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भाव पूर्ण श्रद्धांजलि-श्रीमज्जगद्गुरु-शङ्कराचार्य पूज्यपाद श्री स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज महाभाग की ब्रह्मलीन चिन्मय सत्ता

।।श्रीदत्तात्रेयोविजयतेतराम् ।।  भाव पूर्ण श्रद्धांजलि सनातन संस्कृति संपोषक ,आर्ष परंपरा के शिखरस्थ सत्पुरुष व हिन्दू वैदिक धर्म के ध्वज वाहक स्वनामधन्य श्रीमज्जगद्गुरु-शङ्कराचार्य पूज्यपाद  श्री स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज महाभाग की ब्रह्मलीन चिन्मय सत्ता को  भाव पूर्ण श्रद्धांजलि ,हिन्दू समाज के धरर्म रक्षक स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के ब्रह्मलीन होने से हमारे हिन्दुत्व के मानविन्दु के जाने से बहुत ही बड़ी क्षति है,स्वामी स्वारूपानन्द सरस्वती जी महाराज ने सदैव हिन्दू धर्म सनातन वैदिक धर्म के नेतृत्व कर्ता रहे ,बचपन से ही राष्ट्र सेवा में लगे रहे समस्त अखाड़ों के सन्तों को सदैव अपने विचारो प्रेरणा देते रहते थे उनको आज श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के अन्तर्राष्ट्रीय संरक्षक श्रीमहन्त हरि गिरि जी महाराज महामंत्री अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् , अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष सभापति श्रीमहन्त प्रेम गिरि जी महाराज, अन्तर्राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहन्त नारायण गिरि जी महाराज श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर गाजियाबाद एवं समस्त जूना अखाड़ा ने जगद् गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की ,
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज (जन्म: २ सितम्बर १९२४) एक हिन्दू अध्यात्मिक गुरु, स्वतन्त्रता सेनानी थे।


स्वरूपानंद सरस्वतीश्री स्वरूपानन्द जी का 11 सितम्बर 2022 को देहावसान!

हिंदुओं को संगठित करने की भावना से आदिगुरु भगवान शंकराचार्य ने 1300 बर्ष पूर्व भारत के चारों दिशाओं में चार धार्मिक राजधानियां (गोवर्धन मठ, श्रृंगेरी मठ, द्वारका मठ एवं ज्योतिर्मठ) बनाईं | जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य हैं |

शंकराचार्य का पद हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है,हिंदुओं का मार्गदर्शन एवं भगवत् प्राप्ति के साधन आदि विषयों में हिंदुओं को आदेश देने के विशेष अधिकार शंकराचार्यों को प्राप्त होते हैं | सभी हिंदूओं को शंकराचार्यों के आदेशों का पालन करना चाहिये | वर्तमान युग में अंग्रेजों की कूटनीति के कारण धर्म का क्षय, जो कि हमारी शिक्षा पद्धति के दूषित होने एवं गुरुकुल परंपरा के नष्ट होने से हुआ है | हिंदूओं को संगठित कर पुनः धर्मोत्थान के लिये चारों मठों के शंकराचार्य एवं सभी वैष्णवाचार्य महाभाग सक्रिय हैं | स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती जी, सांई बाबा की पूजा करने के विरोध में हैं क्योंकि कुछ हिंदू दिशाहीन हो कर अज्ञानवश असत् की पूजा करने में लगे हुए हैं जिससे हिंदुत्व में विकृति पैदा हो रही है | स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के अनुसार इस्कॉन भारत में आकर कृष्ण भक्ति की आड़ में धर्म परिवर्तन कर रहा है, ये अंग्रेजों की कूटनीति है कि हिंदुओं का ज्ञान ले कर हिंदुओं को ही दीक्षा दे कर अपना शिष्य बना रहे हैं |

श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का 95 वां जन्मदिवस वृंदावन में बर्ष 2018 में मनाया गया एवं यहीं उनका 72वां चातुर्मास समपन्न हुआ |जीवन परिचय:-स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म २ सितम्बर १९२४ को मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में पिता श्री धनपति उपाध्याय और मां श्रीमती गिरिजा देवी के यहां हुआ। माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा। नौ वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं। इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी। जब १९४२ में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और १९ साल की उम्र में वह ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में नौ और मध्यप्रदेश की जेल में छह महीने की सजा भी काटी। वे करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे। १९५० में वे दंडी संन्यासी बनाये गए और १९८१ में शंकराचार्य की उपाधि मिली। १९५० में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे।     

हर हर महादेव
विश्व संवाद सम्पर्क सचिवअमित कुमार शर्माश्री दूधेश्वर नाथ महादेव मठ मन्दिर गाजियाबाद उत्तर प्रदेश

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