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खरण्टिया मठ की महिमा के आगे राजा-महाराजा भी नतमस्तक हो गएः श्रीमहंत नारायण गिरि मठ के महंत को राजा-महाराजाओं के समान ही महाराजाधिराज का पद प्राप्त था

राजस्थानः श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर, श्रीपंच दशनाम जूना अखाडा के अंतर्राष्ट्रीय प्रवक्ता, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने कहा कि खरण्टिया मठ समदङी सिवाना मारवाड नरेशों का गुरूद्वारा है और पुराने समय से ही इस मठ का बहुत मान-सम्मान है। मठ के महंत को राजा-महाराजाओं के समान ही महाराजाधिराज का पद प्राप्त था। मठ की मान्यता देश ही नहीं पूरे विश्व में है और यहां पर मत्था टेकने से सभी कष्ट दूर होते हैं और सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। महाराजश्री ने बताया कि पुराने समय में मठ के ठाठ निराले थे और द्वार पर हाथी-घोडे झूमते रहते थे। मठ की मान्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गददीनसीन होते ही जोधपुर नरेश अपने गुरू के दर्शन करने व उनका आशीर्वाद लेने के लिए यहां आते थे।

जोधपुर दुर्ग व खरण्टिया मठ का निर्माण एक ही वर्ष में हुआ। संवत 1515 में रामचंद्र भारती व उनके सिद्ध शिष्य जोगेंद्र भारती ने मठ की स्थापना की थी। जोधपुर दुर्ग की नींव रखने से पहले राव जोधा ने रामचंद्र भारती व उनके सिद्ध शिष्य जोगेंद्र भारती से भेंट कर दुर्ग की नींव रखने की अनुमति ली थी। गुरू रामचंद्र भारती के समाधि लेने के बाद उनके शिष्य जोगेंद्र भारती मठासीन हुए जो बहुत ही तपस्वी, पहुंचे हुए महात्मा व सिद्ध पुरूष थे। उन्होंने अपने तप से 24 पीरों का साक्षात्कार कर लिया था। उनके चमत्कारों से प्रभावित होकर पीरों ने उन्हें अपना गुरू मान पीर की पदवी दी थी और उसके बाद से ही वे जोगेंद्र पीर के नाम से प्रसिद्ध हुए। श्रीमहंत नारायण गिरि ने बताया कि जागेंद्र पीर ने 4 समाधियां ली थी। बादशाह अकबर भी उनसे प्रभावित हुआ था। उनके शिष्य संतोष भारती भी चमत्कारी पुरूष थे। एक बार महाराजा सुमेर सिंह के सैनिकों ने युद्ध के लिए जाते समय तपस्यारत संतोष भारती की तपस्या को भंग किया तो क्रोध में उन्होंने तालाब का समस्त जल समेटा और वहां से चले गए। सैनिकों के बहुत प्रयास करने के बाद भी जब तंबू नहीं लग पाए तो यह बात महाराजा तक पहुंची वे तत्काल संतोष भारती के पास गए और चरणों में गिरकर उन्हें मनाकर वापस लाए थे।

जोगेंद्र पीर के एक अन्य शिष्य भीम भारती ने भी समदडी में मठ बनवाया था। जोगेंद्र पीर के पाटवी शिष्य रामेश्वर भारती तो इतने चमत्कारी थे कि वे अपने स्वरूप में मनचाहा परिवर्तन कर सकते थे। दिल्ली के बादशाह आलमगीर ने भी इस मठ की यात्रा की थी और पंथ भारती के शिष्य भांगड भारती से बहुत प्रभावित हुए थे। मठ के 18 वें तथा अंतिम चमत्कारी व सिद्ध संत मोती भारती थे। उसके बाद समय के फेर में मठ का पतन हुआ। 1892 में माघ भारती ने वर्तमान मठ का निर्माण कराया। पुराना मठ समाधियों के उत्तर में था। आज भी जोगेद्र पीर का नाम बडी श्रद्धा से लिया जाता है। प्रतिवर्ष यहां शिवरात्रि पर राम जागेश्वर महादेव के साथ जोगेंद्र पीर का मेला लगता है। आज भी भक्तों को शिवरात्रि पर मठ से अलख जगाने की आवाज आती है। महाराजश्री ने बताया कि मठ के वर्तमान महंत किशन भारती मठ की परम्परा का निर्वाह करते हुए देश-विदेश में आध्यात्म, भारतीय संस्कृति, विरासत व सनातन धर्म की अलख जगाने का कार्य कर रहे हैं।

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