अनलासुर नाम के राक्षस को निगलने से भगवान गणेश के शरीर की गर्मी सिर पर दूर्वा रखने से ही शांत हुई थीः श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज इसी कारण भगवान गणेश की पूजा दूर्वा से की जाती है भगवान विष्णु के बालों की लटें जमीन पर गिरकर दूर्वा के रूप में बदल गई थीं
गाजियाबादः सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में आयोजित 11 दिवसीय श्री दूधेश्वर गणपति लडडू महोत्सव के पांचवें दिन दूर्वा अष्टमी को भगवान गणेश के पांचवें अवतार गजानन की पूजा-अर्चना हुई। पूजा-अर्चना करने के लिए मंदिर में बडी संख्या में भक्त पहुंचे। भगवान गणेश के 1008 नामों की पूजा-अर्चना दूर्वा से की गई। गणेश स्तुति व गणेश चालीसा का पाठ हुआ। आरती कर भगवान गणेश को मोदक व लडडू का भोग लगाया गया। श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने भगवान गणेश के पांचवें अवतार के रूप में बताया कि भगवान कुबेर के लोभ से लोभासुर का जन्म हुआ था। लोभासुर दैत्य गुरु शुक्राचार्य की शरण में गया और वहां से शिक्षा ली। शुक्राचार्य के कहने पर लोभासुर ने भगवान शिव की कठोर साधना कर उनसे निर्भय होने का वरदान ले लिया।
वरदान पाने के बाद अहंकार में भरकर सभी लोकों को जीत लिया तो सभी ने गणेशजी की प्रार्थना की। भगवान गणेश ने गजानन के रूप में अवतार लिया तो शुक्राचार्य की सलाह पर लोभासुर ने बिना युद्द किए पराजय स्वीकार कर ली। दूर्वाअष्टमी व भगवान गणेश को दुर्वा क्यों पसंद हैं, इसके बारे में महाराजश्री ने बताया कि दूर्वा अष्टमी महिलाओं द्वारा मनाई जाती है। पश्चिम बंगाल में इसे दुर्वाष्टमी ब्रत के रूप में जाना जाता है। यह त्यौहार दूर्वा घास की पूजा के लिए समर्पित है, जिसे हिंदू अनुष्ठानों में पवित्र माना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, अनलासुर नाम का एक राक्षस था जो अपनी आँखों से आग उगलकर स्वर्ग को आतंकित करता था और अपने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को नष्ट कर देता था। देवताओं ने भगवान गणेश से मदद मांगी तो उन्होंने विराट रूप प्रकट कर राक्षस को निगल लिया, मगर इससे उनके शरीर में अत्यधिक गर्मी पैदा हो गई, जिससे वे बेचैन हो गए। गर्मी को शांत करने के लिए ऋषियों ने गणेश जी के सिर पर 21 दूर्वा रखीं, जिससे तुरंत गर्मी दूर हो गई। तब गणेश ने घोषणा की कि जो कोई भी उनकी पूजा दूर्वा घास से करेगाए उसे उनका आशीर्वाद, शांति, खुशी और समृद्धि मिलेगी। दूर्वा घास की उत्पत्ति भी हिंदू पौराणिक कथाओं में है। ऐसा माना जाता है कि दूर्वा घास भगवान विष्णु के बालों से निकली थी। समुद्र मंथन जब भगवान विष्णु मंदरा पर्वत को सहारा दे रहे थे तो उनके बालों की कुछ लटें ज़मीन पर गिर गईं और दूर्वा घास में बदल गईं। समुद्र मंथन के बाद, जब देवता और असुर अमृत कलश को लेकर लड रहे थे तो कुछ बूंदें दूर्वा घास पर गिर गईं जिससे यह अमर और शुभ हो गई।