व्यवस्था संभाली। मठ मंदिर की पूर्ण व्यवस्था को सदा चौक चौबंद रखने वाले पूज्य श्री महंत मंगल गिरी जी महाराज को प्रभु के सिवा किसी और वस्तु से लगाव नहीं था।
श्री महंत गौरी गिरी जी महाराज(विक्रम सम्वत् 1991 से 2038):-
श्री महंत गौरी गिरी जी महाराज उन्होंने कई उपदेश दिए जिनमें से एक था जीवन अनमोल है यह प्रभु का प्रसाद है इसके एक-एक पल को पूरा मन से जीना चाहिए।
परम पूज्य वीतराग श्री महंत शिव गिरी जी महाराज का शरीर पूरा होने पर श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के 14 श्रीमंत के रूप में संत शिरोमणि पूज्य गौरी गिरी जी महाराज गुरु गद्दी पर विराजमान हुए। महंत सिद्ध योगी थे। जिनमें नवधा भक्ति के तत्व दृष्टिगोचर होते थे और वो भक्ति को एक ऐसी नौका मानते थे जिस पर आरूढ़ होकर जिज्ञासु सहज ही भवसागर के पार जा सकता है। परम शिव भक्त महाराज श्री पर भगवान दूधेश्वर की अपार कृपा थी तभी तो उनको अनेको बार भगवान से जनकल्याण दिव्य प्रेरणा प्राप्त हुई थी। जिन्हें उन्होंने जनता में प्रसाद के रूप में वितरित किया।
श्री महंत राम गिरि जी महाराज(विक्रम सम्वत् 2034 से 2044):-
श्री महंत राम गिरि जी महाराज को अतिथि सत्कार में बड़ा आनंद आता था। मठ में पधारे अतिथियों का वो विशेष ध्यान रखते थे अनेक बार ऐसा होता था कि मठ मंदिर में पधारे महात्मा को रात्रि में सोने के लिए अपने कपड़े दे दिया करते थे और स्वयं लकड़ी जलाकर उनके सहारे सर्दी की पूरी रात बिता दिया करते थे।
श्री श्री 1008 श्रीमहंत नारायण गिरी जी महाराज(वर्तमान)
ऐतिहासिक सिद्धिपीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के 16th पीठाधीश्वर श्री महंत नारायण गिरी जी है। दिव्य स्वभाव से सरल, सहज, मृदुभाषी और हमेशा मुस्कुराते रहते है। और मानवता के अनन्त मार्गदर्शन के लिए इस पवित्र मार्ग को चुना है।
महाराज श्री ने जीवन को निकट से देखा है जाना है आपका जीवन वर्तमान व भावी पीढ़ी को सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करता है। राजस्थान के छोटे से गांव से निकलकर सिद्धपीठ श्री दूधेश्वरनाथ मठ मंदिर के पीठाधीश्वर पद पर आसीन होने तक की श्री महंत नारायण गिरी जी की जीवन यात्रा अनुकरणीय है।