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श्री नवग्रह मंदिर

मंदिर परिसर में पीपल के प्राचीन विशाल वृक्ष के निकट नवग्रह मंदिर स्थापित है | नवग्रह की प्रतिमाओं के साथ ही प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता श्री गणेशजी की भव्य प्रतिमा भी है | अखण्ड दिव्य ज्योति के प्रकाश से मंदिर सदैव आलोकित रहता है | ग्रह शान्ति के लिये भक्तगण यहाँ निरन्तर पूजा-अर्चना करते है |

श्री नवग्रह की पूजा क्यों की जाती है?:-

पृथ्वी से जुड़े प्राणियों की प्रभा (ऊर्जा पिंडों) और मन को ग्रह प्रभावित करते हैं। प्रत्येक ग्रह में एक विशिष्ट ऊर्जा होती है। ग्रहों की ऊर्जा किसी व्यक्ति के भाग्य के साथ एक विशिष्ट तरीके से उस समय जुड़ जाती है जब वे अपने जन्मस्थान पर अपनी पहली सांस लेते हैं और यह ऊर्जा जुड़ाव तब तक साथ रहता है जब तक उसका वर्तमान शरीर जीवित है। नवग्रह सार्वभौमिक, आद्यप्ररुपील ऊर्जा के संचारक है। प्रत्येक ग्रह के गुण स्थूल जगत और सुक्ष्म जगत वाले ब्रह्मांड की ध्रुवाभिसारिता के समग्र संतुलन के बनाए रखने में मदद करते हैं। 

मनुष्य ग्रह या उसके स्वामी देवता के साथ संयम के माध्यम से किसी विशिष्ट ग्रह की चुनिंदा ऊर्जा केसाथ खुद की अनुकुलता बैठाने में सक्षम है। विशिष्ठ देवताओं की पूजा का प्रभाव उनकी संबंधित ऊर्जा केमाध्यम से पूजा करने वाले व्यक्ति के लिए तदोनुसार फलता है। विशेष रूप से संबंधित ग्रह द्वारा धारण किए गए भाव के अनुसार ब्रह्मांडीय ऊर्जा जो हम हमेशा प्राप्त करते हैं उसमें अलग-अलग खगोलीय पिंडों से आ रही ऊर्जा शामिल होती है। जब हम बार-बार किसी मंत्र का उच्चारण करते हैं तो हम किसी खास फ्रीक्वेंसी से तालमेल बैठाते हैं और यह फ्रीक्वेंसी ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ संपर्क कर उसे हमारे शरीर केभीतर और आसपास खींचती है। ग्रह तारे और अन्य खगोलीय पिंड ऊर्जा की ऐसी सजीव सत्ता है जो ब्रह्मांड के अन्य प्राणियों को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार जीवन में नवग्रहों (देवता) का प्रभाव अति महत्वपूर्ण है। 

श्री नवग्रह में देवताओं के नाम:-

ये नवग्रह सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु है। सूर्य सभी ग्रहों का प्रधान है तथा बाकी ग्रह सूर्य से ही ऊर्जा पाते हैं। सूर्य केंद्र में, चन्द्र सूर्य के दक्षिण पूर्व में (आग्नेय), मंगल सूर्य केदक्षिण में, बुध सूर्य केउत्तर पूर्व (इर्शान कोण), बृहस्पति सूर्य केउत्तर में, शुक्र सूर्य केपूर्व में, शनि सूर्य केपश्चिम में, राहु सूर्य केदक्षिण-पश्चिम में (नैऋत्य) और केतु सूर्य केउत्तर-पश्चिम में (वायव्य) में स्थित होते हैं। इनमें किसी भी देवता का मुख एक दूसरे की तरफ नहीं होता।

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