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गुप्त नवरात्रि के दूसरे दिन श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर में तारा माता की पूजा-अर्चना हुई


भक्तों को तारने यानि पार लगाने के कारण ही माता का नाम तारा माता पडाः श्रीमहंत नारायण गिरि

गाजियाबादः
श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में गुप्त नवरात्रि के दूसरे दिन रविवार को दूसरी महाविद्या तारा माता की आराधना की गई। तारा माता की आराधना के लिए मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड लगी रही। मंदिर के पीठाधीश्वर श्रीमहंत नारायण गिरि के पावन सानिध्य में मां की विधि-विधान से पूजा-अर्चना व आरती के बाद उनको सरसों के तेल से बने पदार्थों का भोग लगाया गया। श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने कहा कि दस महाविद्याओं में माँ तारा महाविद्या को द्वितीय विद्या के रूप में जाना जाता है।

उनका रूप मां काली की तरह ही भयंकर हैं, मगर वे भक्तों को अभय प्रदान करने वाली हैं। भक्तों को तारने यानि पार लगाने के कारण ही उनको तारा माता के नाम से जाना जाता है। तारा माता को भगवान शिव की माता की उपाधि भी प्राप्त है, क्योंकि उन्होंने उन्हें स्तनपान कराया था। भगवान शिव ने समुद्र मंथन के दौरान जब समुद्र से निकला विष पीया तो उसके प्रभाव से मूर्छा आने लगी थी। तब तारा माता ने उन्प्हें स्तनपान कराकर विष के प्रभाव को कम कर उनकी मूर्छा को दूर किया था। तारा माता की पूजा आराधना करने से आर्थिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मां तारा की सबसे पहले पूजा.अर्चना महर्षि वशिष्ठ ने की थी। प्राचीन देवी मंदिर दिल्ली गेट के महंत गिरिशानंद गिरि भी मौजूद रहे।

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