गाजियाबादः
भगवान श्री दूधेश्वर का कलयुग में प्राकटय विक्रम संवत 1511 बैकुंठ चतुर्दशी को हुआ था। श्रीमहंत वेणी गिरि महाराज मंदिर के प्रथम श्रीमहंत थे, जो विक्रम संवत 1511 से 1568 तक यानि 57 वर्ष श्रीमहंत रहे। श्री दूघेश्वर नाथ मंदिर के पीठाधीश्वर, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि उस समय मंदिर के आसपास घना जंगल था और जंगली जानवरों के डर से भक्तों का अधिक आना-जाना नहीं था, मगर मठ में दूर-दूर से आए साधु-संतों का डेरा लगा रहता था। उनसे जो भी पहली बार मिलता, उससे बच्चा कहकर बुलाते थे। उनकी स्मृति इतनी तेज थी कि एक बार मिल लेने के बाद उन्हें सबके नाम याद रहते थे। श्रीमहंत वेणी गिरि महाराज को जड़ी-बूटियों का अच्छा ज्ञान था। किसी भी तरह के बुखार, दर्द, चोट आदि में वे जड़ी-बूटी के साथ रूद्राक्ष को जल में उबालकर उसका सत पीने को देते थे, जिससे मरीज बिल्कुल स्वस्थ हो जाता था। उनकी औषधि से मरीज उतनी अवधि में ही स्वस्थ हो जाता था, जितनी अवधि में महाराजश्री कहते थे। अगर उन्होंने कह दिया कि कल तू भगवान दूधेश्वर का अभिषेक करेगा तो मरीज एक दिन में स्वस्थ होकर भगवान दूधेश्वर के दरबार में हाजिर हो जाता था। महाराजश्री की आंखों में ऐसा आकर्षण था कि उनसे निगाह मिलते ही खतरनाक जंगली जानवर भी पालतू जानवरों की तरह व्यवहार करने लगते थे।
श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि जानवरों को वे प्रवचन तक सुनाया करते थे। वे त्रिकालदर्शी थे और भविष्य की घटनाओं को पहले ही जान लेते थे। एक बार वे बहुत बैचेन थे तो पास बैठे महात्मा ने इसका कारण पूछा। इस पर उन्होंने कहा कि युवक को नाव में बैठाकर गलत किया। महात्मा ने कहा कि महाराज यहां तो कोई नाव नहीं है। महाराजजी ने कहा कि मैं यहां की नहीं गंगाजी की बात कर रहा हूं। पार जाने के लिए नाव चल पडी है और उसमें 25 लोग सवार हैं। एक युवक के चक्कर मंे सब डूब जाएंगे। नाव चलाने वाला भी नहीं बचेगा। नाव में सबसे बाद में चढे युवक को छोडकर सब पुण्यात्मा है। युवक पापी है और उसकी मत्यु आई है। नाव चलने के बाद वह दौडकर नाव में चढा और सबको मरवा देगा। अचानक महाराजजी बोले कि हो गई सबकी जल समाधि। महात्मा जी की कुछ समझ में नहीं आया। कुछ दिन बाद महात्मा गंगा स्नान के लिए गढमुक्तेश्वर गए तो वहां पता चला कि कुछ दिन पहले एक नाव में एक युवक दौडकर चढा और गढ से थोडा आगे नाव डूब गई जिसमें 25 लोग सवार थे। यह सुनते ही महात्मा जी हैरान रह गए। श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि श्रीमहंत वेणी गिरि महाराज के समय में ही चमत्कारी सिद्ध संत गरीब गिरि महाराज भगवान दूधेश्वर की सेवा में थे। गरीब गिरि महाराज के विक्रम संवत 1564 में जीवित समाधि लेने के बाद श्रीमहंत वेणी गिरि महाराज ने भी 4 वर्ष बाद विक्रम संवत 1568 में समाधि ले ली थी। ऐसी मान्यता है कि उनकी समाधिपर नित्य जल चढाने से बुद्धि का विकास होता है और भविष्य की घटनाओं का पूर्वाभास होता है।