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मां ब्रह्मचारिणी के आशीर्वाद से व्यक्ति अपने कार्य में सफल होते हैंः श्रीमहंत नारायण गिरी


शक्तिपीठ श्री राणी भटियाणी मन्दिर संस्थान में मां ब्रहमचारिणी की पूजा-अर्चना करने के लिए भक्तों की भीड लगी रही
जसौल, राजस्थानः

विश्व प्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री राणी भटियाणी मन्दिर संस्थान, जसोल में बुधवार को चैत्र नवरात्रि पर्व के द्वितीय दिवस मां ब्रह्मचारिणी की विशेष पूजा अर्चना की गई। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना करने के लिए मंदिर में देश भर से आए भक्तों की भीड लगी रही। प्रातः ब्रह्ममहूर्त में माता राणी भटियाणी की मंगला आरती की गई। उसके बाद शुभ मुहूर्त में विद्वान आचार्यों एवम् पंडितो द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के साथ मां दुर्गा के द्वितीय स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी का विधि विधान व रीति रिवाज के साथ विशेष पूजन किया गया। श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर, श्रीपंच दशनाम जूना अखाडा अंतर्राष्ट्रीय प्रवक्ता, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज के पावन सानिध्य में मन्दिर प्रांगण में हवन व पूजन किया गया।

संस्थान की ओर से अध्यक्ष रावल किशनसिंह जसोल ने कन्या पूजन किया व कन्याओं को अन्न प्रसादम करवाया, तथा जसोल मां के अनन्य भक्तों के जीवन में खुशहाली को लेकर कामना की। श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज ने कहा कि चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को विष्कम्भ और प्रीति योग, भरणी नक्षत्र है। नवरात्रि के दूसरे दिन भक्त मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं। मां ब्रह्मचारिणी के आशीर्वाद से व्यक्ति अपने कार्य में सफल होते हैं। हर विकट स्थिति से लड़ने की क्षमता व्यक्ति के अंदर पैदा होती है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से भक्त को जप, तप, त्याग, संयम आदि की प्राप्ति होती है। श्रीमहंत नारायण गिरि ने कहा कि देवी पार्वती ने नारद जी के सुझाव पर भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए हजारों वर्षों तक जंगल में कठोर तप और साधना की थी।

वे सफेद वस्त्र हाथ में कमंडल एवं जप की माला धारण किए हुए हैं। कठोर साधना के कारण उनको मां ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। माँ दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्त फल देने वाला है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के बाद उन्हें शक्कर का भोग लगाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर का भोग लगाने से व्यक्ति को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।

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