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श्री जागनाथ महादेव मंदिर में तीन दिवसीय प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव शोभा-यात्रा के साथ शुरू हुआ

श्री जागनाथ महादेव मंदिर में तीन दिवसीय प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव शोभा-यात्रा के साथ शुरू हुआ
ब्रहमलीन श्री श्री 1008 महंत गंगा भारती महाराज की मूर्ति स्थापना की जाएगी
श्री जागनाथ महादेव मंदिर काफी प्राचीन एवं ऐतिहासिक हैः श्रीमहंत नारायण गिरि

जालोरः
जालोर जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर नारणावास के ऐसराणा पर्वत पर स्थित श्री जागनाथ महादेव मंदिर में ब्रहमलीन श्री श्री 1008 महंत गंगा भारती महाराज की मूर्ति स्थापना द्वितीय भंडारा महारूद्र यज्ञ समस्त समाधियों के पगलियों की स्थापना प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव शनिवार 17 फरवरी से शुरू हो गया। महोत्सव 19 फरवरी तक चलेगा। महोत्सव जल यात्रा, वर घोडा व शोभा-यात्रा के साथ शुरू हुआ। शोभा-यात्रा में बड़ी संख्या में संतों व हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। महोत्सव का शुभारंभ मुख्य अतिथि श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने कहा कि ब्रहमलीन श्री श्री 1008 महंत गंगा भारती महाराज ने सनातन धर्म को मजबूत करने, लोगों के अंदर प्रभु भक्ति की ज्योति जगाने आध्यात्मिक चेतना के लिए जो कार्य किए, उसके लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे।

आज वे भले ही हमारे बीच में ना हो, मगर भक्तों के दिलों में हमेशा बसे रहेंगे। श्रीमहंत नारायण गिरि ने कहा कि जालोर जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर नारणावास के ऐसराणा पर्वत पर स्थित श्री जागनाथ महादेव मंदिर काफी प्राचीन एवं ऐतिहासिक है। अरावली पर्वत श्रृंखला की उपशाखा ऐसराणा पहाड़ पर सुनहरे रेतीले दोनों के बीच श्री जागनाथ महादेव मंदिर में विराजित है। यहां की प्राकृतिक छटा बरबस ही श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है। ऊंचे ऊंचे विशाल हरे भरे पहाड़ए रेत के बड़े बड़े धोरे एवं उन पर उगी विभिन्न प्रकार की झाड़ियां आकर्षित करती हैं। नारणावास के रूप सिंह राठौड़ ने बताया कि श्री जागनाथ महादेव मन्दिर के आस पास बहते हुए झरने, सदा बहार चलने वाली छोटी नदी जो स्थानीय श्रद्धालुओं में छोटी गंगा के नाम से जानी जाती हैं, सभी का मन मोह लेती है। इस जागनाथ महादेव मन्दिर के साथ ऐतिहासिक दृष्टांत भी जुड़े हुए है। अलाउद्दीन खिलजी के जालोर पर आक्रमण के समय सोनगरा वंशीय 140 सैनिक लड़ाई में घायल हो कर इस मंदिर में आए तथा शरण ली थी।यहां उनकेघमासान यद्ध में सोनगरा शहीद हो गए थे।

तपस्वी मोरली गिरी महाराज ने यहां मन्दिर निर्माण का कार्य शुरू करवाया तो दिन का निर्माण रात को गिर जाता था। इस पर योगिराज मोरली गिरी महाराज ने ध्यान लगाया तो पता लगा कि श्राद्ध एवं तर्पण न होने से 140 सैनिकों की मुक्ति नहीं हुई हैं और वे मन्दिर के काम में रुकावट डाल रहे हैं। उन्हांेने सैनिकों की आत्मा को उनकी अस्थियों को हरिद्वार में विसर्जित कर तर्पण किया। फिर भी मन्दिर निर्माण में फिर बाधा पहुंची तो योगिराज मोरली गिरी ने ध्यान लगाया तो पता चला कि एक शहीद की अस्थियां विसर्जित होने से रह गई। तब योगिराज ने कहा कि अब वापस हरिद्वार जाना सम्भव नहीं है, लेकिन उसकी मूर्ति मंदिर के प्रांगण में स्थापित की जाएंगी। इस पर सैनिक की आत्मा ने कहा कि इस मंदिर में सबसे पहले मेरी पूजा होनी चाहिए तो मैं मान जाऊंगा। इस पर योगिराज ने यह शर्त मान ली।

इसके बाद आज भी सबसे पहले सोनगरा जुझार की ही पूजा की जाती हैं।

  • श्री श्री 1008 महंत प्रभु गिरि महाराज,
  • श्री श्री 1008 महंत आशाराम भारती महाराज,
  • श्री श्री 1008 महंत गंगानाथ महाराज,
  • श्री श्री 1008 महंत रणछोड भारती महाराज,
  • श्री श्री 1008 महंत किशन भारती महाराज,
  • श्री श्री 1008 महंत शंकर स्वरूप ब्रहमचारी,
  • श्री श्री 1008 महंत बाबू गिरि महाराज,
  • श्री श्री 1008 महंत राजभारती महाराज,
  • श्री श्री 1008 महंत सुखदेव भारती महाराज,
  • श्री पंचनाम दशनाम जूना अखाडे चार मणि के अध्यक्ष महंत प्रेम भारती महाराज,
  • श्री श्री 1008 महंत सेवाराम भारती महाराज,
  • श्री श्री 1008 महंत महावीर गिर महाराज,
  • श्री श्री 1008 महंत लहर भारती महाराज,
  • श्री श्री 1008 महंत शिवभारती महाराज,
  • श्री श्री 1008 महंत रामानंद ब्रहमचारी आदि संतों ने भी ब्रहमलीन
  • श्री श्री 1008 महंत गंगा भारती महाराज को श्रद्धांजलि अर्पित की।

ठाकुर रूप सिंह नारणावास, लाल सिंह व सुमेर सिंह धानपुर, उमेश सिंह ढूढसी अमर सिंह थोला आदि ने सहयोग दिया। आयोजक श्री श्री 1008 महंत महेंद्र भारती महाराज व गुरू भाई विष्णु भारती महाराज ने सभी साधु-संतों का स्वागत किया।

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